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निकाय चुनाव से पहले वार्ड के नाम बदलने पर सियासी घमासान, कांग्रेस और सपा ने लगाए ये आरोप - जैतपुरा वार्ड का नाम बागेश्वरी देवी

वाराणसी में नगर निगम चुनाव से पहले वार्ड के नाम बदलने पर सियासी घमासान शुरू हो गया है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भाजपा पर धर्म के नाम पर धर्म के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. देखिए यह रिपोर्ट

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वाराणसी में नगर निगम चुनाव
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Published : Nov 18, 2022, 4:11 PM IST

वाराणसी: नगर निगम का चुनाव जल्द होने वाला है. इस इलेक्शन को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना भी शुरू कर दिया है. एक तरफ जहां परिसीमन आने के बाद नये वार्ड नगर निगम सीमा में शामिल कर पुराने वार्डों को इनमें मर्ज करते हुए इनके नए नामकरण किए गए हैं. तो वहीं, कई नए वार्ड भी बना दिए गए हैं लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में वार्ड परिवर्तन के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है.

इसकी बड़ी वजह यह है कि एक तरफ जहां 10 नए वार्ड बनने के बाद इनके नाम वहां मौजूद हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिरों के नाम पर कर दिए गए हैं. वहीं, ज्ञानवापी आदि विश्वेश्वर समेत बिंदुमाधव और कृति वाशेश्वर जैसे धार्मिक स्थल जो विवादित माने जाते हैं उनके नाम पर नए वार्डों का नाम रख दिया गया है. जो विवाद की वजह बनता जा रहा है.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रो. हेमंत मालवीय ने दी जानकारी.
दरअसल, वाराणसी में नए परिसीमन के बाद बेनियाबाग क्षेत्र जो मुस्लिम बाहुल्य माना जाता है, उस वार्ड का नाम परिवर्तन करके आदि विश्वेश्वर कर दिया गया है. आदि विश्वेश्वर का स्थान ज्ञानवापी को माना जाता है. इसी का विवाद भी कोर्ट में है. वहीं, पंचगंगा घाट के निकट मौजूद विवादित धरहरा मस्जिद जिसे बिंदु माधव मंदिर के रूप में जाना जाता रहा है, उस स्थान के नाम पर गढ़वासी टोला का नाम रखा गया है. जो पुराने वार्ड के रूप में पहचान बना चुका था. इसके अलावा अनार वाली मस्जिद के रूप में कतुआपुरा वार्ड के नाम में भी परिवर्तन कर दिया गया है. अब इस वार्ड को यहां इस विवादित स्थल पर मौजूद कृति वाशेश्वर महादेव वार्ड के नाम से जाना जाएगा. इन तीन वार्डों के नाम परिवर्तन को भले ही बड़े ही नॉर्मल तरीके से बीजेपी देख रही हो, लेकिन इस पर राजनीति होना जायज है. 3 स्थल ऐसे माने जाते हैं जो विवादित हैं और ऐसा इतिहास में वर्णित है कि 1669 में औरंगजेब ने वाराणसी के तीन स्थानों पर प्राचीन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था. एक तरफ जहां इन मंदिरों के अस्तित्व खत्म होने की कगार पर थे तो योगी सरकार ने वार्डों के नाम इन्हीं के नाम पर रखकर इन्हें नई पहचान देने की कोशिश की है. इसके बाद राजनीति होना जायज है.

कुछ ऐसे वार्ड भी हैं जो मुस्लिम बाहुल्य इलाके माने जाते थे. यहां वोटर्स के हिसाब से मुस्लिम कम्युनिटी की आबादी भी बहुत अच्छी खासी संख्या में थी. लेकिन, इन वार्डों को पुराने वार्डों में मर्ज करते हुए मौजूद मंदिरों के नाम पर कर दिया गया है. जैतपुरा वार्ड का नाम बागेश्वरी देवी, नवाबगंज वार्ड का नाम दुर्गाकुंड, लहंगापुरा वार्ड पितृकुण्ड, छितनपुरा का नाम ओमकालेश्वर, लक्सा वार्ड का नाम सूर्यकुंड, हबीबपुरा का नाम पिशाचमोचन, नवाबपुरा का नाम हनुमान फाटक कर दिया गया है.

