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जयंती विशेषः सामंतवाद का मुखर विरोध करने वाले इस 'कलम के सिपाही' को भूल गई सरकार !

महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र की 31 जुलाई को 140 वीं जयंती है. अपने कलम के जोर से समाज को आइना दिखाने वाले सामंतवाद के धुर विरोधी मुंशी प्रेमचंद्र को आज की सरकार शायद भूल गई है. आधुनिकता के इस दौर में प्रेमचंद जी के गांव में न सड़के है और न मुंशी जी के घर में बिजली.

मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती पर स्पेशल रिपोर्ट
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Published : Jul 31, 2019, 6:47 AM IST

वाराणसी: आजादी के दौर के महान लेखक और कथाकार जिन्होंने 300 से ज्यादा कहानियां लिखी. इनकी लेखनी ने आजादी की लड़ाई के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. इस महान लेखक का नाम है मुंशी प्रेमचंद. 31 जुलाई यानि आज मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती है.

मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती पर स्पेशल रिपोर्ट


काशी में जन्मे प्रेमचंद अपनी रचनाओं की वजह से आज भी लोगों की यादों में जिंदा है. लेकिन सरकार इस महान कथाकार को भूल गई है. शायद यही वजह है कि प्रेमचंद जी के गांव में सड़के नहीं है और सरकार ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी है.


कहानियां जो देती थी प्रेरणा-
नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन, कफन के अलावा कई अन्य कहानियां आज भी विश्व साहित्य का हिस्सा हैं. मुंशी जी ने अपने लेखन की शुरुआत आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के उस दौर में की जब गांधी जी अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात पर टिके हुए थे. गांधी जी के आंदोलन से मुंशी प्रेमचंद्र इतने ज्यादा प्रेरित हुए कि उन्होंने शिक्षण संस्था छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद गए. मुंशी जी ने अपनी कलम की ताकत से किसान और ग्रामीण परिवेश की ऐसी तस्वीर उकेरी जिसने उस वक्त कि सामंतवादी व्यवस्था और दमनकारी नीति के शिकार हो रहे थे.


सरकार भूल गई इस महान साहित्यकार को-
31 जुलाई को मुंशी जी की जयंती है. जयंती के मौके पर लमही में भव्य आयोजन की तैयारी है. यह आयोजन अचानक से तय हुआ, जबकि मुलायम सिंह सरकार के वक्त लमही के विकास के साथ इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन सत्ता बदली तो मुंशी जी भी राजनीति का शिकार हो गए. हाल यह है कि अब मुंशी जी के गांव तक जाने वाली सड़क दलदल में तब्दील हो चुकी है. सरकार दिखावे कि साफ-सफाई कर मुंशी जी की स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रही है.

राजनीति का शिकार हुए मुंशी जी-
मुंशी जी के पैतृक आवास की हालत भी बद से बदतर है. सबसे चौंकाने वाली बात तो है कि बिजली विभाग ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी. स्थितियां इतनी ज्यादा खराब है कि गांव के लोग भी यह मान रहे हैं कि मुंशी जी राजनीति का शिकार हो चुके हैं. लेकिन अधिकारियों का कहना है चीजों को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है ताकि मुंशी जी को जानने के लिए लोग उनके घर और स्मारक तक पहुंच सकें.

वाराणसी: आजादी के दौर के महान लेखक और कथाकार जिन्होंने 300 से ज्यादा कहानियां लिखी. इनकी लेखनी ने आजादी की लड़ाई के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. इस महान लेखक का नाम है मुंशी प्रेमचंद. 31 जुलाई यानि आज मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती है.

मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती पर स्पेशल रिपोर्ट


काशी में जन्मे प्रेमचंद अपनी रचनाओं की वजह से आज भी लोगों की यादों में जिंदा है. लेकिन सरकार इस महान कथाकार को भूल गई है. शायद यही वजह है कि प्रेमचंद जी के गांव में सड़के नहीं है और सरकार ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी है.


