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धन की कोठरी में रखें मां अन्नपूर्णां का प्रसाद, नहीं होगी धन-धान्य की कमी

24 नवम्बर से शुरु हुआ मां अन्नपूर्णां का 17 दिनों तक चलने वाला व्रत आज पूर्णं हो गया है. इस दिन मां के दरबार को धान की बालियों से सजाया गया और यह उत्सव धूमधाम के साथ माता के मंदिर में मनाया गया.

धान की बालियों से सजा मां अन्नपूर्णां मंदिर
धान की बालियों से सजा मां अन्नपूर्णां मंदिर
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Published : Dec 9, 2021, 5:48 PM IST

वाराणसी: काशी वह अद्भुत शहर है जहां पर धर्म और आस्था का समागम देखने को मिलता है. इस शहर में एक तरफ जहां बाबा भोलेनाथ विराजमान हैं तो वहीं दूसरी तरफ मां पार्वती अन्नपूर्णां के रूप में यहां लोगों की भूख मिटाती हैं. भगवान शंकर भी माता अन्नपूर्णां से ही भिक्षा लेकर अपनी क्षुधा को शांत करते हैं लेकिन, साल में एक बार माता अन्नपूर्णा का 17 दिनों का व्रत होता है. इस दिन माता अन्नपूर्णा के दरबार को किसानों के द्वारा लाए गए नए धान की बालियों से सजाया जाता है. गुरुवार को काशी में यह उत्सव धूमधाम के साथ माता के मंदिर में मनाया गया.

कठिन व्रत हुआ पूर्णं

गुरुवार को माता अन्नपूर्णां का 17 दिवसीय महाव्रत का समापन हुआ है. इस दौरान भक्त 17 दिन, 17 घाट और 17 धागे का यह कठिन व्रत करते हैं. इस व्रत में एक बार ही फलहार ग्रहण करते हैं. 24 नवम्बर से महाव्रत शुरु हो गया था. मंदिर परिसर में भक्तों के व्रत उद्यापन को लेकर तांता लगा था. इस मौके पर किसी ने 51 फेरे लगाए तो किसी ने 501 फेरे लगाकर अपनी-अपनी मन्नतों को पूर्णं किया.

धान की बालियों से सजा मां अन्नपूर्णां मंदिर

पूर्वांचल के किसान अर्पित करते हैं अपनी पहली फसल

महाव्रत के दौरान मंदिर परिसर को धान की बालियों से सजाया गया था. अपराह्न भोग आरती के समय महन्त शंकर पुरी की देख रेख में धान की बालियों से मां का भव्य श्रृंगार किया. जिसकी एक झलक पाने के लिये भक्त घण्टों कतार में लगे हुए थे. पूर्वांचल के किसान अपनी पहली फसल माता को अर्पित कर आर्शीवाद मांगते हैं कि कभी धन धान्य की कमी न पड़े और इसी धान की बाली को दूसरे दिन प्रसाद रूप में ले जाकर अपने अन्न में मिलाते हैं.

इसे भी पढ़ें- कनाडा से लाई गई मां अन्नपूर्णां की प्रतिमा बाबा विश्वनाथ धाम में हुई स्थापित, तस्वीरों में देखें झलकियां

भक्तों में बांटा जाता है धान

श्रृंगार के दूसरे दिन महन्त जी के हाथों प्रथम तल पर प्रसाद रूप में धान की बाली भक्तों को बांटी जाती है. महंत शंकर पुरी ने कहा कि इस महाव्रत के करने से किसी भी प्रकार का कष्ट, दुख तकलीफ दूर हो जाती है, सभी की मन्नतें पूरी होती हैं. मां के दरबार में बाबा भोलेनाथ ने स्वयं मां से अन्न की भिक्षा मांगी थी. यहां धान की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है. पूर्वांचल के किसान अपनी पहली फसल की बाली मां को अर्पित करते हैं. प्रसाद स्वरूप मिलने वाली इन धान की बालियों को अपने घर में धन की कोठरी में रखने मात्र से ही घर में कभी भी धन और धान्य दोनों की कमी नहीं होती है और मां की कृपा सदैव बनी रहती है.

वाराणसी: काशी वह अद्भुत शहर है जहां पर धर्म और आस्था का समागम देखने को मिलता है. इस शहर में एक तरफ जहां बाबा भोलेनाथ विराजमान हैं तो वहीं दूसरी तरफ मां पार्वती अन्नपूर्णां के रूप में यहां लोगों की भूख मिटाती हैं. भगवान शंकर भी माता अन्नपूर्णां से ही भिक्षा लेकर अपनी क्षुधा को शांत करते हैं लेकिन, साल में एक बार माता अन्नपूर्णा का 17 दिनों का व्रत होता है. इस दिन माता अन्नपूर्णा के दरबार को किसानों के द्वारा लाए गए नए धान की बालियों से सजाया जाता है. गुरुवार को काशी में यह उत्सव धूमधाम के साथ माता के मंदिर में मनाया गया.

कठिन व्रत हुआ पूर्णं

गुरुवार को माता अन्नपूर्णां का 17 दिवसीय महाव्रत का समापन हुआ है. इस दौरान भक्त 17 दिन, 17 घाट और 17 धागे का यह कठिन व्रत करते हैं. इस व्रत में एक बार ही फलहार ग्रहण करते हैं. 24 नवम्बर से महाव्रत शुरु हो गया था. मंदिर परिसर में भक्तों के व्रत उद्यापन को लेकर तांता लगा था. इस मौके पर किसी ने 51 फेरे लगाए तो किसी ने 501 फेरे लगाकर अपनी-अपनी मन्नतों को पूर्णं किया.

धान की बालियों से सजा मां अन्नपूर्णां मंदिर

पूर्वांचल के किसान अर्पित करते हैं अपनी पहली फसल

महाव्रत के दौरान मंदिर परिसर को धान की बालियों से सजाया गया था. अपराह्न भोग आरती के समय महन्त शंकर पुरी की देख रेख में धान की बालियों से मां का भव्य श्रृंगार किया. जिसकी एक झलक पाने के लिये भक्त घण्टों कतार में लगे हुए थे. पूर्वांचल के किसान अपनी पहली फसल माता को अर्पित कर आर्शीवाद मांगते हैं कि कभी धन धान्य की कमी न पड़े और इसी धान की बाली को दूसरे दिन प्रसाद रूप में ले जाकर अपने अन्न में मिलाते हैं.

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भक्तों में बांटा जाता है धान

श्रृंगार के दूसरे दिन महन्त जी के हाथों प्रथम तल पर प्रसाद रूप में धान की बाली भक्तों को बांटी जाती है. महंत शंकर पुरी ने कहा कि इस महाव्रत के करने से किसी भी प्रकार का कष्ट, दुख तकलीफ दूर हो जाती है, सभी की मन्नतें पूरी होती हैं. मां के दरबार में बाबा भोलेनाथ ने स्वयं मां से अन्न की भिक्षा मांगी थी. यहां धान की परम्परा आदिकाल से चली आ रही है. पूर्वांचल के किसान अपनी पहली फसल की बाली मां को अर्पित करते हैं. प्रसाद स्वरूप मिलने वाली इन धान की बालियों को अपने घर में धन की कोठरी में रखने मात्र से ही घर में कभी भी धन और धान्य दोनों की कमी नहीं होती है और मां की कृपा सदैव बनी रहती है.

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