वाराणसी: धर्म की नगरी काशी में कोई ऐसा त्योहार नहीं जो धूमधाम से न मनाया जाता हो. ऐसे में भोलेनाथ के प्रिय श्रीराम की लीला न हो ऐसा कैसे हो सकता है. काशी में रामलीला का बहुत पुराना इतिहास है. 18वीं सदी में तत्कालीन काशीराज उदित नारायण सिंह ने रामनगर में रामलीला की शुरुआत की थी, तब से लेकर अब तक यह परंपरा उतने ही श्रद्धाभाव से चली आ रही है. हर साल अनंत चतुर्दशी को रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला प्रारंभ होती है और 31 दिनों तक चलने वाली यह रामलीला शरद पूर्णिमा के दिन समाप्त होती है. वहीं आज शरद पूर्णिमा के दिन रामचरितमानस पाठ की समाप्ति की जाएगी.
सैकड़ों वर्ष से चलती आ रही है यह परम्परा
सैकड़ों वर्ष से पुरानी इस परंपरा का निर्वहन काशीराज परिवार आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति से करता आ रहा है. काशीराज महाराजा डॉ. अनंत नारायण सिंह राजशाही अंदाज में हाथी पर सवार होकर लीला स्थल पर पहुंचते हैं. वहां पहले से मौजूद दर्शक परंपरागत रूप से हर-हर महादेव के जयकारों से उनका स्वागत करते हैं. जिसके बाद रामलीला शुरू की जाती है. एक हाथ में पीड़ा और दूसरे में रामचरितमानस की किताब लेकर यहां हर साल हजारों लोग रामलीला देखने आते हैं. पीड़ा बैठने के लिए तो रामचरितमानस लीला के दौरान पढ़ते रहने के लिए. एक तरफ लोग राम चरित्र मानस की चौपाई पढ़ते हैं तो दूसरी तरफ रामलीला संवाद के साथ आगे बढ़ती रहती है.
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विदेशों से भी लोग आते है इस लीला को देखने
बनारस या भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से लोग इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए आते हैं. सैकड़ों वर्षों से आ रहे लोगों की यह मान्यता है कि यहां पर भगवान स्वयं अपने स्वरूप में विराजमान होते हैं और कई स्थानों पर उनके दर्शन होते हैं. लोगों की आस्था इतनी है कि लोग इस लीला को बस इसलिए देखते हैं कि लीला में भगवान स्वयं विराजमांन होते है. श्रद्धालुओं का यह भी मानना है कि यहां आनंद ही नहीं बल्कि परमानंद का अनुभव होता है.
पांचवीं पीढ़ी कर रही है अनोखी रामलीला
यह बात अपने आप में इतनी खास है कि सैकड़ों वर्ष पुरानी यह लीला आज भी अपनी परंपराओं को संजो कर चलती आ रही है. चार पीढ़ी बीत जाने के बाद भी यह लीला यथा समय, यथा स्थान पर आज भी उसी श्रद्धा से की जाती है. रामायणी निर्मल मिश्रा ने बताया कि वह अपने पिताजी के साथ रामायणी के रूप में आते थे और अभी भी आते हैं. लगभग 30 वर्षों से आ रहे हैं. उनका कहना है कि विश्व प्रसिद्ध रामलीला एक खास परंपरा है. जब महाराजा काशी नरेश आते हैं तभी यह विश्व प्रसिद्ध रामलीला शुरू होती है. वहीं राजशाही सवारी के साथ हाथी पर सवार होकर महाराजा डॉ. अनंत नारायण सिंह भी आते हैं. राज्याभिषेक के बाद जब भगवान हाथी पर सवार हो जाते हैं उसके बाद महाराज हाथी पर नहीं बैठते वह अपनी प्राइवेट कार से रामलीला देखने आते हैं.