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पीएम के संसदीय क्षेत्र में न नौकरी-न अनाज, तिल-तिल मरने को मजबूर मजदूर - वाराणसी प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूरों के बिना भारत की तरक्की संभव नहीं है. क्योंकि यह अपने खून पसीने से सींचकर भारत के विकास को आगे बढ़ाते हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इन दिनों ये मजदूर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं. लॉकडाउन ने तो पहले ही इनको घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया है, लेकिन अब सरकार की अनदेखी, फिर से इन्हें तिल-तिल मरने को मजबूर कर रही है.

रोजगार नहीं मिलने से परेशान है प्रवासी मजदूरों का परिवार.
रोजगार नहीं मिलने से परेशान है प्रवासी मजदूरों का परिवार.
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Published : Oct 15, 2020, 5:51 PM IST

Updated : Dec 24, 2020, 6:09 PM IST

वाराणसी : सरकार ने दावा किया था कि मजदूरों को नौकरी व अनाज मिल रहा है. लेकिन सरकार के ये दोनों दावे धरातल पर दम तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. जी हां देश के तमाम हिस्सों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी मजदूर नौकरी व अनाज के लिए दर-दर भटकते हुए दिखाई दे रहे हैं. कोई अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर या राज्य में चला गया है, तो कोई अब भी इस उम्मीद में बैठा हुआ है कि शायद उसे अपने प्रदेश में ही नौकरी मिल जाएगी, और वो यहीं पर हंसी-खुशी से अपने परिवार के साथ रह सकेगा.

'डिलीवरी के नहीं हैं पैसे'

बातचीत में अहमदाबाद से मढ़वा गांव आयी प्रवासी मजदूर की पत्नी सुधा देवी ने बताया कि वह इन दिनों गर्भवती हैं. लगातार कोरोना के बढ़ते केस को लेकर वह अपने पति को वापस अहमदाबाद नहीं भेजना चाहती थीं. लेकिन डिलीवरी करानी है, बच्चे की देखभाल करनी है, तो पैसे कहां से आएंगे. इस मजबूरी में उसके पति वापस अहमदाबाद चले गए. क्योंकि बनारस में कोई रोजगार उसके पति को नहीं मिला. उन्होंने बताया कि सरकार अनाज देने की बात कर रही है, लेकिन आज तक न उनका टेंपरेरी राशन कार्ड बना है और न ही उन्हें अनाज मिला है. उनका कहना था कि वो कर्ज लेकर खाने को मजबूर हैं. वहीं अहमदाबाद से अपने परिवार संग मढ़वा आई रोमी बताती हैं कि जैसे-तैसे वो यहां आ तो गए, लेकिन अब वहां जाने की हिम्मत नहीं हो रही है. वह अपने मायके में है. उन्होंने बताया कि वो हर दिन इसी उम्मीद से रह रही है कि कहीं उनके पति को नौकरी मिल जाएगी. लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली है. उनका कहना था कि समझ नहीं आ रहा है कि कब तक वो अपने मायके में ऐसे पड़ी रहेगी.

'नौकरी नहीं मिल रही साहब वापस जाना मजबूरी है'

सूरत से आकर इन दिनों ऐढे गांव में रह रहे मुनासर बताते हैं कि यहां तो कोई काम मिल नहीं रहा. साथ के तो कुछ लोग चले भी गए. वो इसी उम्मीद में बैठे हैं कि आज नहीं कल काम मिल जाएगा. देखते हैं यदि दिवाली तक काम मिल गया तब तो ठीक है, वरना दिवाली के बाद चले जाएंगे. क्योंकि घर चलाने के लिए कर्ज ले रखे हैं, कर्ज को चुकाना भी जरूरी है. उनका कहना था कि ट्रेन की टिकट इतनी महंगी हो गई है कि अभी टिकट का भी पैसा नहीं जुटा पा रहे हैं.

