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वाराणसी: 165 साल पुरानी रामलीला का दर्शक बनारसी पान के साथ लेते हैं आनंद - वाराणसी की 165 साल पुरानी रामलीला

उत्तर प्रदेश के वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामलीला अपने आप में बेहद खास है और उतने ही खास हैं इसे देखने वाले दर्शक. यहां की रामलीला काफी पुरानी है और ये नियम से उसी स्थान और समय पर होती चली आ रही है.

165 साल पुरानी रामलीला का दर्शक ले रहे हैं आनंद.
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Published : Oct 6, 2019, 7:00 PM IST

वाराणसी: वाराणसी को मंदिर, गलियों, घाटों, सभ्यता और संस्कृति का शहर कहा जाता है. यहां की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 165 वर्ष पुरानी है और 1835 में इसकी शुरुआत हुई थी. इतना लंबा सफर तय करने के बावजूद आज भी यह अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है.

आखिर क्यों प्रसिद्ध है ये रामलीला
वाराणसी रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला जितनी खास है उतने ही खास है इसे देखने वाले. आज भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए दो वक्त का समय नहीं है, लेकिन यहां की रामलीला बनारस के कोने कोने से लोगों को खींचकर अपनी ओर लाती है. यहां के लोग यह लीला एक दिन नहीं बल्कि पूरे 31 दिनों तक देखते हैं और वह भी पूरे बनारसी अंदाज में.

165 साल पुरानी रामलीला का दर्शक ले रहे हैं आनंद.

बनारसी पान के साथ रामलीला का लेते हैं आनंद
रामलीला तो शाम 5:00 बजे से शुरू होती है लेकिन लीला प्रेमी जिन्हें नियरमी या नियम से लीला देखने वाले कहा जाता है, ये लोग लीला शुरू होने के 2 घंटे पहले ही रामनगर स्थित रामबाग पोखरे के पास चले जाते हैं. वहां ये नित्य क्रिया कर्म करने के बाद स्नान करते हैं. स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ का प्रसाद त्रिपुंड माथे पर लगाकर बनारसी धोती कुर्ता और गमछा के साथ इत्र लगाकर और बनारसी पान, हाथ में छाता, टॉर्च और पीड़ा(बैठने का सामान) लेकर लीला देखने चल देते हैं. लीला देखने वालों में क्या साधु और क्या आम नागरिक सब एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते हैं.

लाइट और साउंड का नहीं होता है प्रयोग
अनंत चतुर्दशी से यह विश्वप्रसिद्ध रामलीला शुरू होकर पूरे 31 दिनों तक चलती है. इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता. यह लीला 4 कोस की दूरी में संपन्न होती है.

जानिए लीला प्रेमियों ने क्या कुछ कहा
अपनी इन तैयारियों के बारे में सरोज सोनकर ने बताया कि हम घर से आकर पोखरे पर वर्जिश करते हैं, इसके बाद फ्रेश होते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं और फिर भांग पीसते हैं. स्नान करके, इत्र गुलाब लगाकर भांग और ठंडाई जमाकर फिर हम लोग लीला में शामिल होते हैं. हमलोग अपने सभी क्रम 31 दिनों तक ऐसे ही करते हैं. हम सरोज सोनकर ने बताया कि मैं पिछले 20 सालों से यहां पर आ रहा हूं. हमलोग देर रात तक लीला का आनंद लेते हैं, ऐसा आनंद दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलेगा क्योंकि ये बाबा विश्वनाथ की नगरी है और यहां स्वयं भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं.

जानिए इस बारे में जानकार क्या कुछ कहते हैं
विजय नाथ मिश्र ने बताया कि ये दुनिया में अकेला लीला है और विश्व का सबसे बड़ा रंगमंच है. ऐसी लीला पूरे दुनिया में कहीं नहीं होती है. प्रोफेसर रिचर्ड शेखनर जो अमेरिका के विश्वविख्यात नाटक के प्रोफेसर रहे हैं, उन्होंने इस लीला पर 35 साल रिसर्च किया. उन्होंने 28 शोध सिर्फ लीला पर लिखे हैं. एक लाइन में उन्होंने लिखा कि 'न ऐसे किरदार मिलेंगे न ऐसे राम भक्त मिलेंगे'. उन्होंने बताया कि यह लीला ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि हमारी विरासत है और जब तक यह लीला है तब तक हम इसको महसूस कर सकते हैं. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि हमारा तो यह मानना है ये लीला युगों-युगों तक ऐसे ही चलती रहे और यहां पर राम कथा बहती रहे.

