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वाराणसी के बच्चों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास

कोरोना काल में सबसे ज्यादा असर शिक्षा जगत पर नजर आया. विद्यालयों के बंद होने की वजह से एक तरफ जहां बच्चे घरों में कैद हो गए, वहीं बच्चों के भविष्य को लेकर माता-पिता की चिंता भी बढ़ गई. ऐसे दौर में वाराणसी में कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए मोहल्ला क्लास शुरू की गई, जो आज बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है.

मोहल्ला क्लास.
मोहल्ला क्लास.
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Published : Feb 20, 2021, 10:21 PM IST

वाराणसी : कोविड-19 के दौर में आम से लेकर खास तक हर किसी की जिंदगी प्रभावित हुई. शायद ही ऐसा कोई सेक्टर बचा हो, जिस पर कोविड का प्रभाव न पड़ा हो. सबसे ज्यादा असर शिक्षा जगत पर देखने को मिला, क्योंकि विद्यालयों के बंद होने की वजह से एक तरफ जहां बच्चे घरों में कैद हो गए, वहीं माता-पिता के लिए भी उनके भविष्य को लेकर चिंता साफ तौर पर दिखाई देने लगी. ऐसे दौर में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके मोहल्ले, उनकी कॉलोनी और उनके घरों के बाहर ही कक्षाएं शुरू कर दी गईं. इन्हें नाम दिया गया 'मोहल्ला क्लास'.

छात्रों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास.

इसके तहत प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को अलग-अलग मोहल्ले में इकट्ठा कर उनके घरों के पास ही पढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ. शिक्षा के इस माध्यम ने ना सिर्फ शिक्षा का चेहरा बदल दिया, बल्कि कोविड-19 के उस दौर में जब विद्यालयों के दरवाजे बच्चों के लिए बंद हो गए तब मोहल्ले में क, ख, ग, घ संग गिनती, पहाड़े की आवाज सुनाई पड़ने लगी.

बच्चों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास
बच्चों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास
मोहल्ले-मोहल्ले पहुंचे टीचर

सरकार ने भले ही कक्षा 6 से लेकर 12 तक के स्कूलों को भी खोल दिया हो, लेकिन कक्षा एक से पांच तक के विद्यालय भी बंद हैं. भले ही प्राइवेट स्कूल के बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हो रही हों, लेकिन प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे अब तक इस सुविधा से दूर हैं. इसकी बड़ी वजह है कि इनके माता-पिता के पास एंड्रॉयड मोबाइल की कमी है और जिनके पास है अभी वह अपने काम पर जाने के कारण बच्चों को ऑनलाइन क्लास का सहारा दिलाने में असमर्थ हैं.

बच्चों को पढ़ाई के साथ खेलकूद भी जरूरी
बच्चों को पढ़ाई के साथ खेलकूद भी जरूरी

देश में नजीर बनती जा रही 'मोहल्ला क्लासेस'

ऐसे में वाराणसी से शुरू हुई मोहल्ला क्लास पूरे देश में नजीर बनती जा रही है. कोरोना काल में 'दो गज की दूरी बहुत है जरूरी' के साथ तमाम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मोहल्लों में चलने वाली बच्चों की कक्षाओं ने ना सिर्फ बच्चों को शिक्षित करने का काम किया बल्कि प्राथमिक विद्यालयों को लेकर लोगों की सोच को भी बदल दिया. यहां के टीचर्स को लेकर पहले लोगों के दिमाग में यह था कि प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक खुद ही शिक्षित नहीं हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. मोहल्ले में जाकर जब शिक्षकों ने बच्चों की क्लास लेनी शुरू की और अलग-अलग बेहतरीन तरीके से उनको पढ़ाना शुरू किया, तो स्थानीय लोगों के साथ छात्रों के माता-पिता की सोच भी बदल गई.

