वाराणसी: काशी शिव की नगरी कही जाती है और काशी के कण-कण में शिव का वास है. शिव की इस नगरी में वैसे तो बहुत से स्वयंभू शिवलिंग और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्थापित मंदिर मिल जाएंगे, लेकिन आज हम आपको जिस मठ मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, वह मंदिर न सिर्फ कण-कण में शिव के होने का एहसास कराता है बल्कि दक्षिण भारत और महाराष्ट्र से आने वाले भक्तों के लिए बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है. इस पवित्र स्थल पर एक दो नहीं बल्कि भगवान शिव के लाखों शिवलिंग स्थापित है. आपकी नजरें जहां तक जाएंगी वहां से आपको भगवान शिव के ही दर्शन होंगे, तो आइए हम आपको बताते हैं बनारस के उस अद्भुत मठ मंदिर के बारे में जो 1400 साल पहले स्थापित हुआ और आज भी यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में शिवलिंग की स्थापना होती है साथ ही क्या है इस लाखों शिवलिंग से जुड़ी कहानी और क्यों यह स्थान भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है.
स्थापित हैं कोटि कोटि शिवलिंग
दरअसल वाराणसी शहर में जंगमबाड़ी इलाके में स्थित जगम बाड़ी मठ 1400 साल पुराना है. इस मठ के वर्तमान पीठाधीश्वर जगतगुरु चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी हैं. इस मठ से जुड़ी कई कहानियां हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है इस मठ में स्थापित कोटि-कोटि शिवलिंग, कोटि-कोटि इसलिए क्योंकि इन शिवलिंगों की गिनती ही नहीं है. वैसे यह कहा जाता है कि यहां पर 10 लाख से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन इनकी गिनती ना हुई है ना हो सकती है, क्योंकि हर रोज यहां पर सैकड़ों की संख्या में शिवलिंग की स्थापना होती रहती है.
दक्षिण भारत के अनुयायियों की है बड़ी संख्याइस बारे में मठ के महास्वामी चंद्रशेखर शिवाचार्य का कहना है किया मठ 14 साल पहले स्थापित हुआ. इसे ज्ञान सिंहासन और ज्ञानपीठ के रूप में भी जाना जाता है. इस मठ का नाम ही शिव को जानने वाले आश्रम के रूप में जाना जाता है. यहां पर वीरशैव समुदाय के लोगों का आना होता है. इस समुदाय के लोग दक्षिण भारत से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना कर्नाटक और महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. इनकी संख्या लाखों-करोड़ों में इस मठ से जुड़े लोग अपने गले में भगवान शिव के लिंग को धारण करते हैं. शिवलिंग के धारण होने की वजह से उन्हें वीरशैव या लिंगायत समुदाय से जोड़कर देखा जाता है.
इस वजह से स्थापित हैं लाखों शिवलिंग
ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय से जुड़े लोगों की मृत्यु के बाद इनका पिंडदान नहीं किया जाता, बल्कि इनकी अपने इनके नाम से इस मठ में आकर पूरे विधि-विधान से एक शिवलिंग की स्थापना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस समुदाय से जुड़े लोगों को स्वर्ग या नर्क नहीं बल्कि शिवलोक मिलता है. वह शिव में लीन हो जाते हैं. इसलिए उनकी मृत्यु के उपरांत उनके नाम से शिवलिंग की स्थापना कर उनका पूजन पाठ किया जाता है, ताकि उनके नाम से स्थापित शिवलिंग की पूजा करने का फल भगवान शिव की आराधना करने के रूप में प्राप्त हो सके. यही वजह है कि यहां पर लाखों लाख की संख्या में शिवलिंग स्थापित हैं. सबसे अहम दिया है कि इस स्थान पर सावन मास में शिवलिंग स्थापना का विशेष महत्व है. यही वजह है कि दक्षिण भारत समेत महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं और सावन के महीने में अपने पूर्वजों के नाम से शिवलिंग की स्थापना कर उनके शिवलोक जाने की कामना करते हैं.
कई मान्यताओं का केंद्र है यह मठ
वीरशैव स्थावरलिंग यानी एक ही जगह पर स्थिर लिंग के रूप में पूजा जाता है और इनको गले में पहनने की मान्यता भी होती है. यहां पर आने वाले वक्त भी अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं. उनका कहना है कि काशी में तो हर तरफ शंकर विराजमान है लेकिन यहां पर आने के बाद या अनुभव हो जाता है, क्योंकि आपकी नजरें जहां भी जाएंगी वहां पर शिव आपको दिखाई दे जाएंगे. छोटे-बड़े हर आकार के शिवलिंग और नंदी की मौजूदगी के बीच यह मठ सावन के महीने में भगवान शिव की उपस्थिति का सबसे जीता जागता उदाहरण काशी में आपको देखने को मिलेगा. दूर-दूर से यहां पर लाखों की संख्या में आने वाले भक्तों की आस्था इस्मठ से जुड़ी हुई है और यहां पर स्थापित लाखों शिवलिंग काशी की अद्भुत महिमा का भी बयां करने के लिए काफी हैं जिसके बारे में काशी को जाना जाता है.