वाराणसी: वाराणसी को मंदिर, गलियों, घाटों, सभ्यता और संस्कृति का शहर कहा जाता है. यहां की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 165 वर्ष पुरानी है और 1835 में इसकी शुरुआत हुई थी. इतना लंबा सफर तय करने के बावजूद आज भी यह अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है.

आखिर क्यों प्रसिद्ध है ये रामलीला
वाराणसी रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला जितनी खास है उतने ही खास है इसे देखने वाले. आज भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए दो वक्त का समय नहीं है, लेकिन यहां की रामलीला बनारस के कोने कोने से लोगों को खींचकर अपनी ओर लाती है. यहां के लोग यह लीला एक दिन नहीं बल्कि पूरे 31 दिनों तक देखते हैं और वह भी पूरे बनारसी अंदाज में.

165 साल पुरानी रामलीला का दर्शक ले रहे हैं आनंद.

बनारसी पान के साथ रामलीला का लेते हैं आनंद
रामलीला तो शाम 5:00 बजे से शुरू होती है लेकिन लीला प्रेमी जिन्हें नियरमी या नियम से लीला देखने वाले कहा जाता है, ये लोग लीला शुरू होने के 2 घंटे पहले ही रामनगर स्थित रामबाग पोखरे के पास चले जाते हैं. वहां ये नित्य क्रिया कर्म करने के बाद स्नान करते हैं. स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ का प्रसाद त्रिपुंड माथे पर लगाकर बनारसी धोती कुर्ता और गमछा के साथ इत्र लगाकर और बनारसी पान, हाथ में छाता, टॉर्च और पीड़ा(बैठने का सामान) लेकर लीला देखने चल देते हैं. लीला देखने वालों में क्या साधु और क्या आम नागरिक सब एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते हैं.

लाइट और साउंड का नहीं होता है प्रयोग
अनंत चतुर्दशी से यह विश्वप्रसिद्ध रामलीला शुरू होकर पूरे 31 दिनों तक चलती है. इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता. यह लीला 4 कोस की दूरी में संपन्न होती है.

जानिए लीला प्रेमियों ने क्या कुछ कहा
अपनी इन तैयारियों के बारे में सरोज सोनकर ने बताया कि हम घर से आकर पोखरे पर वर्जिश करते हैं, इसके बाद फ्रेश होते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं और फिर भांग पीसते हैं. स्नान करके, इत्र गुलाब लगाकर भांग और ठंडाई जमाकर फिर हम लोग लीला में शामिल होते हैं. हमलोग अपने सभी क्रम 31 दिनों तक ऐसे ही करते हैं. हम सरोज सोनकर ने बताया कि मैं पिछले 20 सालों से यहां पर आ रहा हूं. हमलोग देर रात तक लीला का आनंद लेते हैं, ऐसा आनंद दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलेगा क्योंकि ये बाबा विश्वनाथ की नगरी है और यहां स्वयं भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं.

जानिए इस बारे में जानकार क्या कुछ कहते हैं
विजय नाथ मिश्र ने बताया कि ये दुनिया में अकेला लीला है और विश्व का सबसे बड़ा रंगमंच है. ऐसी लीला पूरे दुनिया में कहीं नहीं होती है. प्रोफेसर रिचर्ड शेखनर जो अमेरिका के विश्वविख्यात नाटक के प्रोफेसर रहे हैं, उन्होंने इस लीला पर 35 साल रिसर्च किया. उन्होंने 28 शोध सिर्फ लीला पर लिखे हैं. एक लाइन में उन्होंने लिखा कि 'न ऐसे किरदार मिलेंगे न ऐसे राम भक्त मिलेंगे'. उन्होंने बताया कि यह लीला ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि हमारी विरासत है और जब तक यह लीला है तब तक हम इसको महसूस कर सकते हैं. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि हमारा तो यह मानना है ये लीला युगों-युगों तक ऐसे ही चलती रहे और यहां पर राम कथा बहती रहे.

