वाराणसी: आजादी के दौर के महान लेखक और कथाकार जिन्होंने 300 से ज्यादा कहानियां लिखी. इनकी लेखनी ने आजादी की लड़ाई के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम रोल अदा किया. इस महान लेखक का नाम है मुंशी प्रेमचंद. 31 जुलाई यानि आज मुंशी प्रेमचंद्र की 140 वीं जयंती है.
काशी में जन्मे प्रेमचंद अपनी रचनाओं की वजह से आज भी लोगों की यादों में जिंदा है. लेकिन सरकार इस महान कथाकार को भूल गई है. शायद यही वजह है कि प्रेमचंद जी के गांव में सड़के नहीं है और सरकार ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी है.
कहानियां जो देती थी प्रेरणा-
नमक का दरोगा, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान, गबन, कफन के अलावा कई अन्य कहानियां आज भी विश्व साहित्य का हिस्सा हैं. मुंशी जी ने अपने लेखन की शुरुआत आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के उस दौर में की जब गांधी जी अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात पर टिके हुए थे. गांधी जी के आंदोलन से मुंशी प्रेमचंद्र इतने ज्यादा प्रेरित हुए कि उन्होंने शिक्षण संस्था छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद गए. मुंशी जी ने अपनी कलम की ताकत से किसान और ग्रामीण परिवेश की ऐसी तस्वीर उकेरी जिसने उस वक्त कि सामंतवादी व्यवस्था और दमनकारी नीति के शिकार हो रहे थे.
सरकार भूल गई इस महान साहित्यकार को-
31 जुलाई को मुंशी जी की जयंती है. जयंती के मौके पर लमही में भव्य आयोजन की तैयारी है. यह आयोजन अचानक से तय हुआ, जबकि मुलायम सिंह सरकार के वक्त लमही के विकास के साथ इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन सत्ता बदली तो मुंशी जी भी राजनीति का शिकार हो गए. हाल यह है कि अब मुंशी जी के गांव तक जाने वाली सड़क दलदल में तब्दील हो चुकी है. सरकार दिखावे कि साफ-सफाई कर मुंशी जी की स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रही है.
राजनीति का शिकार हुए मुंशी जी-
मुंशी जी के पैतृक आवास की हालत भी बद से बदतर है. सबसे चौंकाने वाली बात तो है कि बिजली विभाग ने मुंशी जी के घर की बिजली भी काट दी. स्थितियां इतनी ज्यादा खराब है कि गांव के लोग भी यह मान रहे हैं कि मुंशी जी राजनीति का शिकार हो चुके हैं. लेकिन अधिकारियों का कहना है चीजों को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है ताकि मुंशी जी को जानने के लिए लोग उनके घर और स्मारक तक पहुंच सकें.