मोहल्ला क्लास में पढ़ाई करते बच्चे.
मोहल्ला क्लास में पढ़ाई करते बच्चे.
गुरुकुल पद्धति पर कक्षाओं का संचालन

बनारस में बेसिक शिक्षा विभाग ने भारत की पारंपरिक पद्धति गुरुकुल पद्धति की ओर ध्यान देते हुए ग्रामीण इलाकों में पेड़ के नीचे बच्चों को बैठाकर उन्हें मोहल्ला क्लास में पढ़ाने की शुरुआत की ठानी थी. शुरुआत में बच्चे नहीं पहुंच रहे थे. माता-पिता भी अपने घरों के नजदीक स्कूलों के आने के बाद भी बच्चों को यहां भेजने में डर रहे थे. वहीं शिक्षकों की जागरूकता ने तस्वीर बदल दी और बच्चे मोहल्ला क्लास में पहुंचने भी लगे और अपनी रूचि के साथ पढ़ाई करने लगे.

कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए चल रही मोहल्ला क्लास
कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए चल रही मोहल्ला क्लास
स्कूल में ताला लेकिन मोहल्लों में रौनक

बनारस और ग्रामीण इलाके के बीच में पड़ने वाले मॉडल इंग्लिश प्राइमरी स्कूल मंडुआडीह में भले ही ताला लटका हो, लेकिन यहां पर काम करने वाले शिक्षक समय से मोहल्ले में पहुंच जाते हैं. इसके बाद घूम-घूमकर बच्चों को इकट्ठा करते हैं और पेड़ के नीचे मोहल्ला क्लास शुरू कर देते हैं.

प्राइवेट स्कूल के बच्चों ने लिए एडमिशन

सबसे बड़ी बात यह है कि मोहल्ला क्लास की सफलता इस कदर बढ़ चुकी है कि कई ऐसे अभिभावक जो कोविड-19 के दौर में हुए लॉकडाउन के बाद अपनी आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से परेशान हुए, उन्होंने भी अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों से निकाल कर मोहल्ला क्लास में भेजना शुरू कर दिया. टीचर्स का खुद कहना है कि कोविड-19 के दौर में जब बच्चों के स्कूलों से नाम काटे जा रहे थे, तब सिर्फ एक प्राथमिक स्कूल में 36 से ज्यादा बच्चों ने एडमिशन लिया, जिनमें से 10 से ज्यादा बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों के थे.

वाराणसी : कोविड-19 के दौर में आम से लेकर खास तक हर किसी की जिंदगी प्रभावित हुई. शायद ही ऐसा कोई सेक्टर बचा हो, जिस पर कोविड का प्रभाव न पड़ा हो. सबसे ज्यादा असर शिक्षा जगत पर देखने को मिला, क्योंकि विद्यालयों के बंद होने की वजह से एक तरफ जहां बच्चे घरों में कैद हो गए, वहीं माता-पिता के लिए भी उनके भविष्य को लेकर चिंता साफ तौर पर दिखाई देने लगी. ऐसे दौर में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके मोहल्ले, उनकी कॉलोनी और उनके घरों के बाहर ही कक्षाएं शुरू कर दी गईं. इन्हें नाम दिया गया 'मोहल्ला क्लास'.

छात्रों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास.

इसके तहत प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को अलग-अलग मोहल्ले में इकट्ठा कर उनके घरों के पास ही पढ़ाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ. शिक्षा के इस माध्यम ने ना सिर्फ शिक्षा का चेहरा बदल दिया, बल्कि कोविड-19 के उस दौर में जब विद्यालयों के दरवाजे बच्चों के लिए बंद हो गए तब मोहल्ले में क, ख, ग, घ संग गिनती, पहाड़े की आवाज सुनाई पड़ने लगी.

बच्चों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास
बच्चों के लिए वरदान बनी मोहल्ला क्लास
मोहल्ले-मोहल्ले पहुंचे टीचर

सरकार ने भले ही कक्षा 6 से लेकर 12 तक के स्कूलों को भी खोल दिया हो, लेकिन कक्षा एक से पांच तक के विद्यालय भी बंद हैं. भले ही प्राइवेट स्कूल के बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हो रही हों, लेकिन प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे अब तक इस सुविधा से दूर हैं. इसकी बड़ी वजह है कि इनके माता-पिता के पास एंड्रॉयड मोबाइल की कमी है और जिनके पास है अभी वह अपने काम पर जाने के कारण बच्चों को ऑनलाइन क्लास का सहारा दिलाने में असमर्थ हैं.

