वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मल्टी डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (multi disciplinary research unit) में कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट (delta plus variant) की जांच यानी जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) शुरू कर दी गई है. इसके लिए आईएमएस बीएचयू के माइक्रोबयॉलजी लैब में पिछले दिनों नई ग्रिड मशीन मंगाई गई थी. इसके पहले जो मशीन बीएचयू में थी, उससे सप्ताह में सिर्फ 100 सैंपल की जांच ही की जा सकती थी, लेकिन अब इस मशीन में सप्ताह भर में 500 सैंपल की जांच की जा सकेगी.
बीएचयू और केजीएमयू में है मशीन
देश में कई हिस्सों में डेल्टा प्लस वैरिएंट (delta plus variant) के मामले देखने में आए हैं, जिसको लेकर सरकार और स्वास्थ्य विभाग पहले से ही सतर्क हो गया है. हालांकि अभी तक पूर्वांचल में डेल्टा प्लस वैरिएंट (delta plus variant) का कोई भी मामला सामने नहीं आया है. यूपी में डेल्टा प्लस वैरिएंट के मामलों में जांच की व्यवस्था सिर्फ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और केजीएमयू में है.
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, केरल में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट 'डेल्टा प्लस' (delta plus variant) के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में बाहर से आने वाले यात्रियों से यूपी में भी खतरा बढ़ गया है. इसका संक्रमण रोकने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग (genome sequencing) टेस्ट पर जोर दिया जा रहा है. प्रदेश में जीनोम सिक्वेंसिंग (genome sequencing) के लिए केजीएमयू और बीएचयू की लैब चयनित की गई हैं. इनमें सभी व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने के निर्देश भी सीएम ने दिये हैं. सीएम के निर्देश और कोरोना के बदलते स्वरूप को देखते हुए आईएमएस बीएचयू की माइक्रोबयॉलजी लैब में सुविधाओं का विस्तार लगातार किया जा रहा है. केजीएमयू में जनवरी में ही जीन सीक्वेंसिंग की जांच ट्रायल के तौर पर शुरू कर दी गई थी. इससे पहले सैंपल पुणे भेजे जाते थे.
केमिकल आना बाकी
डेल्टा प्लस वैरिएंट की जांच के लिए बीएचयू लैब में अभी पर्याप्त मात्रा में केमिकल आना बाकी है. जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चलेगा कि कहां पर नए वैरिएंट प्लस मिल रहे हैं. बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को बीएचयू में डेल्टा प्लस वैरिएंट की जांच के लिए जरूरी निर्देश दिए थे.
ये टीम कर रही है कार्य
बीएचयू के मल्टी डिसपिलनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के इंचार्ज प्रोफेसर रॉयन सिंह और प्रोफेसर एसपी मिश्रा के नेतृत्व में डॉक्टर चेतना सहानी, शशिकांत डॉक्टर प्रियोनिल बासु जीनोम सिक्वेंस में जुट गए हैं. प्रदेश सरकार के निर्देश पर आपस के जिलों के सैंपल की जांच की भी योजना बनाई जा रही है.
पुणे के लैब में भेजा जाता था सैंपल्स
जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए अभी तक सैम्पल्स को पुणे की लैब में भेजा जाता था. जिसकी रिपोर्ट आने में 15 से 20 दिनों का समय लगता था, लेकिन बीएचयू में जांच की शुरुआत के बाद सैम्पल्स कलेक्शन के 5 दिन बाद रिपोर्ट आएगी.
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क्या होता है जीनोम सिक्वेंसिंग
असल में जीनोम सिक्वेंसिंग(genome sequencing) एक प्रकार से वायरस का डाटाबेस होता है. इस डाटाबेस से ही उस वायरस के बारे में सारी जानकारी मिलती है. मसलन कोई वायरस कैसा है, कैसा दिखता है इस तरह की तमाम जानकारी है जीनोम से ही मिलती है. इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है. वायरस के बारे में जानने की संपूर्ण विधि को जीनोम सिक्वेंसिंग कहते हैं.