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वाराणसी: चांदी की वर्क बनाने वाले कारीगरों के मुद्दे क्यों हैं चुनाव से दूर...

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Published : May 1, 2019, 2:33 PM IST

मिठाई, पान और अन्य खाने के सामानों पर चांदी की वर्क उस चीज की सुंदरता पर चार चांद लगा देते हैं. इसके बावजूद इनका काम करने वाले कारीगरों के हाल बदहाल हैं. चुनाव में भी इन मुद्दों पर कोई नहीं हो रही है. आइए इस मुद्दे पर देखते हैं ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क के कारीगरों की बदहाली पर किसी का ध्यान नहीं है.

वाराणसी: चुनाव नजदीक आता है तो नेता हर उस मुद्दे पर ध्यान देने की कोशिश करता है, जिनको 5 सालों तक किसी ने न छुआ हो. इसके बावजूद मिठाइयों, पान और अन्य खाने की चीजों की सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क के कारीगरों की बदहाली पर किसी का ध्यान नहीं है. इस कारोबार में जिले के सैकड़ों परिवार शामिल है.

सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क के कारीगरों की बदहाली पर किसी का ध्यान नहीं है.

यह महत्वपूर्ण कार्य उत्तर प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण जिलों में लंबे वक्त से चल रहा है. इसके बावजूद इस तरफ न किसी सरकार ने ध्यान दिया, न ही वर्तमान सरकार ने इन पर ध्यन दिया. इसकी वजह से आज यह काम दम तोड़ रहा है. हालात यह हैं कि जब एक बार फिर से देश में चुनावी माहौल बना है तो सवाल उठने लगा है कि इस काम को लेकर हालात कभी सुधार पाएंगे. वाराणसी, लखनऊ, प्रयागराज, जौनपुर, कानपुर जैसे शहरों में चांदी की वर्क बनाने वाले कारीगरों की बड़ी आबादी रहती है. इसके बावजूद सरकारी वादों और योजनाओं से दूर यह काम अब दम तोड़ रहा है. जब चुनाव पास है तो अब इस काम से जुड़े लोग भी अपनी आवाज उठा रहे हैं, ताकि सरकार के कानों में उनकी आवाज पहुंच जाए और खत्म हो रहा उनका यह काम बच जाए. चांदी के वर्क बनाने वाले इन कारीगरों की जमीनी हकीकत क्या है. इस काम से जुड़े लोगों के हालात जाना ईटीवी भारत ने.

एक चमड़े की थैली में सिल्वर की पतली-पतली पट्टियों को रखकर सुबह से शाम तक हथौड़े से उनको पीट-पीटकर इस काबिल बनाना कि वह मिठाइयों और पान की सुंदरता बढ़ाकर लोगों की जिंदगी में मिठास खोल सके. बनारस के छत्ता तले इलाके के रहने वाले चांदी की वर्क बनाने वाले मुस्लिम कारीगर बीते 45 सालों से ज्यादा समय से इस काम से जुड़े हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि जहां 2010 से 2014 तक इस काम से बनारस के सिर्फ इस मोहल्ले के 50 से ज्यादा परिवार जुड़े थे. वहीं आज महज तीन परिवार इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं. गलियों में घुसते ही आपको हथौड़े की खटर-पटर की आवाज सुनाई दे जाएगी. इसके बाद जो पुराने बाशिंदे हैं वह समझ जाएंगे कि इन गलियों में चांदी की वर्क बनाने का काम हो रहा है. सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी यह काम होता है, लेकिन बनारस में वर्तमान में 100 से ज्यादा परिवार इस काम से जुड़े हैं. वे शहर के अलग-अलग इलाकों में इस काम को कर रहे हैं. लगभग 10 साल पहले इस काम से 1000 से ज्यादा परिवार जुड़े थे. अब दम तोड़ रहे इस काम की वजह से लोगों ने इससे दूरी बनाना शुरू कर दिया है. किसी सरकारी योजना का कोई भी लाभ इस पेशे से जुड़े कारीगरों को नहीं मिला है. कारीगरों का कहना है कि कितनी सरकारें आईं और चली गईं लेकिन हमारे इस काम पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. आज हालात यह हैं कि एक दिन के दो सौ से ढाई सौ रुपए मिलते हैं. मजदूरी के तौर पर एक दिन में सात ग्राम चांदी की वर्क बनाने में सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक का वक्त लग जाता है.

