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कोविड-19 भी नहीं तोड़ पाया काशी की 450 साल पुरानी ये परंपरा

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में तुलसी घाट पर नाग नथैया लीला का आयोजन किया गया. इस मौके पर कोविड-19 के बावजूद भारी संख्या में लोग गंगा किनारे पहुंचे. नाग नथैया का आयोजन गोस्वामी तुलसीदास जी ने शुरू किया था. यह परंपरा 450 साल से ज्यादा पुरानी है.

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Published : Nov 19, 2020, 6:34 AM IST

Updated : Nov 19, 2020, 11:28 AM IST

nag nathaiya leela in varanasi
नाग नथैया वाराणसी

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में वैश्विक महामारी भी 450 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा को नहीं तोड़ पायी. जिले के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर नाग नथैया का आयोजन हुआ. नाग नथैया के मौके पर वर्ष में एक दिन के लिए काशी नगरी गोकुल बन जाती है और यहां बहने वाली मां गंगा भी यमुना बन जाती हैं. इस साल रोक के बाद भी हजारों लोग वर्षों पुरानी परंपरा के साक्षी बने. इस दौरान हर हर महादेव और जय कन्हैया लाल के जयकारों से भगवान शिव की नगरी गूंज उठी.

नाग नथैया लीला का आयोजन.
वाराणसी के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा प्रारंभ किए गए रामलीला और कृष्ण लीला का मंचन आज भी होता है. बुधवार को शाम होते ही मां गंगा यमुना में तब्दील हो गईं. गंगा ने कालिंदी नदी का रूप लिया. भगवान श्रीकृष्ण कंदूक खेलने पहुंच गए. भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप ने कदम के पेड़ पर चढ़कर आसन भी जमाया. खेल के दौरान जब गेंद यमुना नदी में जा गिरी तो सखाओं के सामने ही कालिया नाग का मान मर्दन करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने नदी में छलांग लगाकर कालिया नाग को नाथ दिया.

विशाल कालिया नाग के फन पर चढ़कर प्रभु श्री कृष्ण ने जल की परिक्रमा करते हुए दर्शन दिया. लीला समिति के सदस्यों के साथ मिलकर माझी समाज के लोगों ने लगभग 12 फीट लंबे नाग को आकार दिया. लीला से ठीक पहले नाग को जल में डूबा दिया गया तो सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा दस्ता भी कालिया नाग के पास तैनात था.

डमरू और शंख से गूंज उठा घाट
मात्र कुछ ही क्षणों की इस लीला को देखने के लिए लोग कई घंटों से इंतजार कर रहे थे. जैसे ही भगवान कालिया नाग पर सवार होकर बाहर निकले, हर हर महादेव के नारों से लोगों ने भगवान का स्वागत किया. वहीं डमरू और शंख से पूरा घाट गूंज उठा. भगवान की आरती की गई.

काशी राज परिवार ने निभायी परंपरा
सैकड़ों वर्षो से काशी राज परिवार इस लीला को देखने के लिए आता रहा है. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए काशीराज परिवार के मुखिया महाराजा अनंत नारायण सिंह नाव पर सवार होकर लीला को देखने आए. संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया, जिसके बाद अनंत नारायण सिंह ने गिन्नी (स्वर्ण मुद्रा) भेंट किया.

रोक के बावजूद भी जुटे श्रद्धालु
वैश्विक महामारी के दौर में अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास श्रद्धालुओं से इस बार लक्खा मेले में शामिल न होने की अपील कर रहा था. वहीं कुछ लोगों को पास के माध्यम से सैनिटाइजर और मास्क के साथ ही अनुमति दी गई. उसके बाद भी लोग अपने घरों की छतों से और नाव पर सवार होकर इस लीला का साक्षी बने. जिला प्रशासन ने बैरिकेडिंग करके लोगों को रोकने का प्रयास किया.

श्रद्धालु सोनू झा ने बताया, मैं पिछले 22 साल से इस मेले में शामिल हो रहा हूं. इस मेले को देखने के लिए भारत के कोने-कोने से नहीं बल्कि विदेशों से लोग आते हैं. वैश्विक महामारी के दौर में हम लोगों ने मास्क के साथ ही लोगों को प्रवेश दिया है. यह कुछ ही देर की लीला होती है, लेकिन लगता है मानो स्वयं भगवान नटवरलाल इस लीला में आकर सम्मिलित हुए हैं. कुछ देर के लिए काशी बिल्कुल गोकुल बन जाती है और मां गंगा यमुना बन जाती है. यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि एक अनुष्ठान है.

गोस्वामी तुलसी दास ने शुरू की थी नाग नथैया की लीला

संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने बताया कि इस लीला को गोस्वामी तुलसीदास ने प्रारंभ किया था. उनके समय में प्लेग फैला हुआ था. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी उसको झेला है. एक बहुत बड़ा मैसेज है कि जब आप इस अलौकिक दुनिया में आएंगे तो इस तरह की कठिनाइयां आएंगी. कठिनाइयों का सामना करके आपको चलना चाहिए. अपने परंपराओं को छोड़कर कभी मत भागिए.

