वाराणसी: स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो भला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी कैसे पीछे रह सकता है. वाराणसी वह शहर है जो कोरोना काल में एक मॉडल के रूप में सामने आया. कहा गया कि काशी मॉडल के तर्ज पर ही पूरे प्रदेश में सुविधाओं का विकास किया जाए. लगातार स्वास्थ्य के क्षेत्र में काशी में असीम सुविधाओं को उपलब्ध कराने का दावा किया जाने लगा. लेकिन इन दावों की हकीकत क्या है, इसे जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम वाराणसी के सर्किट हाउस से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित पंडित दीनदयाल राजकीय चिकित्सालय पहुंची. तस्वीरें देख हैरान हो गई.
बता दें कि यह वही चिकित्सालय है जहां बीते दिनों उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक ने दौरा किया था. खामियों की भरमार देखकर के अस्पताल प्रशासन को जमकर डांट भी लगाई थी. मंत्री साहब के डांट के बावजूद भी अस्पताल नहीं सुधरा, न ही व्यवस्थाओं में कोई बदलाव नजर आया.
समय पर अस्पताल में नहीं पहुंचे डॉक्टर : डीडीयू अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर साहब 8:00 बजे आना होता है. लेकिन डॉक्टर की उपस्थिति 9:00 बजे तक भी कैमरे में नहीं नजर आई. इस दौरान जब ईटीवी भारत की टीम ने इस हकीकत को अपने दर्शकों तक पहुंचाना चाहा तो लेट से पहुंचे डॉक्टर साहब नाराज हो गए और अपनी गलती को छुपाने के लिए दलीलें पेश करने लगे. दलीलें भी ऐसी जिसका कोई जवाब ही नहीं था.
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पैसे लेकर लगाया जा रहा इंजेक्शन : दूसरी तस्वीर वहां के आईवीआर रूम की नजर आई जहां की स्थिति चौका देने वाली थी. सरकार जिस निशुल्क सुविधा का दावा करती है. यह सुविधा वहां पर मुंह चढ़ाते हुए दिख रही थी. जी हां, सुनने में भी हैरानी होगी कि वहां पर रैबीज का इंजेक्शन लगवाने के लिए प्रति मरीज 20 रुपये का शुल्क लिया जाता है. हमारे कैमरे में जब वहां मौजूद मरीजों ने इस बात पर अपनी सहमति जाहिर की तो वहां मौजूद डॉक्टर फरार हो गए. साथ ही मौजूद कर्मचारी सीधे इन बातों को स्वीकार करने से मना करने लगे. वहां मौजूद मरीजों ने हकीकत की बयां की. उन्होंने बताया कि इंजेक्शन लगवाने को लेकर यहां के कर्मचारियों के द्वारा 20 रुपये का अतिरिक्त अवैध शुल्क लिया जाता है.
सालो से बंद है सिटी स्कैन, डिजिटल एक्स रे मशीन : अल्ट्रासाउंड एक्स-रे सेंटर की जहां पर मशीन तो जरूर दिखी लेकिन वह खराब पड़ी हुई है. डिजिटल एक्सरे की बात कर ले या फिर सिटी स्कैन की दोनों के चेंबर में ताले लगे हुए हैं. यहां मौजूद डॉक्टरों का कहना है कि मशीन बीते कुछ सालों से खराब हो चुकी है. हालांकि यहां पर मैनुअल एक्स-रे का काम चल रहा था अल्ट्रासाउंड की भी प्रक्रिया चल रही थी.जो कि बीते दिनों उप मुख्यमंत्री के दौरे के बाद ही शुरू हुई है.
मरीजों का आरोप डॉक्टर करते हैं अमानवीय व्यवहार : इस दौरान यहां पर मरीजों की एक बड़ी नाराजगी यह देखने को मिली कि डॉक्टरों के द्वारा उनके प्रति व्यवहार बेहद असंवेदनशील है. उनका कहना है कि यहां पर डॉक्टर मरीजों के साथ उचित व्यवहार नहीं करते. साथ ही दवाएं बाहर की लिखते हैं. ऐसे में यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि लगातार सरकार और विभाग के द्वारा यह कहा जाता है कि मरीज व उनके तीमारदारों के साथ संवेदनशील बर्ताव करना है लेकिन वास्तविकता के धरातल पर नहीं इस बात को डॉक्टर समझते हैं ना ही कर्मचारी.
हम पैथोलॉजी में वहां की हकीकत जानने के लिए पहुंचे तो वहां पर भी यही नाराजगी देखने को मिली. मरीजों का कहना है कि समय ज्यादा हो गया है लेकिन डॉक्टर अभी भी नदारद हैं. हमें लंबा इंतजार करना पड़ता है. किसी भी जांच को कराने के लिए. अस्पताल की लापरवाही का आलम यहीं नहीं है बल्कि अस्पताल की लगभग व्यवस्थाएं ऊपर वाले के भरोसे ही चल रही है. वहीं, इसी के समक्ष जब दूसरे ओपीडी में पहुंचे तो यहां तस्वीर कुछ बेहतर दिखाई दी. समय भी 10:00 बजे का हो गया था तो वहां पर डॉक्टर अपने केबिन में जरूर मौजूद थे और मरीज उनकी देखभाल कर रहे थे.
अस्पताल की व्यवस्थाओं की पड़ताल करते जब हमारी टीम अस्पताल के सीएमएस के केबिन में पहुंची. वहां वह मौजूद दिखे और उन्होंने अपनी सफाई पेश की. अपनी सफाई में उन्होंने बताया कि अस्पताल की व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है जो भी शिकायतें आ रही हैं, उसे दूर किया जाएगा. डिजिटल एक्स-रे और सीटी स्कैन को लेकर उन्होंने कहा कि शासन को कई बार पत्र लिख दिया गया है. उम्मीद है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान कर दिया जाएगा.
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