वाराणसी/लखनऊ : 10 सितंबर को पूरे विश्व में विश्व आत्महत्या निवारण दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को आत्महत्या के निवारण के उपायों से अवगत कराना है.
बता दें कि कोरोना महामारी के कारण आत्महत्या के विचार एवं प्रयास में वृद्धि देखी जा रही है. इसे देखते हुए पहली बार 10 सितंबर 2003 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने इस दिवस की स्थापना की थी. तब से प्रत्येक वर्ष, IASP 60 से अधिक देशों में आत्महत्या को रोकने के लिए सैकड़ों कार्यक्रम आयोजित करता है.
हर वर्ष वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे (World Suicide Prevention Day) की थीम अलग होती है. इस बार इसकी थीम “Creating Hope Through Action” रखी गयी है. यह थीम आत्महत्या (Suicide) को रोकने की दिशा में एक सामुहिक पहल का वादा करती है. इस दिवस का उद्देश्य लोगों को हर कीमत पर सुसाइड करने और इसके बारे में सोचने (Suicidal symptoms) से रोकना है.
उधर, यूपी में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं के आत्महत्या का प्रयास करने की बात भी सामने आ रही है. इसका खुलासा केजीएमयू के मनोरोग विभाग द्वारा की गई स्टडी में सामने आया है.
आत्महत्या के क्या कारण है, इसे कैसे रोका जा सकता है, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम ने सर सुंदरलाल अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. मनोज तिवारी से ख़ास बातचीत की.
आत्महत्या हैं बेहद घातक
ईटीवी भारत से बातचीत में डॉ. मनोज तिवारी ने बताया कि आत्महत्या एक असामान्य व्यवहार है. इसमें प्राणी स्वयं की हत्या कर लेता है. पहले व्यक्ति में बार-बार आत्महत्या के विचार आते हैं. वह अनेक प्रश्नों से जूझता रहता है और फिर आत्महत्या का प्रयास करता है. लेकिन आत्महत्या के सभी प्रयास सफल नहीं होते. बताया कि आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि 25 व्यक्तियों द्वारा आत्महत्या का प्रयास करने पर उनमें से किसी एक व्यक्ति की मौत होती है.
हर 40 सेकेंड में लोग करते हैं आत्महत्या
मनोचिकित्सक डॉ. मनोज तिवारी ने बताया कि दुनिया में हर 40 सेकेंड पर एक व्यक्ति की मृत्यु आत्महत्या से होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विगत 45 वर्षों में आत्महत्या की दर में लगभग 60% की वृद्धि हुई है. वर्ष में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु आत्महत्या के कारण होती है. बताया कि विश्व में होने वाले कुल आत्महत्याओं में से 21 प्रतिशत अकेले भारत में होती है.
भारत में प्रति एक लाख में 11 लोग आत्महत्या करते हैं. बताया कि एक पत्रिका के सर्वे के अनुसार विश्व की कुल 18 प्रतिषशत महिलाएं भारत में रहती हैं जबकि विश्व में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कुल आत्महत्या में भारतीय महिलाओं की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत है.
बताया कि 15 - 24 वर्ष के लोगों के मृत्यु का आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा कारण है. महिलाओं द्वारा आत्महत्या का प्रयास 3 गुना अधिक किया जाता है. 81 प्रतिशत लोग आत्महत्या करने से पूर्व इसका संकेत अवश्य देते हैं. किसी न किसी से इसके बारे में चर्चा जरूर करते हैं या लिखते हैं.
मनोचिकित्सक ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण लोग तनाव, दुश्चिंता, भय, अनिश्चितता, आर्थिक समस्याएं, नकारात्मक संवेग, क्रोध, नींद की समस्या, नौकरी छोड़ जाने, नशे का अधिक प्रयोग, अकेलापन जैसी अनेक समस्याओं से बढ़ी हैं. यह आत्महत्या के जोखिम को बढ़ाता है. उन्होंने बताया कि सुसाइड प्रीवेंशन इंडिया फाउंडेशन (एसपीआईएफ) ने एक सर्वे के आधार पर बताया कि कोरोना महामारी के कारण लोगों में आत्महत्या के विचार व प्रयास कई गुना बढ़ गया है.