प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने कहा कि हम लोगों के लिए यह ईश्वर की उपासना है. हमें ऐसी लीलाओं का दर्शन करना चाहिए. जल संरक्षण और पर्यावरण को लेकर हमें सतर्क रहना चाहिए. कोविड-19 के समय भी हमें अपने दिनचर्या को विचलित नहीं करना चाहिए. सतर्कता के साथ उसे निभाना चाहिए. यह लीला 450 वर्ष से अधिक पुरानी है.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में वैश्विक महामारी भी 450 वर्ष से अधिक पुरानी परंपरा को नहीं तोड़ पायी. जिले के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर नाग नथैया का आयोजन हुआ. नाग नथैया के मौके पर वर्ष में एक दिन के लिए काशी नगरी गोकुल बन जाती है और यहां बहने वाली मां गंगा भी यमुना बन जाती हैं. इस साल रोक के बाद भी हजारों लोग वर्षों पुरानी परंपरा के साक्षी बने. इस दौरान हर हर महादेव और जय कन्हैया लाल के जयकारों से भगवान शिव की नगरी गूंज उठी.

नाग नथैया लीला का आयोजन.
वाराणसी के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा प्रारंभ किए गए रामलीला और कृष्ण लीला का मंचन आज भी होता है. बुधवार को शाम होते ही मां गंगा यमुना में तब्दील हो गईं. गंगा ने कालिंदी नदी का रूप लिया. भगवान श्रीकृष्ण कंदूक खेलने पहुंच गए. भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप ने कदम के पेड़ पर चढ़कर आसन भी जमाया. खेल के दौरान जब गेंद यमुना नदी में जा गिरी तो सखाओं के सामने ही कालिया नाग का मान मर्दन करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने नदी में छलांग लगाकर कालिया नाग को नाथ दिया.

विशाल कालिया नाग के फन पर चढ़कर प्रभु श्री कृष्ण ने जल की परिक्रमा करते हुए दर्शन दिया. लीला समिति के सदस्यों के साथ मिलकर माझी समाज के लोगों ने लगभग 12 फीट लंबे नाग को आकार दिया. लीला से ठीक पहले नाग को जल में डूबा दिया गया तो सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा दस्ता भी कालिया नाग के पास तैनात था.

डमरू और शंख से गूंज उठा घाट
मात्र कुछ ही क्षणों की इस लीला को देखने के लिए लोग कई घंटों से इंतजार कर रहे थे. जैसे ही भगवान कालिया नाग पर सवार होकर बाहर निकले, हर हर महादेव के नारों से लोगों ने भगवान का स्वागत किया. वहीं डमरू और शंख से पूरा घाट गूंज उठा. भगवान की आरती की गई.

काशी राज परिवार ने निभायी परंपरा
सैकड़ों वर्षो से काशी राज परिवार इस लीला को देखने के लिए आता रहा है. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए काशीराज परिवार के मुखिया महाराजा अनंत नारायण सिंह नाव पर सवार होकर लीला को देखने आए. संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया, जिसके बाद अनंत नारायण सिंह ने गिन्नी (स्वर्ण मुद्रा) भेंट किया.

रोक के बावजूद भी जुटे श्रद्धालु
वैश्विक महामारी के दौर में अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास श्रद्धालुओं से इस बार लक्खा मेले में शामिल न होने की अपील कर रहा था. वहीं कुछ लोगों को पास के माध्यम से सैनिटाइजर और मास्क के साथ ही अनुमति दी गई. उसके बाद भी लोग अपने घरों की छतों से और नाव पर सवार होकर इस लीला का साक्षी बने. जिला प्रशासन ने बैरिकेडिंग करके लोगों को रोकने का प्रयास किया.

श्रद्धालु सोनू झा ने बताया, मैं पिछले 22 साल से इस मेले में शामिल हो रहा हूं. इस मेले को देखने के लिए भारत के कोने-कोने से नहीं बल्कि विदेशों से लोग आते हैं. वैश्विक महामारी के दौर में हम लोगों ने मास्क के साथ ही लोगों को प्रवेश दिया है. यह कुछ ही देर की लीला होती है, लेकिन लगता है मानो स्वयं भगवान नटवरलाल इस लीला में आकर सम्मिलित हुए हैं. कुछ देर के लिए काशी बिल्कुल गोकुल बन जाती है और मां गंगा यमुना बन जाती है. यह केवल एक परंपरा नहीं बल्कि एक अनुष्ठान है.

गोस्वामी तुलसी दास ने शुरू की थी नाग नथैया की लीला

संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने बताया कि इस लीला को गोस्वामी तुलसीदास ने प्रारंभ किया था. उनके समय में प्लेग फैला हुआ था. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी उसको झेला है. एक बहुत बड़ा मैसेज है कि जब आप इस अलौकिक दुनिया में आएंगे तो इस तरह की कठिनाइयां आएंगी. कठिनाइयों का सामना करके आपको चलना चाहिए. अपने परंपराओं को छोड़कर कभी मत भागिए.

प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने कहा कि हम लोगों के लिए यह ईश्वर की उपासना है. हमें ऐसी लीलाओं का दर्शन करना चाहिए. जल संरक्षण और पर्यावरण को लेकर हमें सतर्क रहना चाहिए. कोविड-19 के समय भी हमें अपने दिनचर्या को विचलित नहीं करना चाहिए. सतर्कता के साथ उसे निभाना चाहिए. यह लीला 450 वर्ष से अधिक पुरानी है.

Last Updated : Nov 19, 2020, 11:28 AM IST
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