इसे भी पढ़े-प्रदेश में बेहताशा बढ़ रहे सर्किल रेट, अचल संपत्ति खरीदने वाले लोग हो रहे परेशान

इस बारे में भारतीय जनता पार्टी के महानगर मंत्री जगदीश त्रिपाठी का कहना है कि सनातन धर्म हमारी पहचान है. भारत को सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति और धर्म के रूप में जाना जाता है. इसलिए यदि काशी में मौजूद मंदिरों के पुरातन महत्व के नाम पर वार्डों का नाम रखा गया है, तो इसमें आपत्ति होनी ही नहीं चाहिए. इसमें कोई राजनीति नहीं है. वहीं, कांग्रेस नेता अजय राय का कहना है कि यह सिर्फ और सिर्फ जनता को भ्रमित करने का तरीका है. काम किया नहीं गया है, हाउस टैक्स जल्द बढ़ा दिया गया है. गड्ढा मुक्ति की बात करके गड्ढा युक्त सड़के अब तक बनी हुई है. वार्डों में विकास जो हुए ही नहीं उसकी सच्चाई को छुपाने के लिए भारतीय जनता पार्टी नाम परिवर्तन का काम करती है.

पहले जिले के नाम और अब वार्ड स्तर पर नाम बदलकर लोगों को सिर्फ भ्रम में डालने का काम हो रहा है. वहीं, समाजवादी पार्टी के नेता मनोज यादव का कहना है कि धर्म के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. यदि मंदिरों की बात करें तो बनारस की हर गली में मंदिर है. वैसे तो बनारस का नाम ही बदल देना चाहिए. वहीं, क्षेत्रीय जनता का भी यही मानना है कि नाम परिवर्तन से कुछ नहीं होने वाला. पुराने वार्ड का नाम रखकर भी विकास कार्य आगे बढ़ाए जा सकते थे.

जनता को सिर्फ विकास चाहिए, रोजगार चाहिए. ताकि, वह खुश रहे. राजनीति नहीं होनी चाहिए. वहीं, पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रोफेसर हेमंत मालवीय का कहना है कि सरकार के किसी भी काम का विरोध करना विपक्ष की जिम्मेदारी है. यदि विपक्ष यह नहीं करता तो अच्छा विपक्ष कहा ही नहीं जा सकता. बसपा या सपा के शासनकाल में जिन जगहों के नाम परिवर्तन किए गए उस समय बीजेपी ने विरोध किया. अब जब बीजेपी अपने सरकार में नाम परिवर्तन कर रही है तो इसका विरोध जायज है. इसलिए इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए.

यह भी पढ़े-Up Nikay Chunav: 57 के प्लान से बनारस में निकाय चुनावों को साधने की तैयारी कर रही बीजेपी

वाराणसी: नगर निगम का चुनाव जल्द होने वाला है. इस इलेक्शन को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना भी शुरू कर दिया है. एक तरफ जहां परिसीमन आने के बाद नये वार्ड नगर निगम सीमा में शामिल कर पुराने वार्डों को इनमें मर्ज करते हुए इनके नए नामकरण किए गए हैं. तो वहीं, कई नए वार्ड भी बना दिए गए हैं लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में वार्ड परिवर्तन के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है.

इसकी बड़ी वजह यह है कि एक तरफ जहां 10 नए वार्ड बनने के बाद इनके नाम वहां मौजूद हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिरों के नाम पर कर दिए गए हैं. वहीं, ज्ञानवापी आदि विश्वेश्वर समेत बिंदुमाधव और कृति वाशेश्वर जैसे धार्मिक स्थल जो विवादित माने जाते हैं उनके नाम पर नए वार्डों का नाम रख दिया गया है. जो विवाद की वजह बनता जा रहा है.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रो. हेमंत मालवीय ने दी जानकारी.
दरअसल, वाराणसी में नए परिसीमन के बाद बेनियाबाग क्षेत्र जो मुस्लिम बाहुल्य माना जाता है, उस वार्ड का नाम परिवर्तन करके आदि विश्वेश्वर कर दिया गया है. आदि विश्वेश्वर का स्थान ज्ञानवापी को माना जाता है. इसी का विवाद भी कोर्ट में है. वहीं, पंचगंगा घाट के निकट मौजूद विवादित धरहरा मस्जिद जिसे बिंदु माधव मंदिर के रूप में जाना जाता रहा है, उस स्थान के नाम पर गढ़वासी टोला का नाम रखा गया है. जो पुराने वार्ड के रूप में पहचान बना चुका था. इसके अलावा अनार वाली मस्जिद के रूप में कतुआपुरा वार्ड के नाम में भी परिवर्तन कर दिया गया है. अब इस वार्ड को यहां इस विवादित स्थल पर मौजूद कृति वाशेश्वर महादेव वार्ड के नाम से जाना जाएगा. इन तीन वार्डों के नाम परिवर्तन को भले ही बड़े ही नॉर्मल तरीके से बीजेपी देख रही हो, लेकिन इस पर राजनीति होना जायज है. 3 स्थल ऐसे माने जाते हैं जो विवादित हैं और ऐसा इतिहास में वर्णित है कि 1669 में औरंगजेब ने वाराणसी के तीन स्थानों पर प्राचीन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था. एक तरफ जहां इन मंदिरों के अस्तित्व खत्म होने की कगार पर थे तो योगी सरकार ने वार्डों के नाम इन्हीं के नाम पर रखकर इन्हें नई पहचान देने की कोशिश की है. इसके बाद राजनीति होना जायज है.