'ग्राम प्रधान भी हो गए हैं बेबस'

ऐढे और मंडवा और लमही गांव के प्रधान का कहना था कि वो अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि वो इन मजदूरों के दर्द को बांट सकें. लेकिन सरकारी कागजों के जाल से वो हर बार मात खा जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इनकी राशन और नौकरी के लिए जिला प्रशासन से तमाम गुजारिश लगाई. पत्र लिखे लेकिन वो दोनों ही उपलब्ध नहीं करा पाए. क्योंकि प्रशासन उन सबको कागजों के टालमटोल में उलझाकर रख रही है और झूठा आश्वासन दे रही है. उन्होंने बताया कि उनका गांव नगर निगम में चला गया है, इसकी वजह से यहां मनरेगा और सरकारी कार्य नहीं हो रहा है. राशन कार्ड बनाने के लिए उन्होंने कई बार सूची भेजी तहसीलदार को फोन किया, लेकिन आज तक सारी सूचियां कागजों में ही रह गयीं. हकीकत में किसी को अनाज नहीं मिल पाया. उनका कहना था कि ग्राम पंचायत के लोगों ने अपने पास से अनाज इकट्ठा करके लोगों में बांटा, लेकिन वो कब तक ऐसे मदद कर पाएंगे. मजदूर अब उनके यहां उधार लेने के लिए आता है, रोता है कि उन सबको नौकरी दिलवा दो. उनका कहना था कि वो सिर्फ प्रशासन और सरकार से यह गुहार लगाना चाहते हैं कि गरीबों के बारे में भी सोचें.

'हैरत में डालते हैं आंकड़े'

यदि बनारस में आंकड़ों की बात कर लें तो बनारस में आने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या लगभग 54000 थी. जिसमें से लगभग 21000 मजदूर मनरेगा में काम किए. बीच में यह आंकड़ा 41000 भी पहुंच गया था. लेकिन इन दिनों विभागीय आंकड़े कहते हैं कि 70 प्रतिशत से ज़्यादा मजदूर वापस दूसरे राज्य लौट गए. इसलिए मनरेगा में काम बहुत कम लोग कर रहे हैं. वहीं यदि हम राशन कार्ड की बात कर ले तो आंकड़े बताते हैं कि राशनकार्ड के लिए 11000 प्रवासी लोगों को वर्गीकृत किया गया था, जिसमें से मात्र 4700 प्रवासी मजदूरों के टेंपरेरी कार्ड बने थे. आंकड़ों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस महामारी में गरीब कैसे गुजारा कर रहा होगा. ये सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इतनी संख्या में राशन कार्ड से भला कैसे गरीब मजदूरों का गुजारा होगा. शासन, प्रशासन की उदासीनता मन में कई सारे सवालों को खड़ा करती है. सरकार मजदूर के वोट से ही सत्ता की गद्दी पर बैठते हैं, लेकिन आज सरकार उसी मजदूर को अनदेखा कर रही हैं.

वाराणसी : सरकार ने दावा किया था कि मजदूरों को नौकरी व अनाज मिल रहा है. लेकिन सरकार के ये दोनों दावे धरातल पर दम तोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. जी हां देश के तमाम हिस्सों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में भी मजदूर नौकरी व अनाज के लिए दर-दर भटकते हुए दिखाई दे रहे हैं. कोई अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर या राज्य में चला गया है, तो कोई अब भी इस उम्मीद में बैठा हुआ है कि शायद उसे अपने प्रदेश में ही नौकरी मिल जाएगी, और वो यहीं पर हंसी-खुशी से अपने परिवार के साथ रह सकेगा.

'डिलीवरी के नहीं हैं पैसे'

बातचीत में अहमदाबाद से मढ़वा गांव आयी प्रवासी मजदूर की पत्नी सुधा देवी ने बताया कि वह इन दिनों गर्भवती हैं. लगातार कोरोना के बढ़ते केस को लेकर वह अपने पति को वापस अहमदाबाद नहीं भेजना चाहती थीं. लेकिन डिलीवरी करानी है, बच्चे की देखभाल करनी है, तो पैसे कहां से आएंगे. इस मजबूरी में उसके पति वापस अहमदाबाद चले गए. क्योंकि बनारस में कोई रोजगार उसके पति को नहीं मिला. उन्होंने बताया कि सरकार अनाज देने की बात कर रही है, लेकिन आज तक न उनका टेंपरेरी राशन कार्ड बना है और न ही उन्हें अनाज मिला है. उनका कहना था कि वो कर्ज लेकर खाने को मजबूर हैं. वहीं अहमदाबाद से अपने परिवार संग मढ़वा आई रोमी बताती हैं कि जैसे-तैसे वो यहां आ तो गए, लेकिन अब वहां जाने की हिम्मत नहीं हो रही है. वह अपने मायके में है. उन्होंने बताया कि वो हर दिन इसी उम्मीद से रह रही है कि कहीं उनके पति को नौकरी मिल जाएगी. लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली है. उनका कहना था कि समझ नहीं आ रहा है कि कब तक वो अपने मायके में ऐसे पड़ी रहेगी.

