वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) में कार्यरत वनस्पति विज्ञानी डॉ. अखिलेश कुमार की खोज के इस्तेमाल के लिए अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनी न्यूबेस थेराप्युटिक्स ने लाइसेंस लिया है. जी हां डॉ. अखिलेश कुमार ने क्रिसपर-कैस9 आधारित डीएनए रूपांतरण,जीनोम एडिटिंग में बेहतर गाइड-आरएनए की पहचान के लिए आसान तथा प्रभावी तरीका विकसित किया है.
शोधकर्ता डॉ. अखिलेश कुमार (bhu scientist dr akhilesh kumar) ने कहा कि जीनोम एडिटिंग की आवश्यकता दवा निर्माण, कृषि अनुसंधान तथा वैज्ञानिक शोध (Dr Akhilesh Kumar Research) के कई क्षेत्रों में पड़ती है. जीनोम एडिटिंग के लिए कई तकनीकें उपलब्ध है, जिनमें से क्रिस्पर-कस 9 सबसे नई तकनीक है, जो न केवल सबसे ज्यादा प्रभावी और आसान है बल्कि किफायती भी है. बड़ी बात यह है कि BHU के विज्ञानी ने इस आसन तकनीकी की खोज की है, जिसे अमेरिका भी सराह रहा है.
जीनोम एडिटिंग के लिए क्रिस्पर-कस 9 (CRISPR-Cas 9 for genome editing) है सबसे प्रभावी: किसी जीन को एडिट करने के लिए कई गाइड-आरएनए का प्रयोग किया जा सकता है, हलाकि कौन सा गाइड-आरएनए सबसे बेहतर काम करेगा इसका अनुमान लगाना कठिन होता है.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित विज्ञान संस्थान के वनस्पति विज्ञान विभाग में सहायक आचार्य डॉ. अखिलेश कुमार ने सबसे बेहतर काम करने वाले गाइड-आरएनए की पहचान का एक आसान तथा प्रभावी तरीका खोजा है. अमेरिका के मयामी विश्विद्यालय में डा फैंगलिआंग झांग की लैब में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च के दौरान डॉ. कुमार ने यह खोज की थी.
अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनी न्यूबेस थेराप्युटिक्स ने लिया लाइसेंस: इस तरीके को विकसित करने के लिए उन्होंने एक निष्क्रिय फ्लोरेसेंट प्रोटीन लिया, जिसे कस 9 एंजाइम और गाइड-आरएनए की मदद से एडिट करके पुनः सक्रिय किया जा सके. उन्होंने अपने शोध में पाया की सबसे बेहतर काम करने वाले गाइड-आरएनए प्रोटीन की सक्रियता को सबसे ज्यादा पुनर्स्थापित कर रहे थे. इस तरीके के महत्व और क्षमता को देखते हुए अमेरिका की जेनेटिक मेडिसिन कंपनी न्यूबेस थेराप्युटिक्स ने इसके प्रयोग का लाइसेंस लिया है. कंपनी ने लाइसेंस करार में डॉ. अखिलेश कुमार का नाम योगदानकर्ताओं के रूप में शामिल किया है.
इस तकनीक के अविष्कार के लिए दो लोगों को मिला है नोबेल पुरस्कार: डॉ. अखिलेश कुमार ने बताया ने कहा क्रिस्पर-कस 9 जीनोम एडिटिंग की सबसे प्रख्यात तकनीक है. यह वैज्ञानिकों की पहली पसंद है. इसका प्रयोग फसल उत्पादन तथा अनुवांशिक रोगों के निदान में किया जा रहा है. इस तकनीक के अविष्कार के लिए इमैनुएल कारपेंटर और जेनिफर डूडना को वर्ष 2020 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. (up news in hindi)
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