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माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय व्रत की हुई शुरुआत, इन नियमों संग भक्तों ने लिया खास धागा

वाराणसी में माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय व्रत की शुरुआत रविवार से हो गई है. आइए जानते है इस व्रत के बारे में...

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Published : Nov 13, 2022, 10:29 PM IST

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वाराणसी: धर्म नगरी वाराणसी को 'सात वार नौ त्योहार' का शहर कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यहां एक त्योहार खत्म नहीं होता और दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. ऐसे ही एक व्रत और त्योहार की शुरूआत रविवार को वाराणसी में हुई. माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय व्रत की शुरुआत आज की गई. व्रत करने वाले मंदिर पहुंचे. वहीं, महंत अन्नपूर्णा मंदिर से खास धागा लेकर व्रत की शुरुआत की.

मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय इस खास व्रत को करने से सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और घर में हमेशा अन्य धन प्रचुर मात्रा में भरा रहता है. ये व्रत 17 वर्ष, 17 महीने, 17 दिन का महाव्रत माना जाता है. भक्तों अपने व्रत के संकल्प के साथ महंत शंकर पूरी के हाथों 17 गांठ वाले धागे प्राप्त कर अपने हाथ में धारण करते है. इस महाव्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, केवल एक वक्त फलहार करते है.

महंत शंकपुरी ने बताया कि इस महाव्रत से सारे दुख दूर हो जाते है. साथ ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इसका उद्यापन 29 नवम्बर को होगा. उद्यापन के दिन धान के बालियों से पूरा परिसर सजाया जाता है. जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित कर दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि पहली फसल की धान की बालियां किसानों द्वारा माता को अर्पित की जाती है. पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों से किसान धान की बालियां लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं और उसी से पूरा दरबार सजाया जाता है.

यह भी पढ़ें: अब 1 साल बाद होंगे माता अन्नपूर्णा की स्वर्णमई प्रतिमा के दर्शन, आज बंद हो जाएगा दर्शन का दरबार

वाराणसी: धर्म नगरी वाराणसी को 'सात वार नौ त्योहार' का शहर कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यहां एक त्योहार खत्म नहीं होता और दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. ऐसे ही एक व्रत और त्योहार की शुरूआत रविवार को वाराणसी में हुई. माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय व्रत की शुरुआत आज की गई. व्रत करने वाले मंदिर पहुंचे. वहीं, महंत अन्नपूर्णा मंदिर से खास धागा लेकर व्रत की शुरुआत की.

मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा के 17 दिवसीय इस खास व्रत को करने से सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं और घर में हमेशा अन्य धन प्रचुर मात्रा में भरा रहता है. ये व्रत 17 वर्ष, 17 महीने, 17 दिन का महाव्रत माना जाता है. भक्तों अपने व्रत के संकल्प के साथ महंत शंकर पूरी के हाथों 17 गांठ वाले धागे प्राप्त कर अपने हाथ में धारण करते है. इस महाव्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, केवल एक वक्त फलहार करते है.

महंत शंकपुरी ने बताया कि इस महाव्रत से सारे दुख दूर हो जाते है. साथ ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इसका उद्यापन 29 नवम्बर को होगा. उद्यापन के दिन धान के बालियों से पूरा परिसर सजाया जाता है. जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित कर दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि पहली फसल की धान की बालियां किसानों द्वारा माता को अर्पित की जाती है. पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों से किसान धान की बालियां लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं और उसी से पूरा दरबार सजाया जाता है.

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