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पीएम मोदी की मेगा विक्ट्री, तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड

लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा ने एक बार फिर इतिहास दोहराया और पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में सरकार बनाने जा रही है. इस दौरान यूपी की सियासत में भी खूब उथल-पुथल हुई, लेकिन काशी में हुई पीएम मोदी की ऐतिहासिक जीत कहीं न कहीं जनता के प्रधानमंत्री पर विश्वास का साफ उदाहरण दर्शाता है.

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Published : May 24, 2019, 4:21 PM IST

काशी की जनता से मिला भरपूर समर्थन.

वाराणसी : लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का खासा महत्व होता है. कहा भी जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, क्योंकि लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें इसी राज्य में हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश की बनारस सीट इसलिए भी खास हो जाती है क्योंकि यहीं से जीतकर नरेन्द्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. फिर दूसरी बार लोकसभा चुनाव 2019 में यहीं से उम्मीदवारी दर्ज की. उम्मीदवारी भी ऐसी कि दूसरी बार के चुनाव में खुद अपना ही पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए नरेन्द्र मोदी ने भारी मतों से जीत दर्ज की.

पिछले लोकसभा चुनाव यानि साल 2014 में जहां उनकी जीत का अंतर 3, 71, 784 मतों का था, वहीं इसबार उनकी जीत का अंतर 4, 79, 505 मतों का रहा. बात करें 2014 के आंकड़ों की तो तब के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को लगभग 3,71,784 वोटों के भारी अंतर से हराया था. तब नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.

काशी की जनता से मिला भरपूर समर्थन.

वहीं 2019 के चुनावों में उत्तर प्रदेश की सियासत बदली हुई नजर आई. 2014 में नरेन्द्र मोदी के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे आप नेता अरविंद केजरीवाल ने इसबार मोदी के खिलाफ चुनाव न लड़ने का फैसला कर लिया. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस काफी सोच विचार के बाद भी यहां कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा नहीं कर सकी और मजबूरन अजय राय को ही फिर से सियासी मैदान में उतारने का फैसला किया. वाराणसी लोकसभा सीट पर नामांकन के दौरान भी काफी उथल-पुथल का माहौल रहा. बीएसएफ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव ने सपा से नामांकन दाखिल करने की कोशिश की. राजनीतिक विश्लेषक उसे एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी मान भी रहे थे. तभी चुनाव आयोग ने सपा को कड़ा झटका देते हुए जरूरी कागजों के अभाव में तेज बहादुर का नामांकन रद्द कर दिया. आखिरकार सपा ने फिर अपने पुराने उम्मीदवार शालिनी यादव को यहां से लड़ाने का फैसला किया.

बात आंकड़ों की करें तो इसबार पीएम मोदी को वाराणसी लोक सभा सीट से 6,74,664 वोट मिले. वहीं गठबंधन प्रत्याशी शालिनी यादव को 1,95,159 वोट के साथ हार का सामना करना पड़ा. इसी के साथ इसबार पीएम मोदी की जीत का अंतर 4, 79, 505 मतों का रहा. वहीं इस बार रिकॉर्ड तोड़ने की बात करें तो साल 2014 के मुकाबले 2019 में उनकी जीत का अंतर 1,07,721 मत अधिक है. गौर करने की बात यह है कि काशी में इसबार मतदान का प्रतिशत 2014 के मुकाबले कम रहा. इसके बावजूद भी पीएम मोदी को पिछली बार की तुलना में इसबार ज्यादा वोट मिले हैं.

वाराणसी : लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का खासा महत्व होता है. कहा भी जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, क्योंकि लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें इसी राज्य में हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश की बनारस सीट इसलिए भी खास हो जाती है क्योंकि यहीं से जीतकर नरेन्द्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. फिर दूसरी बार लोकसभा चुनाव 2019 में यहीं से उम्मीदवारी दर्ज की. उम्मीदवारी भी ऐसी कि दूसरी बार के चुनाव में खुद अपना ही पिछला रिकॉर्ड तोड़ते हुए नरेन्द्र मोदी ने भारी मतों से जीत दर्ज की.

पिछले लोकसभा चुनाव यानि साल 2014 में जहां उनकी जीत का अंतर 3, 71, 784 मतों का था, वहीं इसबार उनकी जीत का अंतर 4, 79, 505 मतों का रहा. बात करें 2014 के आंकड़ों की तो तब के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को लगभग 3,71,784 वोटों के भारी अंतर से हराया था. तब नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर रहे अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.

काशी की जनता से मिला भरपूर समर्थन.

वहीं 2019 के चुनावों में उत्तर प्रदेश की सियासत बदली हुई नजर आई. 2014 में नरेन्द्र मोदी के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे आप नेता अरविंद केजरीवाल ने इसबार मोदी के खिलाफ चुनाव न लड़ने का फैसला कर लिया. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस काफी सोच विचार के बाद भी यहां कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा नहीं कर सकी और मजबूरन अजय राय को ही फिर से सियासी मैदान में उतारने का फैसला किया. वाराणसी लोकसभा सीट पर नामांकन के दौरान भी काफी उथल-पुथल का माहौल रहा. बीएसएफ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव ने सपा से नामांकन दाखिल करने की कोशिश की. राजनीतिक विश्लेषक उसे एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी मान भी रहे थे. तभी चुनाव आयोग ने सपा को कड़ा झटका देते हुए जरूरी कागजों के अभाव में तेज बहादुर का नामांकन रद्द कर दिया. आखिरकार सपा ने फिर अपने पुराने उम्मीदवार शालिनी यादव को यहां से लड़ाने का फैसला किया.

बात आंकड़ों की करें तो इसबार पीएम मोदी को वाराणसी लोक सभा सीट से 6,74,664 वोट मिले. वहीं गठबंधन प्रत्याशी शालिनी यादव को 1,95,159 वोट के साथ हार का सामना करना पड़ा. इसी के साथ इसबार पीएम मोदी की जीत का अंतर 4, 79, 505 मतों का रहा. वहीं इस बार रिकॉर्ड तोड़ने की बात करें तो साल 2014 के मुकाबले 2019 में उनकी जीत का अंतर 1,07,721 मत अधिक है. गौर करने की बात यह है कि काशी में इसबार मतदान का प्रतिशत 2014 के मुकाबले कम रहा. इसके बावजूद भी पीएम मोदी को पिछली बार की तुलना में इसबार ज्यादा वोट मिले हैं.

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पीएम मोदी


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