बच्चों को पढ़ाई के साथ खेलकूद भी जरूरी
बच्चों को पढ़ाई के साथ खेलकूद भी जरूरी

देश में नजीर बनती जा रही 'मोहल्ला क्लासेस'

ऐसे में वाराणसी से शुरू हुई मोहल्ला क्लास पूरे देश में नजीर बनती जा रही है. कोरोना काल में 'दो गज की दूरी बहुत है जरूरी' के साथ तमाम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए मोहल्लों में चलने वाली बच्चों की कक्षाओं ने ना सिर्फ बच्चों को शिक्षित करने का काम किया बल्कि प्राथमिक विद्यालयों को लेकर लोगों की सोच को भी बदल दिया. यहां के टीचर्स को लेकर पहले लोगों के दिमाग में यह था कि प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक खुद ही शिक्षित नहीं हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. मोहल्ले में जाकर जब शिक्षकों ने बच्चों की क्लास लेनी शुरू की और अलग-अलग बेहतरीन तरीके से उनको पढ़ाना शुरू किया, तो स्थानीय लोगों के साथ छात्रों के माता-पिता की सोच भी बदल गई.

मोहल्ला क्लास में पढ़ाई करते बच्चे.
मोहल्ला क्लास में पढ़ाई करते बच्चे.
गुरुकुल पद्धति पर कक्षाओं का संचालन

बनारस में बेसिक शिक्षा विभाग ने भारत की पारंपरिक पद्धति गुरुकुल पद्धति की ओर ध्यान देते हुए ग्रामीण इलाकों में पेड़ के नीचे बच्चों को बैठाकर उन्हें मोहल्ला क्लास में पढ़ाने की शुरुआत की ठानी थी. शुरुआत में बच्चे नहीं पहुंच रहे थे. माता-पिता भी अपने घरों के नजदीक स्कूलों के आने के बाद भी बच्चों को यहां भेजने में डर रहे थे. वहीं शिक्षकों की जागरूकता ने तस्वीर बदल दी और बच्चे मोहल्ला क्लास में पहुंचने भी लगे और अपनी रूचि के साथ पढ़ाई करने लगे.

कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए चल रही मोहल्ला क्लास
कक्षा 5 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए चल रही मोहल्ला क्लास
स्कूल में ताला लेकिन मोहल्लों में रौनक

बनारस और ग्रामीण इलाके के बीच में पड़ने वाले मॉडल इंग्लिश प्राइमरी स्कूल मंडुआडीह में भले ही ताला लटका हो, लेकिन यहां पर काम करने वाले शिक्षक समय से मोहल्ले में पहुंच जाते हैं. इसके बाद घूम-घूमकर बच्चों को इकट्ठा करते हैं और पेड़ के नीचे मोहल्ला क्लास शुरू कर देते हैं.

प्राइवेट स्कूल के बच्चों ने लिए एडमिशन

सबसे बड़ी बात यह है कि मोहल्ला क्लास की सफलता इस कदर बढ़ चुकी है कि कई ऐसे अभिभावक जो कोविड-19 के दौर में हुए लॉकडाउन के बाद अपनी आर्थिक स्थिति बिगड़ने की वजह से परेशान हुए, उन्होंने भी अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों से निकाल कर मोहल्ला क्लास में भेजना शुरू कर दिया. टीचर्स का खुद कहना है कि कोविड-19 के दौर में जब बच्चों के स्कूलों से नाम काटे जा रहे थे, तब सिर्फ एक प्राथमिक स्कूल में 36 से ज्यादा बच्चों ने एडमिशन लिया, जिनमें से 10 से ज्यादा बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों के थे.

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