Intro:बनारस मंदिर गली घाटो और सभ्यता और संस्कृति का शहर है ऐसे में हम आज आपको बताते है।एक-दो नहीं बल्कि लगभग 165 वर्ष पुरानी विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में यह लीला अपने आप में बेहद खास है और हम कहे तो यह बनारस की परंपरा है कि यह लीला आज भी इतना लंबा सफर तय करके जीवित है। 1835 में शुरू हुई और रामलीला अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है।


Body:अनंत चतुर्दशी से यह विश्वप्रसिद्ध रामलीला शुरू होकर पूरे 31 दिनों तक चलती है।इस लीला में हम पहले भी बहुत सी खास चीजें बता चुके हैं जैसा कि विश्व प्रसिद्ध रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता 4 कोस की दूरी में है लीला संपन्न होती है।

आज हम आपको बताएंगे वाराणसी रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला जितनी खास है उतने ही खास है इसे देखने वाले आज भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए दो वक्त का समय नहीं है। लेकिन विश्व प्रसिद्ध की रामलीला बनारस के कोने कोने से लोगों को खींचकर अपनी और लाती है। यह लोग यह लीला एक दिन नहीं बल्कि पूरे 31 दिन देखते हैं और वह भी पूरे बनारसी अंदाज में। लीला तो शाम 5:00 बजे से शुरू होती है लेकिन या लीला प्रेमी जिन्हें नियरमी या नियम से लीला देखने वाले कहा जाता है। लीला शुरू होने के 2 घंटे पहले ही रामनगर स्थित रामबाग पोखरे के पास चले जाते हैं। वही नित्य क्रिया कर्म करने के बाद स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद बाबा विश्वनाथ का प्रसाद त्रिपुंड माथे पर लगा कर बनारसी धोती कुर्ता और गमछा के साथ इत्र लगाकर और बनारसी पान जमा कर हाथ में छाता टॉर्च और पीड़ा(बैठने का सामान) लेकर चल देते हैं लीला देखने। लीला देखने वालों में क्या साधु और क्या आम नागरिक सब एक साथ बैठकर लीला का आनंद लेते हैं।


Conclusion:आइए सुनाते हैं लीला प्रेमियों से क्या कहते हैं अपनी इन तैयारियों के बारे में सरोज सोनकर ने बताया हम घर से आकर पोखरे पर वर्जिश करते हैं। फिर फ्रेश होते हैं। आंखों में काजल लगाते हैं फिर भांग पीसते हैं। स्नान करके अतर गुलाब लगाकर भांग और ठंडाई जमा कर फिर हम लोग लीला में शामिल होते हैं। यही क्रम हम लोग 31 दिनों तक करते हैं। हम लोग जैसा कोई यहां नहीं लगता है। मैं पिछले 20 सालों से यहां पर आ रहा हूं ।देर रात तक लीला का आनंद लेते हैं ऐसा आनंद दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलेगा क्योंकि बाबा विश्वनाथ की नगरी है और यहां स्वयं भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं।

बाईट:-- सरोज सोनकर,लीला प्रमी,(नियमी)

विजय नाथ मिश्र ने बताया दुनिया में अकेला लीला है विश्व का सबसे बड़ा रंगमंच है। ऐसा लीला पूरे दुनिया में कहीं नहीं होता है। प्रोफेसर रिचर्ड शेखनर जो अमेरिका के विश्वविख्यात नाटक के प्रोफेसर रहे उन्होंने इस लीला पर 35 साल रिसर्च किया। उन्होंने 28 शोध लीला पर लिखे। एक लाइन में उन्होंने लिखा ना ऐसे किरदार मिलेंगे ना ऐसे राम भक्त मिलेंगे। यह लीला ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि हमारी विरासत है। जब तक यह लीला है तब तक हम इसको महसूस कर सकते हैं। हमारा तो यह मानना है या लीला युगो युगो तक ऐसे ही चलता रहे।राम कथा बहती रहे।

प्रोफेसर मिश्र ने बताया लीला इसलिए सबसे अलग है। 28 सालों से प्रत्येक वर्ष इस लीला को 31 दिनों तक देखता हूं। आप इन नियम से आने वाले लीला प्रेमियों को देखिए ऐसा रूप आपको देखने को कहीं मिलेगा। त्रिपुंड ईतर य बनारस की मस्ती, यह वह लोग हैं जो प्रतिदिन इसी साज-सज्जा के साथ आते हैं और राम भक्त हैं।

बाईट :-- प्रो विजय नाथ मिश्र, न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट बीएचयू

नोट :-- यह खबर विश्वनाथ सुमन सर के निर्देश पर किया गया है।

अशुतोष उपाध्याय

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