वाराणसी: हरि प्रबोधिनी यानी देवोत्थान एकादशी के मौके पर प्रदेश भर में श्रद्धा का माहौल देखने को मिल रहा है. श्रद्धालु आज गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करने के बाद पूजा-अर्चना कर रहे हैं. काशी और संगमनगरी प्रयागराज के घाटों पर भी सुबह से स्नान करने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ रहा है. हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है. कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी के साथ ही शादी-विवाह आदि सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं.
क्या है मान्यता
पुराणों में कथा है कि वृंदा नाम की एक स्त्री थी, जिसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था. वृंदा भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी. उसका विवाह राक्षस कुल में दानव राजा जलंधर से करा दिया गया. इस राक्षस ने चारों तरफ हाहाकार मचा कर रखा था. ये बेहद ही वीर और पराक्रमी था. राक्षस जलंधर की वीरता का रहस्य उसकी पत्नी थी जो पतिव्रता धर्म का पालन करती थी. पत्नी के व्रत के प्रभाव से ही वो राक्षस इतना वीर बन पाया था. ऐसे में उसके अत्याचार से परेशान होकर देवता लोग भगवान विष्णु के पास गए. सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय कर लिया.
भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वे वृंदा के महल में पहुंच गए. जैसे ही वृंदा की नजर अपने पति पर पड़ी वे पूजा में से तुरंत उठ गई और उसने जलंधर का रूप धारण किए भगवान विष्णु के चरण छू लिए. उस समय वृंदा का पति जलंधर युद्ध कर रहा था, लेकिन जैसे ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हुआ उसके पति का कटा हुआ सिर उसके आंगन में आ गिरा. वृंदा सोचने लगीं कि यदि सामने कटा पड़ा सिर मेरे पति का है, तो जो व्यक्ति मेरे सामने खड़ा है, यह कौन है? वृंदा के पूछने पर भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आ गए. वृंदा अपने साथ हुए इस छल से बहुत आहत हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर के बन जाVने का श्राप दे दिया. वृंदा के श्राप से विष्णु तुरंत पत्थर के बन गए. ये देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से यह प्रार्थना की वो विष्णु जी को अपने श्राप से मुक्त करें.
तुलसी विवाह के लिए किए जाते हैं ये कार्य
देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ-सफाई करते हैं और भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं. फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं.
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह करना बेहद ही मंगलकारी माना जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को तुलसी का विवाह शामिग्राम से कराने की परंपरा है. कहते हैं तुलसी विवाह कराने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होने के साथ जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
काशी में हुआ तुलसी-शालिग्राम का विवाह
भगवान शिव की नगरी काशी में देवोत्थान एकादशी के मौके पर श्रद्धालुओं ने सुबह से ही स्नान कर भगवान भाष्कर को अर्घ्य दिया. इसके बाद गरीबों में अन्न-फल-मिष्ठान, वस्त्र एवं दान किया. काशी के प्रमुख घाटों पर मां तुलसी का भगवान शालिग्राम से पूरे विधि विधान से विवाह किया गया. यहां मां तुलसी को हल्दी लगाई गई साथ ही भगवान विष्णु का उपनयन संस्कार किया गया. इसके बाद मां तुलसी का कन्यादान किया गया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप में माता तुलसी का वरण किया.
इस मौके पर सुषमा पांडेय ने बताया कि आज भगवान विष्णु का विवाह तुलसी जी के साथ होता है. इनकी शादी के बाद ही इंसानों की शादी शुरू हो जाती है. इस शादी में जो विधि-विधान किया जाता है. वही, विधि मनुष्यों की शादी में किया जाता है.
वहीं महंत डॉ भानु प्रकाश ने बताया कि एकादशी के दिन माता तुलसी का भगवान विष्णु के साथ विवाह होता है. यह कार्तिक मास का एकादशी है जो सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है. इसके पहले सावन से ही विष्णु भगवान योगनिद्रा में चले जाते हैं. सारे शुभ कार्य बंद रहते हैं. यहां अस्सी घाट पर तीन नदियों का संगम है इसलिए यहां का महत्व सबसे ज्यादा है और पुण्य भी सबसे अधिक है.
प्रयागराज में सनतान परंपरा अनुसार किया गया तुलसी विवाह
देवउठनी एकादशी के पर्व पर मनाए जाने वाला तुलसी विवाह बड़ी धूमधाम व श्रद्धापूर्वक सनतान परंपरा अनुसार मनाया गया. प्रयागराज के यमुना घाट पर तुलसी व शालीग्राम भगवान के विवाह का आयोजन किया गया. जिसमे माता तुलसी का विशेष श्रृंगार किया गया. साथ ही माता तुलसी शालिग्राम की पूजा-अर्चना कर विवाह संपन्न कराया गया. विवाह को सम्पन्न कराकर सुखा, समृद्धि, और अखण्ड सौभाग्य का आशीष मांगा.
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