वाराणसी: वाराणसी को मंदिर, गलियों, घाटों, सभ्यता और संस्कृति का शहर कहा जाता है. यहां की विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला अपने आप में बेहद खास है. यह रामलीला 165 वर्ष पुरानी है और 1835 में इसकी शुरुआत हुई थी. इतना लंबा सफर तय करने के बावजूद आज भी यह अनवरत अपने उसी स्थान और उसी समय पर होती आ रही है.
आखिर क्यों प्रसिद्ध है ये रामलीला
वाराणसी रामनगर के विश्व प्रसिद्ध रामलीला जितनी खास है उतने ही खास है इसे देखने वाले. आज भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए दो वक्त का समय नहीं है, लेकिन यहां की रामलीला बनारस के कोने कोने से लोगों को खींचकर अपनी ओर लाती है. यहां के लोग यह लीला एक दिन नहीं बल्कि पूरे 31 दिनों तक देखते हैं और वह भी पूरे बनारसी अंदाज में.
बनारसी पान के साथ रामलीला का लेते हैं आनंद
रामलीला तो शाम 5:00 बजे से शुरू होती है लेकिन लीला प्रेमी जिन्हें नियरमी या नियम से लीला देखने वाले कहा जाता है, ये लोग लीला शुरू होने के 2 घंटे पहले ही रामनगर स्थित रामबाग पोखरे के पास चले जाते हैं. वहां ये नित्य क्रिया कर्म करने के बाद स्नान करते हैं. स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ का प्रसाद त्रिपुंड माथे पर लगाकर बनारसी धोती कुर्ता और गमछा के साथ इत्र लगाकर और बनारसी पान, हाथ में छाता, टॉर्च और पीड़ा(बैठने का सामान) लेकर लीला देखने चल देते हैं. लीला देखने वालों में क्या साधु और क्या आम नागरिक सब एक साथ बैठकर इसका आनंद लेते हैं.
लाइट और साउंड का नहीं होता है प्रयोग
अनंत चतुर्दशी से यह विश्वप्रसिद्ध रामलीला शुरू होकर पूरे 31 दिनों तक चलती है. इस रामलीला में लाइट और साउंड का प्रयोग नहीं होता. यह लीला 4 कोस की दूरी में संपन्न होती है.
जानिए लीला प्रेमियों ने क्या कुछ कहा
अपनी इन तैयारियों के बारे में सरोज सोनकर ने बताया कि हम घर से आकर पोखरे पर वर्जिश करते हैं, इसके बाद फ्रेश होते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं और फिर भांग पीसते हैं. स्नान करके, इत्र गुलाब लगाकर भांग और ठंडाई जमाकर फिर हम लोग लीला में शामिल होते हैं. हमलोग अपने सभी क्रम 31 दिनों तक ऐसे ही करते हैं. हम सरोज सोनकर ने बताया कि मैं पिछले 20 सालों से यहां पर आ रहा हूं. हमलोग देर रात तक लीला का आनंद लेते हैं, ऐसा आनंद दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलेगा क्योंकि ये बाबा विश्वनाथ की नगरी है और यहां स्वयं भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं.
जानिए इस बारे में जानकार क्या कुछ कहते हैं
विजय नाथ मिश्र ने बताया कि ये दुनिया में अकेला लीला है और विश्व का सबसे बड़ा रंगमंच है. ऐसी लीला पूरे दुनिया में कहीं नहीं होती है. प्रोफेसर रिचर्ड शेखनर जो अमेरिका के विश्वविख्यात नाटक के प्रोफेसर रहे हैं, उन्होंने इस लीला पर 35 साल रिसर्च किया. उन्होंने 28 शोध सिर्फ लीला पर लिखे हैं. एक लाइन में उन्होंने लिखा कि 'न ऐसे किरदार मिलेंगे न ऐसे राम भक्त मिलेंगे'. उन्होंने बताया कि यह लीला ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि हमारी विरासत है और जब तक यह लीला है तब तक हम इसको महसूस कर सकते हैं. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि हमारा तो यह मानना है ये लीला युगों-युगों तक ऐसे ही चलती रहे और यहां पर राम कथा बहती रहे.