-कमालुद्दीन, कारीगर


चांदी की वर्क बनाने का काम इस गली में फिलहाल तीन परिवार कर रहे हैं. अब नई पीढ़ी इस पेशे में नहीं आनाा चाह रही है. इसमें मेहनत ज्यादा है और पैसा कम. पुराने लोगों का कहना है कि इस काम से अब किसी का पेट भर पाना मुश्किल है इसलिए नई पीढ़ी कुछ दूसरा काम करके जल्दी और ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में लगी रहती है. गलियों में अब हथौड़े की खटर-पटर बंद होने की कगार पर है. इन सब के बीच सवाल यह उठता है कि क्या सरकारें सिर्फ उन उद्योग या कारीगरों पर ही ध्यान देंगी जो मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं. शायद इस और ध्यान देना बेहद जरूरी है.

-मोहम्मद निशा, कारीगर

वाराणसी: चुनाव नजदीक आता है तो नेता हर उस मुद्दे पर ध्यान देने की कोशिश करता है, जिनको 5 सालों तक किसी ने न छुआ हो. इसके बावजूद मिठाइयों, पान और अन्य खाने की चीजों की सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क के कारीगरों की बदहाली पर किसी का ध्यान नहीं है. इस कारोबार में जिले के सैकड़ों परिवार शामिल है.

सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क के कारीगरों की बदहाली पर किसी का ध्यान नहीं है.

यह महत्वपूर्ण कार्य उत्तर प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण जिलों में लंबे वक्त से चल रहा है. इसके बावजूद इस तरफ न किसी सरकार ने ध्यान दिया, न ही वर्तमान सरकार ने इन पर ध्यन दिया. इसकी वजह से आज यह काम दम तोड़ रहा है. हालात यह हैं कि जब एक बार फिर से देश में चुनावी माहौल बना है तो सवाल उठने लगा है कि इस काम को लेकर हालात कभी सुधार पाएंगे. वाराणसी, लखनऊ, प्रयागराज, जौनपुर, कानपुर जैसे शहरों में चांदी की वर्क बनाने वाले कारीगरों की बड़ी आबादी रहती है. इसके बावजूद सरकारी वादों और योजनाओं से दूर यह काम अब दम तोड़ रहा है. जब चुनाव पास है तो अब इस काम से जुड़े लोग भी अपनी आवाज उठा रहे हैं, ताकि सरकार के कानों में उनकी आवाज पहुंच जाए और खत्म हो रहा उनका यह काम बच जाए. चांदी के वर्क बनाने वाले इन कारीगरों की जमीनी हकीकत क्या है. इस काम से जुड़े लोगों के हालात जाना ईटीवी भारत ने.

