वाराणसी: धार्मिक नगरी काशी में अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जा रहा है. इस अवसर पर महिलाएं संतान के सुख और आयु वृद्धि की कामना के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन महिलाएं दीवारों पर गेरू व खड़िया से अहोई माता का चित्र बनाकर विधि-विधान से पूजा करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को दीर्घायु के साथ समृद्धि की भी प्राप्ति होती है. कहते हैं कि अहोई माता के आशीर्वाद से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
अहोई अष्टमी के दिन माता पार्वती की पूजा का विधान है. यह व्रत निर्जला व्रत की तरह होता है. इसमें माताएं फलाहार भी नहीं करती. इस व्रत में शाम को तारा उदय होने के बाद तारों को जल देकर माताएं व्रत खोलती है.
दीवारों पर बनाती हैं अहोई माता का चित्र
इस व्रत को माताएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए रखती हैं. इस अवसर पर महिलाएं गेरू और खड़िया से अहोई माता का चित्र बनाती हैं या बने बनाए चित्र की विधि-विधान से पूजा करती हैं. इस दिन मिट्टी के करवा यानी एक छोटे से कलश को पूजन स्थल पर स्थापित किया जाता है.
क्या कहती हैं व्रतधारी महिलाएं
मधु मिश्रा ने बताया कि अहोई अष्टमी का व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक माह में पड़ता है. इस दिन चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करने का विधान है. व्रत के दिन गेरू व खड़िया से अहोई माता का चित्र बनाया जाता है.
व्रत धारी महिला शोभा शर्मा ने बताया कि अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं संतान के सुख और आयु वृद्धि के कामना के लिए करती हैं. इसमें पार्वती माता की पूजा होती है. वहीं अहोई अष्टमी के व्रत को शाम को तारे देखने के बाद खोलते हैं. इस व्रत में माता अहोई की पूजा प्रदोष काल में होती है.