'नौकरी नहीं मिल रही साहब वापस जाना मजबूरी है'

सूरत से आकर इन दिनों ऐढे गांव में रह रहे मुनासर बताते हैं कि यहां तो कोई काम मिल नहीं रहा. साथ के तो कुछ लोग चले भी गए. वो इसी उम्मीद में बैठे हैं कि आज नहीं कल काम मिल जाएगा. देखते हैं यदि दिवाली तक काम मिल गया तब तो ठीक है, वरना दिवाली के बाद चले जाएंगे. क्योंकि घर चलाने के लिए कर्ज ले रखे हैं, कर्ज को चुकाना भी जरूरी है. उनका कहना था कि ट्रेन की टिकट इतनी महंगी हो गई है कि अभी टिकट का भी पैसा नहीं जुटा पा रहे हैं.

'ग्राम प्रधान भी हो गए हैं बेबस'

ऐढे और मंडवा और लमही गांव के प्रधान का कहना था कि वो अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि वो इन मजदूरों के दर्द को बांट सकें. लेकिन सरकारी कागजों के जाल से वो हर बार मात खा जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इनकी राशन और नौकरी के लिए जिला प्रशासन से तमाम गुजारिश लगाई. पत्र लिखे लेकिन वो दोनों ही उपलब्ध नहीं करा पाए. क्योंकि प्रशासन उन सबको कागजों के टालमटोल में उलझाकर रख रही है और झूठा आश्वासन दे रही है. उन्होंने बताया कि उनका गांव नगर निगम में चला गया है, इसकी वजह से यहां मनरेगा और सरकारी कार्य नहीं हो रहा है. राशन कार्ड बनाने के लिए उन्होंने कई बार सूची भेजी तहसीलदार को फोन किया, लेकिन आज तक सारी सूचियां कागजों में ही रह गयीं. हकीकत में किसी को अनाज नहीं मिल पाया. उनका कहना था कि ग्राम पंचायत के लोगों ने अपने पास से अनाज इकट्ठा करके लोगों में बांटा, लेकिन वो कब तक ऐसे मदद कर पाएंगे. मजदूर अब उनके यहां उधार लेने के लिए आता है, रोता है कि उन सबको नौकरी दिलवा दो. उनका कहना था कि वो सिर्फ प्रशासन और सरकार से यह गुहार लगाना चाहते हैं कि गरीबों के बारे में भी सोचें.

'हैरत में डालते हैं आंकड़े'

यदि बनारस में आंकड़ों की बात कर लें तो बनारस में आने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या लगभग 54000 थी. जिसमें से लगभग 21000 मजदूर मनरेगा में काम किए. बीच में यह आंकड़ा 41000 भी पहुंच गया था. लेकिन इन दिनों विभागीय आंकड़े कहते हैं कि 70 प्रतिशत से ज़्यादा मजदूर वापस दूसरे राज्य लौट गए. इसलिए मनरेगा में काम बहुत कम लोग कर रहे हैं. वहीं यदि हम राशन कार्ड की बात कर ले तो आंकड़े बताते हैं कि राशनकार्ड के लिए 11000 प्रवासी लोगों को वर्गीकृत किया गया था, जिसमें से मात्र 4700 प्रवासी मजदूरों के टेंपरेरी कार्ड बने थे. आंकड़ों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस महामारी में गरीब कैसे गुजारा कर रहा होगा. ये सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इतनी संख्या में राशन कार्ड से भला कैसे गरीब मजदूरों का गुजारा होगा. शासन, प्रशासन की उदासीनता मन में कई सारे सवालों को खड़ा करती है. सरकार मजदूर के वोट से ही सत्ता की गद्दी पर बैठते हैं, लेकिन आज सरकार उसी मजदूर को अनदेखा कर रही हैं.

Last Updated : Dec 24, 2020, 6:09 PM IST
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