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वाराणसी: संपूर्णानंद विवि. में भाषा की महत्व पर हुआ विशिष्ट व्याख्यान

यूपी के वाराणसी में स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शुक्रवार को वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र द्वारा विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय ओडिशा के पूर्व कुलपति मुख्य वक्ता रहे.

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Published : Sep 25, 2020, 6:25 PM IST

संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय.
संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय.

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र के द्वारा महर्षि पाणिनि तंत्र भाषा विज्ञान सिद्धांता: विषय पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया, जहां मुख्य वक्ता जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय ओडिशा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर राधा माधव दास ने अपने विचार प्रस्तुत किए.

आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान में भाषा अध्ययन की वह शाखा है, जिसमें भाषा की उत्पत्ति स्वरूप विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है. भाषा विज्ञान भाषा के स्वरूप, भाषा के अर्थ और संदर्भ का विश्लेषण करता है. उन्होंने कहा कि मूलत: भाषा दो प्रकार की होती है, योगात्मक एवं और योगात्मक. इसमें योगात्मक के अंतर्गत चीनी, अनामी, तिब्बती, वर्मी इत्यादि भाषाएं आती हैं, जो अक्षर एवं स्थान प्रधान होते हैं. वहीं दूसरी भाषा और योगात्मक है, इसके अंतर्गत मूलत प्रश्लिष्ट, अश्लिष्ट, श्लिष्ट तीन प्रकार से विभाजन हुआ है, जिसमें प्रश्लिष्ट में ग्रीनलैंडी, चैरोकि, बास्क आदि भाषाएं बोली जाती हैं. अश्लिष्ट में जुलूस, काफी, मनोरंजन आदि है. श्लिष्ट इसके अंतर्गत अरबी, हिब्रू, संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, हिंदी आती है.

इसी क्रम में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजा राम शुक्ला ने कहा कि भाषा की आंतरिक व्यवस्था का अध्ययन भाषा विज्ञान करता है. भाषा विज्ञान भाषा तथा विज्ञान के योग से बना है. भाषा से अभिप्राय ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है. भाषा विज्ञान उपसर्ग तथा ज्ञान शब्द से बना है. अतः विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान. इस प्रकार भाषा विज्ञान की विषय वस्तु भाषा अध्ययन प्रणाली वैज्ञानिक भाषा विज्ञान की परंपरा है, जो भारत में प्राचीन काल से चली आ रही हैं.

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विज्ञान अनुसंधान केंद्र के द्वारा महर्षि पाणिनि तंत्र भाषा विज्ञान सिद्धांता: विषय पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया, जहां मुख्य वक्ता जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय ओडिशा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर राधा माधव दास ने अपने विचार प्रस्तुत किए.

आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञान में भाषा अध्ययन की वह शाखा है, जिसमें भाषा की उत्पत्ति स्वरूप विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है. भाषा विज्ञान भाषा के स्वरूप, भाषा के अर्थ और संदर्भ का विश्लेषण करता है. उन्होंने कहा कि मूलत: भाषा दो प्रकार की होती है, योगात्मक एवं और योगात्मक. इसमें योगात्मक के अंतर्गत चीनी, अनामी, तिब्बती, वर्मी इत्यादि भाषाएं आती हैं, जो अक्षर एवं स्थान प्रधान होते हैं. वहीं दूसरी भाषा और योगात्मक है, इसके अंतर्गत मूलत प्रश्लिष्ट, अश्लिष्ट, श्लिष्ट तीन प्रकार से विभाजन हुआ है, जिसमें प्रश्लिष्ट में ग्रीनलैंडी, चैरोकि, बास्क आदि भाषाएं बोली जाती हैं. अश्लिष्ट में जुलूस, काफी, मनोरंजन आदि है. श्लिष्ट इसके अंतर्गत अरबी, हिब्रू, संस्कृत, ग्रीक, लैटिन, हिंदी आती है.

इसी क्रम में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजा राम शुक्ला ने कहा कि भाषा की आंतरिक व्यवस्था का अध्ययन भाषा विज्ञान करता है. भाषा विज्ञान भाषा तथा विज्ञान के योग से बना है. भाषा से अभिप्राय ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है. भाषा विज्ञान उपसर्ग तथा ज्ञान शब्द से बना है. अतः विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान. इस प्रकार भाषा विज्ञान की विषय वस्तु भाषा अध्ययन प्रणाली वैज्ञानिक भाषा विज्ञान की परंपरा है, जो भारत में प्राचीन काल से चली आ रही हैं.

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