कहानियां जो देती थी प्रेरणा-
नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन, कफन के अलावा कई अन्य कहानियां आज भी विश्व साहित्य का हिस्सा हैं. मुंशी जी ने अपने लेखन की शुरुआत आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के उस दौर में की जब गांधी जी अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात पर टिके हुए थे. गांधी जी के आंदोलन से मुंशी प्रेमचंद्र इतने ज्यादा प्रेरित हुए कि उन्होंने शिक्षण संस्था छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद गए. मुंशी जी ने अपनी कलम की ताकत से किसान और ग्रामीण परिवेश की ऐसी तस्वीर उकेरी जिसने उस वक्त कि सामंतवादी व्यवस्था और दमनकारी नीति के शिकार हो रहे थे.


सरकार भूल गई इस महान साहित्यकार को-
31 जुलाई को मुंशी जी की जयंती है. जयंती के मौके पर लमही में भव्य आयोजन की तैयारी है. यह आयोजन अचानक से तय हुआ, जबकि मुलायम सिंह सरकार के वक्त लमही के विकास के साथ इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन सत्ता बदली तो मुंशी जी भी राजनीति का शिकार हो गए. हाल यह है कि अब मुंशी जी के गांव तक जाने वाली सड़क दलदल में तब्दील हो चुकी है. सरकार दिखावे कि साफ-सफाई कर मुंशी जी की स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रही है.

राजनीति का शिकार हुए मुंशी जी-
मुंशी जी के पैतृक आवास की हालत भी बद से बदतर है. सबसे चौंकाने वाली बात तो है कि बिजली विभाग ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी. स्थितियां इतनी ज्यादा खराब है कि गांव के लोग भी यह मान रहे हैं कि मुंशी जी राजनीति का शिकार हो चुके हैं. लेकिन अधिकारियों का कहना है चीजों को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है ताकि मुंशी जी को जानने के लिए लोग उनके घर और स्मारक तक पहुंच सकें.

Intro:मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर स्पेशल...

वाराणसी: आजादी के दौर के वह महान लेखक और कथाकार जिन्होंने एक दो नहीं बल्कि 300 से ज्यादा कहानियां लिखी. ग्रामीण भारत के चित्र को किताबों के जरिए इस तरह लोगों के सामने रखा जिसने असली भारत कहे जाने वाले ग्रामीण जीवन से लोगों को रूबरू कराया. इनकी लेखनी ने आजादी की लड़ाई के आंदोलन को आगे बढ़ाने में भी अहम रोल अदा किया. इस महान लेखक का नाम है मुंशी प्रेमचंद. 31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती मनाई जाएगी. काशी के लमही गांव में जन्मे प्रेमचंद आज भी अपनी रचनाओं की वजह से लोगों की यादों में जिंदा है, लेकिन सरकारें और नेता इस महान कथाकार को भूल गए. शायद यही वजह है कि प्रेमचंद के घर से लेकर उनके पूरे गांव की जो स्थिति वर्तमान है उसके बारे में जानकर मुंशी जी को पढ़ने और जानने वाला हर शख्स परेशान हो उठेगा, क्योंकि सरकारी उदासीनता ने गांव में सड़के छोड़ी नहीं और तो और मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी गई. जिसके बाद हम भी यही कहेंगे मुंशी जी हम शर्मिंदा हैं.