महिलाएं ज्यादा कर रहीं आत्महत्या का प्रयास
केजीएमयू के मनोरोग विभाग के डॉ. आदर्श त्रिपाठी के मुताबिक यूपी में आत्महत्या के अधिकतर केस ट्रॉमा सेंटर रेफर होकर आते हैं. यहां आत्महत्या के प्रयास के 250 केसों की स्टडी की गई. उनके आत्महत्या के प्रयास के कारणों को खंगाला गया. इलाज के साथ-साथ काउंसलिंग कर आत्महत्या करने वालों के मन के राज को जानने की कोशिश की गई. स्टडी में पाया गया कि आत्महत्या के प्रयास में भर्ती हुए मरीजों में महिलाओं की तादाद पुरुषों से दो गुना है.
70 फीसद युवा लगाते हैं मौत को गले
केजीएमयू में भर्ती 250 मरीजों में 70 फीसद युवक-युवतियां थे. इनमें ज्यादातर की उम्र 20 से 35 वर्ष के बीच रही. वहीं इनमें 65 फीसद में आत्महत्या के लिए कदम उठाने का कारण पारिवारिक कलह, रिश्तों में अनबन, ब्रेकअप, एक्जाम में फेल होना, व्यवसाय में घाटा व आर्थिक समस्या बताई गई.
वहीं, 35 फीसद में मानसिक बीमारी, कैंसर समेत अन्य असाध्य रोग व क्रोनिक पेन डिजीज आदि पाए गए. इन्होंने बीमारी से हताश होकर मौत को गले लगाने का प्रयास किया.
मेंटल डिसऑर्डर भी बनती है वजह
कई तरह के मेंटल डिसऑर्डर भी आत्महत्या के कारण बनते हैं. इनमें डिप्रेशन, बायपोलर डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया, पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, एंजाइटी डिसऑर्डर आदि शामिल हैं. इसके अलावा बहुत से लोग ज्यादा शराब पीने या नशे में होने के कारण भी आत्महत्या कर लेते हैं. वहीं, राज्य में आत्महत्या के लिए लोग हैंगिग व पेस्टीसाइड के इस्तेमाल का रास्ता चुनते हैं.
दुनिया में हर साल 8 लाख लोग कर लेते हैं आत्महत्या
दुनिया में हर साल 8 लाख लोगों की मौत आत्महत्या के कारण हो जाती है. वहीं देश के कुल आत्महत्या के मामलों की बात करें तो पुरुषों की आत्महत्या से ज्यादा जानें जा रहीं हैं. देश में प्रति 1 लाख महिलाओं में 16.4 महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं जबकि प्रति 1 लाख पुरुषों में 25.8 के आत्महत्या का औसत आ रहा है.
आत्महत्या के कारण
- आर्थिक तनाव
- सामाजिक अलगाव की स्थिति
- प्रिय जनों से मुलाकात न कर पाना
- स्वस्थ मनोरंजन की कमी
- नौकरी छूट जाना
- सामुदायिक क्रियाकलापों में शामिल न होना
- धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता न करना
- घरेलू कलह
- समायोजन संबंधी समस्याएं
- अनिश्चितता एवं भय का माहौल
- मानसिक विकार
- भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाना
- समायोजन क्षमता की कमी
- आत्महत्या का विचार रखने वाले व्यक्ति के लक्षण
- बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना (वास्तव में व्यक्ति आत्महत्या करने से पूर्व अपने परिवार, दोस्त व परिचितों से इसके बारे में चर्चा करता है ताकि लोग उसकी सहायता करें.)
- निराशावादी सोच प्रकट करना. कहना कि मैं जी कर क्या करूंगा, मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है.
- उच्चस्तर का दोषभाव व्यक्त करना. असहाय महसूस करना. अपने को मूल्यहीन समझना. जोखिम पूर्ण व्यवहार करना.
- अचानक से व्यवहार एवं दिनचर्या में परिवर्तन होना. नशे का बहुत अधिक उपयोग करना.