एक चमड़े की थैली में सिल्वर की पतली-पतली पट्टियों को रखकर सुबह से शाम तक हथौड़े से उनको पीट-पीटकर इस काबिल बनाना कि वह मिठाइयों और पान की सुंदरता बढ़ाकर लोगों की जिंदगी में मिठास खोल सके. बनारस के छत्ता तले इलाके के रहने वाले चांदी की वर्क बनाने वाले मुस्लिम कारीगर बीते 45 सालों से ज्यादा समय से इस काम से जुड़े हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि जहां 2010 से 2014 तक इस काम से बनारस के सिर्फ इस मोहल्ले के 50 से ज्यादा परिवार जुड़े थे. वहीं आज महज तीन परिवार इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं. गलियों में घुसते ही आपको हथौड़े की खटर-पटर की आवाज सुनाई दे जाएगी. इसके बाद जो पुराने बाशिंदे हैं वह समझ जाएंगे कि इन गलियों में चांदी की वर्क बनाने का काम हो रहा है. सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी यह काम होता है, लेकिन बनारस में वर्तमान में 100 से ज्यादा परिवार इस काम से जुड़े हैं. वे शहर के अलग-अलग इलाकों में इस काम को कर रहे हैं. लगभग 10 साल पहले इस काम से 1000 से ज्यादा परिवार जुड़े थे. अब दम तोड़ रहे इस काम की वजह से लोगों ने इससे दूरी बनाना शुरू कर दिया है. किसी सरकारी योजना का कोई भी लाभ इस पेशे से जुड़े कारीगरों को नहीं मिला है. कारीगरों का कहना है कि कितनी सरकारें आईं और चली गईं लेकिन हमारे इस काम पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. आज हालात यह हैं कि एक दिन के दो सौ से ढाई सौ रुपए मिलते हैं. मजदूरी के तौर पर एक दिन में सात ग्राम चांदी की वर्क बनाने में सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक का वक्त लग जाता है.

-कमालुद्दीन, कारीगर


चांदी की वर्क बनाने का काम इस गली में फिलहाल तीन परिवार कर रहे हैं. अब नई पीढ़ी इस पेशे में नहीं आनाा चाह रही है. इसमें मेहनत ज्यादा है और पैसा कम. पुराने लोगों का कहना है कि इस काम से अब किसी का पेट भर पाना मुश्किल है इसलिए नई पीढ़ी कुछ दूसरा काम करके जल्दी और ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में लगी रहती है. गलियों में अब हथौड़े की खटर-पटर बंद होने की कगार पर है. इन सब के बीच सवाल यह उठता है कि क्या सरकारें सिर्फ उन उद्योग या कारीगरों पर ही ध्यान देंगी जो मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं. शायद इस और ध्यान देना बेहद जरूरी है.

