वाराणसी : अब गंगा किनारे रहने वाले किसानों के लिए ब्रांड गंगा वरदान बनने जा रही है. यह वरदान ऐसा होगा जो न सिर्फ उनके जीवन को बदलेगा, बल्कि गंगा की भी शुद्धता का ख्याल रखेगा. वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र ने गंगा किनारे रहने वाले लोगों के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है, जो पीएम नरेंद्र मोदी के अर्थ गंगा के सपने को भी धरातल पर उतारेगा.
बीएचयू महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि प्लान के मुताबिक गंगा के किनारे बसे गांवों के किसानों की आय बढ़ाई जाएगी. इस योजना में ऑर्गेनिक फार्मिंग और सिंचाई व्यवस्था को सुनिश्चित करना शामिल है. गंगा किनारे खेतों में गंगा के पानी से उगाई गई फसलों को ब्रांड गंगा नाम दिया जाएगा. एक्वॉकल्चर और फ्लोरीकल्चर के जरिए किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा.
प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि युवकों को ऐसे-ऐसे काम दिए जाएं जो गंगा के प्रदूषण को रोकें, उसकी अविरलता को बढाएं. यह तभी संभव होगा जब उनका भी आर्थिक विकास हो. गंगा के किनारे जोड़ने वालों में हमारे पंडा हैं, नाविक हैं, पुजारी हैं. गंगा के दोनों किनारे रहने वाले किसान इस नदी पर निर्भर हैं. वह सभी सब्जी उगाते हैं, फ्लोरीकल्चर करते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर जिन सब्जियों की खेती किसान गंगा के पानी से सिंचाई करके कर रहे हैं, उनकी ब्रांडिंग इस नदी के नाम पर की जाएगी. जैसे गंगा बैगन, गंगा गोभी. जब लोगों को यह पता लगेगा कि इस सब्जी का उत्पादन गंगा के पानी से सिंचाई करके किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में लोग अच्छी कीमत देकर भी इन सब्जियों को खरीदना चाहेंगे.
सिंघाड़ा और मखाना की खेती भी संभव : प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि गंगा के पानी का दो तरह से उपयोग होता है. एक तो गंगा का पानी सिंचाई में खर्च होता है. इसके अलावा नाव चलाना, फिशरीज एवं एक्वाकल्चर जैसे मखाना और सिंघाड़ा की खेती की जाती है. अगर गंगा के किनारे कुछ किलोमीटर के एरिया को नेटिंग करके पानी को घेर दें तो इसमें ऐसी खेती की जा सकती है. केंद्र की ओर से सरकार को ऐसा ही प्रस्ताव भेजा है.
रोका जा सकेगा गंगा के पानी का दोहन : बता दें कि 2525 किलोमीटर के गंगा बेसिन में जगह-जगह केंद्र बनाने के लिए एनएमसीजी को प्रस्ताव भेजा गया है. इनमें फ्लोरीकल्चर, एक्वाकल्चर और नौकायन का काम किया जाएगा. इस योजना के बाद कोई गंगा को प्रदूषित नहीं कर सकेगा. गंगा के पानी का दोहन नहीं होगा. इसके साथ ही सरकार की तरफ से गंगा के कुछ इलाकों की नीलामी भी की जाएगी. वहां पर जाल लगाकर मछली पालन की सुविधा दी जाएगी. किसान बेहतर आय कर सकेंगे.
पढ़ें : Tree Guard On Flyover: फ्लाईओवर पर लगाए गए ट्री गार्ड में 70 प्रतिशत पौधे सूखे, आखिर काशी कैसे बनेगा हरा-भरा शहर?
गंगा किनारे रहने वाले किसानों के लिए ब्रांड गंगा बनेगी वरदान - ब्रांड गंगा बनेगी वरदान
गंगा सदियों से जीवनदायिनी रही है. गंगा किनारे रहने वाले किसानों के लिए यह नदी आय का बड़ा स्रोत हो सकती है, बशर्ते उनके प्रोडक्ट को पहचान मिले. बीएचयू महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र ने इन किसानों की उपज की ब्रांडिंग की तैयारी की है. क्या है खास, पढ़ें यह रिपोर्ट
वाराणसी : अब गंगा किनारे रहने वाले किसानों के लिए ब्रांड गंगा वरदान बनने जा रही है. यह वरदान ऐसा होगा जो न सिर्फ उनके जीवन को बदलेगा, बल्कि गंगा की भी शुद्धता का ख्याल रखेगा. वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र ने गंगा किनारे रहने वाले लोगों के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है, जो पीएम नरेंद्र मोदी के अर्थ गंगा के सपने को भी धरातल पर उतारेगा.
बीएचयू महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि प्लान के मुताबिक गंगा के किनारे बसे गांवों के किसानों की आय बढ़ाई जाएगी. इस योजना में ऑर्गेनिक फार्मिंग और सिंचाई व्यवस्था को सुनिश्चित करना शामिल है. गंगा किनारे खेतों में गंगा के पानी से उगाई गई फसलों को ब्रांड गंगा नाम दिया जाएगा. एक्वॉकल्चर और फ्लोरीकल्चर के जरिए किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा.
प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि युवकों को ऐसे-ऐसे काम दिए जाएं जो गंगा के प्रदूषण को रोकें, उसकी अविरलता को बढाएं. यह तभी संभव होगा जब उनका भी आर्थिक विकास हो. गंगा के किनारे जोड़ने वालों में हमारे पंडा हैं, नाविक हैं, पुजारी हैं. गंगा के दोनों किनारे रहने वाले किसान इस नदी पर निर्भर हैं. वह सभी सब्जी उगाते हैं, फ्लोरीकल्चर करते हैं.
उन्होंने कहा कि अगर जिन सब्जियों की खेती किसान गंगा के पानी से सिंचाई करके कर रहे हैं, उनकी ब्रांडिंग इस नदी के नाम पर की जाएगी. जैसे गंगा बैगन, गंगा गोभी. जब लोगों को यह पता लगेगा कि इस सब्जी का उत्पादन गंगा के पानी से सिंचाई करके किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में लोग अच्छी कीमत देकर भी इन सब्जियों को खरीदना चाहेंगे.
सिंघाड़ा और मखाना की खेती भी संभव : प्रो बीडी त्रिपाठी ने बताया कि गंगा के पानी का दो तरह से उपयोग होता है. एक तो गंगा का पानी सिंचाई में खर्च होता है. इसके अलावा नाव चलाना, फिशरीज एवं एक्वाकल्चर जैसे मखाना और सिंघाड़ा की खेती की जाती है. अगर गंगा के किनारे कुछ किलोमीटर के एरिया को नेटिंग करके पानी को घेर दें तो इसमें ऐसी खेती की जा सकती है. केंद्र की ओर से सरकार को ऐसा ही प्रस्ताव भेजा है.
रोका जा सकेगा गंगा के पानी का दोहन : बता दें कि 2525 किलोमीटर के गंगा बेसिन में जगह-जगह केंद्र बनाने के लिए एनएमसीजी को प्रस्ताव भेजा गया है. इनमें फ्लोरीकल्चर, एक्वाकल्चर और नौकायन का काम किया जाएगा. इस योजना के बाद कोई गंगा को प्रदूषित नहीं कर सकेगा. गंगा के पानी का दोहन नहीं होगा. इसके साथ ही सरकार की तरफ से गंगा के कुछ इलाकों की नीलामी भी की जाएगी. वहां पर जाल लगाकर मछली पालन की सुविधा दी जाएगी. किसान बेहतर आय कर सकेंगे.
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