कुछ ऐसे वार्ड भी हैं जो मुस्लिम बाहुल्य इलाके माने जाते थे. यहां वोटर्स के हिसाब से मुस्लिम कम्युनिटी की आबादी भी बहुत अच्छी खासी संख्या में थी. लेकिन, इन वार्डों को पुराने वार्डों में मर्ज करते हुए मौजूद मंदिरों के नाम पर कर दिया गया है. जैतपुरा वार्ड का नाम बागेश्वरी देवी, नवाबगंज वार्ड का नाम दुर्गाकुंड, लहंगापुरा वार्ड पितृकुण्ड, छितनपुरा का नाम ओमकालेश्वर, लक्सा वार्ड का नाम सूर्यकुंड, हबीबपुरा का नाम पिशाचमोचन, नवाबपुरा का नाम हनुमान फाटक कर दिया गया है.

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इस बारे में भारतीय जनता पार्टी के महानगर मंत्री जगदीश त्रिपाठी का कहना है कि सनातन धर्म हमारी पहचान है. भारत को सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति और धर्म के रूप में जाना जाता है. इसलिए यदि काशी में मौजूद मंदिरों के पुरातन महत्व के नाम पर वार्डों का नाम रखा गया है, तो इसमें आपत्ति होनी ही नहीं चाहिए. इसमें कोई राजनीति नहीं है. वहीं, कांग्रेस नेता अजय राय का कहना है कि यह सिर्फ और सिर्फ जनता को भ्रमित करने का तरीका है. काम किया नहीं गया है, हाउस टैक्स जल्द बढ़ा दिया गया है. गड्ढा मुक्ति की बात करके गड्ढा युक्त सड़के अब तक बनी हुई है. वार्डों में विकास जो हुए ही नहीं उसकी सच्चाई को छुपाने के लिए भारतीय जनता पार्टी नाम परिवर्तन का काम करती है.

पहले जिले के नाम और अब वार्ड स्तर पर नाम बदलकर लोगों को सिर्फ भ्रम में डालने का काम हो रहा है. वहीं, समाजवादी पार्टी के नेता मनोज यादव का कहना है कि धर्म के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. यदि मंदिरों की बात करें तो बनारस की हर गली में मंदिर है. वैसे तो बनारस का नाम ही बदल देना चाहिए. वहीं, क्षेत्रीय जनता का भी यही मानना है कि नाम परिवर्तन से कुछ नहीं होने वाला. पुराने वार्ड का नाम रखकर भी विकास कार्य आगे बढ़ाए जा सकते थे.

जनता को सिर्फ विकास चाहिए, रोजगार चाहिए. ताकि, वह खुश रहे. राजनीति नहीं होनी चाहिए. वहीं, पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रोफेसर हेमंत मालवीय का कहना है कि सरकार के किसी भी काम का विरोध करना विपक्ष की जिम्मेदारी है. यदि विपक्ष यह नहीं करता तो अच्छा विपक्ष कहा ही नहीं जा सकता. बसपा या सपा के शासनकाल में जिन जगहों के नाम परिवर्तन किए गए उस समय बीजेपी ने विरोध किया. अब जब बीजेपी अपने सरकार में नाम परिवर्तन कर रही है तो इसका विरोध जायज है. इसलिए इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए.

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