-मोहम्मद निशा, कारीगर

Intro:वाराणसी: चुनाव नजदीक आता है तो नेता हर उस मुद्दे पर ध्यान देने की कोशिश करता है जिनको 5 सालों तक किसी ने छुआ ना हो लेकिन धर्म नगरी वाराणसी ही नहीं उत्तर प्रदेश के कुछ महत्वपूर्ण जिलों में एक ऐसा काम लंबे वक्त से चल रहा है जो है तो काफी पुराना लेकिन इस तरफ ना किसी सरकार ने ध्यान दिया ना ही वर्तमान सरकार ने इन पर नजरें इनायत की जिसकी वजह से आज यह काम दम तोड़ रहा है हालात यह है कि जब एक बार फिर से देश में चुनावी माहौल बना है तो सवाल उठने लगा है कि क्या सरकारें आएंगी और जाएंगी लेकिन इस काम को लेकर हालात कभी सुधार पाएंगे जी हां हम बात कर रहे हैं मिठाइयों पान या फिर खाने पीने की अन्य चीजों की सुंदरता बढ़ाने वाली चांदी की वर्क बनाने वाले कारीगरों की वाराणसी, लखनऊ प्रयागराज, जौनपुर, कानपुर जैसे शहरों में इस काम को बड़ी आबादी करती है लेकिन सरकारी वादों और योजनाओं से दूर यह काम अब दम तोड़ रहा है जब चुनाव पास है तो अब इस काम से जुड़े लोग भी अपनी आवाज उठा रहे हैं ताकि शायद सरकार के कानों में उनकी आवाज पहुंच जाए और खत्म हो रहा उनका यह काम बच जाए क्या है चांदी के वर्क बनाने वाले इन कारीगरों की जमीनी हकीकत क्या है इस काम से जुड़े लोगों के हालात जाना ईटीवी भारत ने.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 एक चमड़े की थैली में सिल्वर की पतली पतली पट्टियों को रखकर सुबह से शाम तक हथौड़े से उनको पीट-पीटकर इस काबिल बनाना कि वह मिठाइयों और पान की सुंदरता बढ़ाकर लोगों की जिंदगी में मिठास खोल सके कुछ ऐसा ही काम करते हैं बनारस के छत्ता तले इलाके के रहने वाले चांदी की वर्क बनाने वाले मुस्लिम कारीगर बीते 45 सालों से ज्यादा वक्त से इस इलाके में रहने वाले मुस्लिम परिवार इस काम से जुड़े हुए चौंकाने वाली बात यह है कि जहां 2010 से 2014 तक इस काम से बनारस के सिर्फ इस मोहल्ले के 50 से ज्यादा परिवार जुड़े थे आज महज 3 परिवार इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं गलियों में घुसते ही आपको हथौड़े की खतर पटर की आवाज सुनाई दी जाएगी जिसके बाद जो पुराने वाशिंदे हैं वह समझ जाएंगे कि इन गलियों में चांदी की वर्क बनाने का काम हो रहा है सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी यह काम होता है लेकिन बनारस में वर्तमान में 100 से ज्यादा परिवार इस काम से जुड़े हैं जो शहर के अलग-अलग इलाकों में इस काम को कर रहे हैं लेकिन लगभग 10 साल पहले इस काम से 1000 से ज्यादा परिवार जुड़े थे लेकिन दम तोड़ रहे इस काम की वजह से लोगों ने इस से दूरी बनाना शुरू कर लिया कोई रिक्शा चला रहा तो कोई ऑटो कोई मजदूरी करके अपना पेट पाल रहा है क्योंकि सच्चाई तो यह है सरकारी योजनाओं का कोई भी लाभ इस पेशे से जुड़े कारीगरों को आज तक नहीं मिला कारीगरों का गाना है कितनी सरकारें आई और चली गई लेकिन हमारे इस काम पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया आज हालात यह हैं 1 दिन के 200 से ढाई सौ रुपए मिलते हैं मजदूरी के तौर पर 1 दिन में 7 ग्राम चांदी की वर्क बनाने में सुबह 7:00 बजे से रात 8:00 बजे तक का वक्त लग जाता है और पूरे दिन की कमाई सिर्फ ढाई सौ रुपए तक होती है जिससे ना घर चलता है ना ही अपना पेट भरता है ऐसी स्थिति में हम क्या चुनावों का मतलब समझें और क्या सरकार ने हमें तो समझ नहीं आ रहा.

बाईट- कमालुद्दीन, कारीगर


Conclusion:वीओ-02 चांदी की वर्क बनाने का काम इस गली में फिलहाल 3 परिवार कर रहे हैं लेकिन नई पीढ़ी अभी और नहीं आना चाह रही है क्योंकि मेहनत ज्यादा है पैसा कम है पुराने लोगों का कहना है कि इस काम से अब किसी का पेट भर पाना मुश्किल है इसलिए नई पीढ़ी कुछ दूसरा काम करके जल्दी पैसे और ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में लगी रहती है इसलिए अब इस काम को लोग छोड़ रहे हैं गलियों में हथौड़े की खतर पटर बंद होने की कगार पर है इन सब के 20 सवाल यह उठता है कि क्या सरकारे सिर्फ उन उद्योग या कारीगरों पर ही ध्यान देंगी जो मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं शायद इस और ध्यान देना बेहद जरूरी है क्योंकि जिन मिठाइयों की रौनक चांदी की वर्क है आज उसे बनाने वाले कारीगर अंधेरी जिंदगी में जीने पर मजबूर सरकारी योजनाओं का लाभ नाइन तक पहुंच रहा है ना इनके इस काम को सरकार तवज्जो दे रही है जिसकी वजह से इन चुनावों में शायद चांदी की वर्क बनाने वाले इन कारीगरों के मुद्दे पर सरकार की लिस्ट से कोसों दूर है.

बाईट- मोहम्मद निशा, कारीगर

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र

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