वाराणसी: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद एक बार फिर से चुनावी माहौल बनने लगा है. इस बार सरकार प्रदेश की नहीं बल्कि, लोकल बॉडी में सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई है. निकाय चुनाव आने वाले नवंबर और दिसंबर में प्रस्तावित हैं. इन सबके बीच शहरी क्षेत्र के विस्तार के बाद परिसीमन को मंजूरी मिली है. इसके पश्चात कई शहरी इलाकों का क्षेत्र विस्तृत कर ग्रामीण क्षेत्र के नए इलाकों को वार्ड में शामिल करने की कवायद तेज हो गई है.
इसमें प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के सीमा विस्तार को उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद 1950 में रामनगर की नगर पालिका परिषद के गठन के इतने सालों बाद इसे निगम सीमा में शामिल कर इसका वजूद खत्म करने की कवायद शुरू हुई है. वहीं, 10 वार्ड भी बनारस से खत्म करने की तैयारी शुरू की गई है. लेकिन इसके बाद अब इसे लेकर भी राजनीति शुरू हो गई है. राजनीति इसलिए क्योंकि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि, बीजेपी उन वार्ड, उन नगरपालिका क्षेत्र को ही खत्म कर रही है, जहां निकाय चुनाव में बीजेपी का वजूद नगण्य रहता है. या यूं कहिए कि, इन इलाकों में बीजेपी हमेशा से कमजोर रही है. यानी निकाय चुनावों से पहले नए परिसीमन के बाद बनारस में एक नई राजनीति की शुरुआत हो चुकी है.
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कैबिनेट के फैसले के बाद नए परिसीमन की तैयारी की जा रही है. बजट नोटिफिकेशन के बाद फिर से परिसीमन की रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी और 2011 की जनगणना के अनुसार नगर निगम की आबादी के हिसाब से 87 गांवों को नगर निगम में शामिल करने के बाद इस गांव की लगभग 3.50 लाख आबादी को भी शहरी क्षेत्र में लाया जा रहा है. इसमें राम नगर पालिका और सुजाबाद पंचायत की लगभग 70000 आबादी भी शामिल है.
इतना ही नहीं, इसके अलावा परिसीमन के प्रस्तावों पर यदि मोहर लग जाती है तो, 12 वार्डों की सीमाओं में बदलाव होगा. इसमें राजघाट, सराय सुरजन, नवाबगंज, तुलसीपुर, नरिया, सिगरा, मध्यमेश्वर, रानीपुर, पियरीकला, लहंगपूरा, बागहाड़ा और जमालुद्दीन के वादों की सूरत बदलेगी. जबकि 10 वार्ड खत्म करने की भी तैयारी की जा रही है. इनमें कामेश्वर महादेव वार्ड, राजमंदिर, हड़हा सराय, खोजावा, पानदरीबा, दारानगर, सराय गोवर्धन, शिवाला और रसूलपुर शामिल है.
माना जाता है कि, इन 10 वार्ड में से सिर्फ कामेश्वर महादेव शिवाला और खोजवा को छोड़कर बाकी 7 वार्ड हमेशा से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है. जबकि 1950 में बनाई गई रामनगर पालिका पर अगर नजर डालें तो यहां पर भी हमेशा से कांग्रेस मजबूत रही है. वर्तमान में भी यहां की चेयरमैन कांग्रेस की ही रेखा शर्मा हैं. लेकिन, 72 सालों बाद इस नगर पालिका का वजूद खत्म होने के साथ शहर के 10 वार्ड को खत्म कर नए वार्ड बनाने के साथ ही इन पुराने वार्डों को बड़े वार्डों में शामिल करने के बाद राजनीति भी शुरू हो चुकी है.
समाजवादी पार्टी के एमएलसी और सीनियर लीडर आशुतोष सिन्हा का कहना है कि, बीजेपी हमेशा से ही खत्म करने की राजनीति करती आ रही है. अपना फायदा जहां दिखता है. अपनी मजबूती जहां समझ में आती है. बीजेपी वहीं काम करती है. इतनी पुरानी राम नगर पालिका को खत्म करने के बाद शहर के तमाम वार्ड जहां बीजेपी कमजोर है. उसे खत्म करके विकास को अवरुद्ध करने का काम किया जा रहा है. वहीं, पार्षद की तैयारी करने वाले नेताओं का कहना है कि, उनके लिए भी दिक्कतें आ रही हैं. नए वार्ड में नए तरीके से फिर से नई राजनीति की शुरुआत करनी पड़ेगी. सरकार अपनी ओर ध्यान दे रही है और अपने निर्णय ले रही है. न जनता का सोच रही है, न ही नए नेता जो अभी राजनीति में आने वाले हैं.
कांग्रेस भी इस पूरे मामले में काफी मुखर है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता संजीव सिंह का कहना है कि, इतनी पुरानी नगर पालिका को खत्म करना और अलग-अलग वार्ड को खत्म करके नए वार्ड के रूप में डेवलप करना यह समझ से परे हैं. वह भी उस वार्ड को जहां पर बीजेपी का अस्तित्व हमेशा से कमजोर रहा है. रामनगर में भी बीजेपी नगर पंचायत और नगरपालिका में हमेशा से कमजोर रही है. इसलिए इनको खत्म करके बीजेपी अपने आप को मजबूत करना चाह रही है. लेकिन यह उचित नहीं है.
फिलहाल नगर निगम के 10 पुराने वार्डो का अस्तित्व खत्म होगा और किस रूप में नए वार्ड सामने आएंगे यह फाइनल रिपोर्ट शासन से अनुमति मिलने के बाद ही क्लियर होगी. इस बारे में जिलाधिकारी वाराणसी कौशल राज शर्मा का कहना है कि, नगर निगम के नए परिसीमन का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है. शासन की सहमति के बाद लोगों से आपत्तियां ली जाएंगी. आपत्तियों के निस्तारण के बाद इस पर अंतिम मुहर लगेगी.
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