Body:वीओ-01 नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, बड़े भाई साहब, पूस की रात, गोदान, गबन, शतरंज के खिलाड़ी, कफन के अलावा कई अन्य कहानियां जो आज भी विश्व साहित्य का हिस्सा हैं. कहते हैं अगर साहित्य कथा और कहानी के चाहने वालों में प्रेमचंद को नहीं पढ़ा और जाना तो फिर उनका साहित्य प्रेम ही सवालों के घेरे में होता है और यही वजह है कि आज भी इन कहानियों का नाम जेहन में आने के साथ ही ताजा हो जाती है मुंशी प्रेमचंद की, मुंशी जी ने अपने लेखन की शुरुआत आजादी के दौर में कि गांधी जी के आंदोलन से इतने ज्यादा प्रेरित हुए कि उन्होंने शिक्षण संस्था छोड़कर असहयोग आंदोलन में देश की आजादी की लड़ाई में कूद गए. इस दौरान मुंशी जी ने अपनी कलम की ताकत से किसान और ग्रामीण परिवेश की ऐसी तस्वीर उकेरी जिसने उस वक्त कि सामंतवादी व्यवस्था और दमनकारी नीति के शिकार हो रहे थे. किसान दलित और महिलाओं की वर्तमान असलियत को बयां कर उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ सामाजिक बुराइयों पर कुठाराघात किया. 300 से ज्यादा कहानियां लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद ढेरों उपन्यास लिखें केवल हिंदी ही नहीं बल्कि उर्दू पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. जिसकी वजह से आज भी मुंशी जी लोगों की स्मृतियों और दिलों में जिंदा हैं, लेकिन इन्हें भूल चुकी हैं तो वह सरकारें जो इस महान कथाकार को भी राजनीति के चश्मे से देख रही है. यही वजह है कि स्थानीय लोग तो इस बार उम्मीद भी छोड़ दिए थे कि मुंशी जी का जन्म उत्सव उनके गांव में सरकार मनाएगी, लोगों का कहना था की सरकारी लापरवाही की वजह से ही आज तक मुंशी जी के घर में बिजली का मीटर नहीं लगा सिर्फ तार खींचकर छोड़ा गया और वह भी बिजली का बिल बकाया होने की वजह से हटा दिया गया और बिजली काट कर मुंशी जी के घर को अंधेरे में छोड़ा गया. इतना ही नहीं सिर्फ रंग रोगन कर ऊपर से घर चमकाने का प्रयास देख लो मर्माहत है, घर के अंदर के दरवाजे खिड़कियां दीमक चाट चुके हैं और सिर्फ जयंती के नाम पर दिखावे कि साफ-सफाई कर मुंशी जी की स्मृतियों को सहेजने का प्रयास सरकारी महकमा कर रहा है.

बाईट- रामधनी, स्थनीय नागरिक
बाईट- संतोष कुमार सिंह, पूर्व ग्राम प्रधान, लमही


Conclusion:वीओ-02- 31 जुलाई को मुंशी जी की जयंती है और उनके जयंती के मौके पर लमही में भव्य आयोजन की तैयारी है यह आयोजन अचानक से डिसाइड हुआ जबकि मुलायम सिंह सरकार के वक्त लमही के विकास के साथ इसकी शुरुआत हुई थी लेकिन सत्ता बदली तो मुंशी जी भी राजनीति का शिकार हो गए, हाल यह है कि अब मुंशी जी के गांव तक जाने वाली सड़क दलदल में तब्दील हो चुकी है. उनके पैतृक आवास की हालत भी बद से बदतर है. जिस बैठक में वह बैठकर अपनी रचनाओं को लिखते थे उस बैठक की हालत भी ऊपर से तो अच्छी है लेकिन अंदर से बहुत ही खराब है. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है बिजली का बकाया होने की वजह से बिजली विभाग ने मुंशी जी के घर और बैठक की बिजली भी काट दी बिजली पोल से तार खींचकर जुगाड़ के सहारे यहां बिजली भी जलाई जा रही है. स्थितियां इतनी ज्यादा खराब है कि गांव के लोग भी यह मान रहे हैं कि मुंशी जी राजनीति का शिकार हो चुके हैं, लेकिन अधिकारियों का कहना है चीजों को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है ताकि मुंशी जी को जानने के लिए लोग उनके घर और स्मारक तक पहुंच सकें.

बाईट- अनिल दुबे, सहायक अभियंता, वाराणसी विकास प्राधिकरण
बाईट- सुरेंद्र कुमार सिंह, जिलाधिकारी, वाराणसी

गोपाल मिश्र

9839809074
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