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वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हैं डॉ. सर्वपल्ली की स्मृतियां - काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हैं डॉ0 सर्वपल्ली की स्मृतियां

देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन की जयंती 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जाती है. ऐसे में काशी और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिये किये गये उनके योगदान को हम कभी भूल नहीं सकते.

बीएचयू से जुड़ी हैं डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन की स्मृतियां
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Published : Sep 5, 2019, 11:42 PM IST

वाराणसी: 5 सितंबर को देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत रत्न मदन मोहन मालवीय के बाद 1939 से लेकर 1948 तक सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने बतौर कुलपति के रूप में कार्य किया और विश्वविद्यालय स्थापना के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाया.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृतियां.

इसे भी पढ़ें :- वाराणसीः महामना की बगिया में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृतियां

डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के गुलामी के समय विश्वविद्यालय के कुलपति हुआ करते थे. 1942 में डॉ0 सर्वपल्ली के कार्यकाल में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश फौज विश्वविद्यालय के अंदर प्रवेश कर क्रांतिकारी छात्रों को गिरफ्तार करना चाहती थी. ऐसे में विश्वविद्यालय की गेट पर स्वयं कुलपति डॉ0 सर्वपल्ली खड़े हो गये और अंग्रेजी शासन को वापस जाने को मजबूर किया.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि डॉ0 सर्वपल्ली ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में काशी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास को ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन हो रहा था तो बिड़ला हॉस्टल क्रांतिकारियों को गाढ़ रहा था. बंगाल के क्रांतिकारी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शरण पाए हुए थे.

उस समय कुलपति रहे डॉ0 सर्वपल्ली स्वयं गेट पर खड़े हो गये और ब्रिटिश फौज को रोक दिया. उन्होंने कहा कि मेरी लाश पर से ब्रिटिश फौज काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भीतर जायेगी. डॉ0 साहब का सीधे सीधे सिद्धांत था कि विश्वविद्यालय में रहने वाला छात्र अपराधी नहीं हो सकता. मुझे लगता है यह बीएचयू और काशी की जनता के लिए गर्व की बात है.

वाराणसी: 5 सितंबर को देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत रत्न मदन मोहन मालवीय के बाद 1939 से लेकर 1948 तक सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने बतौर कुलपति के रूप में कार्य किया और विश्वविद्यालय स्थापना के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाया.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृतियां.

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डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के गुलामी के समय विश्वविद्यालय के कुलपति हुआ करते थे. 1942 में डॉ0 सर्वपल्ली के कार्यकाल में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश फौज विश्वविद्यालय के अंदर प्रवेश कर क्रांतिकारी छात्रों को गिरफ्तार करना चाहती थी. ऐसे में विश्वविद्यालय की गेट पर स्वयं कुलपति डॉ0 सर्वपल्ली खड़े हो गये और अंग्रेजी शासन को वापस जाने को मजबूर किया.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि डॉ0 सर्वपल्ली ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में काशी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास को ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन हो रहा था तो बिड़ला हॉस्टल क्रांतिकारियों को गाढ़ रहा था. बंगाल के क्रांतिकारी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शरण पाए हुए थे.

उस समय कुलपति रहे डॉ0 सर्वपल्ली स्वयं गेट पर खड़े हो गये और ब्रिटिश फौज को रोक दिया. उन्होंने कहा कि मेरी लाश पर से ब्रिटिश फौज काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भीतर जायेगी. डॉ0 साहब का सीधे सीधे सिद्धांत था कि विश्वविद्यालय में रहने वाला छात्र अपराधी नहीं हो सकता. मुझे लगता है यह बीएचयू और काशी की जनता के लिए गर्व की बात है.

Intro:आज शिक्षक दिवस यानी देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती प्रतिवर्ष हम 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन काशी हिंदू विश्वविद्यालय के 1939 से लेकर 1948 तक भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय के बाद दूसरे कुलपति के रूप में कार्य किया और विश्वविद्यालय स्थापना के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाया।


Body:डॉक्टर राधाकृष्णन जब विश्वविद्यालय के कुलपति हुआ करते थे जो देश गुलाम था 1942 में पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन कि गुस्से में विश्वविद्यालय क्रांतिकारियों का गढ़ था एक बार डॉक्टर सर्वपल्ली के कार्यकाल में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश फौज विश्वविद्यालय के अंदर प्रवेश कर क्रांतिकारी छात्रों को गिरफ्तार करना चाहती थी ऐसे में विश्वविद्यालय की गेट पर स्वयं भतार कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन खड़े हो गए और उन्होंने अंग्रेजों को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया।


Conclusion:काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में काशी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन हो रहा बिड़ला हॉस्टल क्रांतिकारियों का गाढ़ रहा करता था। बंगाल की क्रांतिकारी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शरण पाए हुए थे राधाकृष्णन कुलपति थे। वह स्वयं गए और गेट पर खड़े होकर के ब्रिटिश फौज को रोक दिया और कहां मेरी लाश पर से ब्रिटिश फौज काशी हिंदू विश्वविद्यालय कर भितर जाएंगी। डॉक्टर साहब का सीधे-सीधे सिद्धांता कि विश्वविद्यालय में रहने वाला छात्र अपराधी नहीं हो सकता आतंकवादी नहीं हो सकता भले राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए बलिदानी हो सकता है। हम काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ब्रिटिश फौज को नहीं आने देंगे। मुझे लगता है यह बीएचयू और पूर्व कुलपति डॉक्टर कृष्णन और काशी की जनता के लिए गर्व की बात है।

बाईट:-- प्रो कौशल किशोर मिश्रा,बीएचयू,

अशुतोष उपध्याय
9005099684
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