- अपने पसंदीदा कार्यों में भी अरुचि दिखाना. परिवार व मित्रों से दूरी बना लेना.
- स्वयं को समाप्त करने का अवसर एवं साधन तलाश करना.
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आत्महत्या निवारण के उपाय
- शारीरिक व मानसिक रुप से लोगों से जुड़े रहें क्योंकि अकेलापन आत्महत्या के लिए एक बड़ा जोखिम कारक है.
- अपने उत्साह को बनाए रखें तथा दूसरों का भी उत्साहवर्धन करते रहें.
- स्वास्थ संबंधी समस्या होने पर उपचार कराएं. अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें.
- मन में आत्महत्या का विचार आने पर प्रशिक्षित एवं अनुभवी मनोवैज्ञानिक से परामर्श लें. धैर्य बनाए रखें. सोच को सकारात्मक रखें.
- उन स्थितियों पर ध्यान दें जो आपके नियंत्रण में हो.
- अपने रुचियां व शौक को भी पर्याप्त समय एवं महत्व प्रदान करें. स्वस्थ मनोरंजन करें.
- परिवार के साथ धनात्मक समय व्यतीत करें. बच्चों के साथ खेलें.
- अपने सृजनात्मक क्षमताओं का विकास करें अपने को स्वयं प्रेरित करें.
- जीवन के अच्छे दिनों एवं घटनाओं का स्मरण करें.
आत्महत्या निवारण में परिवार निभाए अपनी जिम्मेदारी
- आत्महत्या के विचार रखने वाले व्यक्ति से बातचीत करें ताकि वह अपनी भावनाओं को साझा कर सकें.
- ऐसे व्यक्ति को सांत्वना एवं साम्वेगिक समर्थन दें.
- जिनमें आत्महत्या का उच्च जोखिम हो, उन्हें अकेला कभी न छोड़ें. आत्महत्या के साधनों को उनसे दूर रखें.किसी को बार-बार दोष न दें और न डांटे.
- परिवार में मनमुटाव की स्थिति को लंबे समय तक जारी न रखें. परिवार में किसी बात को लेकर बहस हो तो उसे यथाशीघ्र समाप्त करने का प्रयास करें.
- परिवार में आलोचनात्मक बातें नहीं होनी चाहिए.
- बातचीत में नकारात्मकता नहीं होनी चाहिए. परिवार में सकारात्मक वातावरण बनाकर रखें. साथ ही घर में अध्ययन, पूजा-पाठ व उत्सव को महत्व दें.
- निराशा का भाव दिखाई पड़े तो बातचीत करके उसकी हौसला अफजाई करें. आत्महत्या के लक्षण दिखाई पड़ें तो मनोचिकित्सा को दिखाएं.
आत्महत्या निवारण में शिक्षक करें ये कार्य
- छात्र की कमजोरियों को सार्वजनिक न करें.
- छात्र की गलतियों को व्यक्तिगत रूप से अवगत कराकर सुधार का अवसर दें.
- सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा न करें.
- दूसरे छात्रों से अतार्किक रूप से तुलना न करें. छात्रों को क्षमता से अधिक निष्पादन के लिए दबाव न दें.
- छात्रों के प्रति सौहार्दपूर्ण व सहयोगात्मक व्यवहार रखें. छात्रों का उत्साहवर्धन करें.
- छात्रों को समस्या समाधान में आत्मनिर्भर बनाएं.
- छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना का विकास करें.
- छात्रों को ऐसे कार्य का अवसर दें जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़े.
- छात्रों के व्यवहार में असामान्य परिवर्तन होने पर अभिभावक से बातचीत करें.
- स्कूल व कक्षा का वातावरण तनाव रहित रखें.
गौरतलब है कि छोटे-छोटे प्रयासों से हम सब मिलकर आत्महत्या के भाव को अपने और अपनों से दूर रख सकते हैं. आत्महत्या को हराने के लिए हम सबको एक दूसरे के प्रति सौहार्दपूर्ण भावना के साथ सहयोग करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी. यह बचपन से ही परवरिश के माध्यम से बच्चों में विकसित की जा सकती है.