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अद्भुत योग में जन्म लेंगे नंदलाल, जानिए क्यों होता है श्रीकृष्ण का खीरे से जन्म - cucumber use on krishna birth

आज 30 अगस्त को कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. इस बार अद्भुत योग की वजह से श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त की मध्य रात्रि 12:00 बजे ही मनाया जाएगा और इसी समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जा सकेगा.

अद्भुत योग में जन्म लेंगे नंदलाल
अद्भुत योग में जन्म लेंगे नंदलाल
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Published : Aug 30, 2021, 10:19 AM IST

वाराणसी: आज 30 अगस्त को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. यह पर्व वैष्णव और शैव दोनों संप्रदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. हालांकि हर साल कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व दोनों संप्रदाय के लोग अलग-अलग दिन मनाते हैं लेकिन इस बार जन्माष्टमी दोनों संप्रदाय की तरफ से 30 अगस्त को ही मनाई जाएगी.

दरअसल, अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र यानी जिस काल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, वह 30 अगस्त की रात्रि में प्राप्त हो रही है. इस अद्भुत योग की वजह से श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त की मध्य रात्रि 12:00 बजे ही मनाया जाएगा. इसी समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जा सकेगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस विशेष दिन में व्रत रखने का विशेष विधान बताया गया है.

इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव धूमधाम के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी रोहिणी नक्षत्र में वृषभ राशि के चंद्रमा में हुआ था. भगवान श्री कृष्ण ही ऐसे विशेष देवता हैं जो 10 अवतारों में सर्व प्रमुख पूर्ण अवतार यानी 16 कलाओं से परिपूर्ण माने जाते हैं.

जानकारी देते पंडित ऋषि द्विवेदी
पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत आज 30 अगस्त को रखा जा रहा है और इसी दिन यह पर्व मनाया जा रहा है. अष्टमी तिथि 29 अगस्त की रात्रि 10:10 पर लग गई है जो आज 30 अगस्त की रात्रि 12:14 तक रहेगी. वहीं रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त को प्रातः 6:42 पर है जो 31 अगस्त को सुबह 9:00 बजकर 19 मिनट तक रहेगा.
अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र की वजह से बन रहा यह संयोग
देखा जाए तो इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने आप में बेहद खास होने वाली है. इसका बड़ा कारण यह है कि रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी का योग जयंती नामक अद्भुत संयोग के साथ आगे बढ़ेगा, जो यदा-कदा देखने को मिलता है.
इस बार ऐसा ही सुंदर योग रात्रि के समय अपने आप मिल रहा है.क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में ही माना गया है और इस बार रोहिणी नक्षत्र अष्टमी तिथि मध्य रात्रि में प्राप्त हो रही है. इसलिए श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12:00 बजे किया जाना सर्वोत्तम होगा.
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है की व्यापिनी रोहिणी मतालंबी वैष्णव 30 और 31 अगस्त दोनों दिन यह त्यौहार मना सकते हैं, लेकिन जो अद्भुत सहयोग प्राप्त हो रहा है वह 30 अगस्त को ही इस त्योहार को मनाए जाने के लिए उत्तम है.
खीरे से जन्म लेते हैं भगवान श्री कृष्णा
भगवान श्री कृष्ण का जन्म बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसमें तिथि और नक्षत्र का तो विशेष ध्यान रखा जाता है लेकिन सबसे प्रमुख पूजा में जो चीज इस्तेमाल होती है वह होता है खीरा. खीरे के अंदर से ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जाता है और भगवान को भोग भी लगाया जाता है.
इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि खीरा माता देवकी की कोख के रूप में माना जाता है. इससे भगवान श्री कृष्ण को जन्म कराने के बाद खीरे के ऊपर मौजूद छोटी डंठल को भी काटा जाता है.
यह डंठल बच्चे की नाल के रूप में मानी जाती है ताकि वह माता के गर्भ से बाहरी दुनिया में आ सके. इसलिए पूजा के दौरान ऐसे खीरे का प्रयोग करना चाहिए जिसमें ऊपर छोटी सी डंठल लगी हो और जनों के बाद उसे एक सिक्के से काट देना चाहिए.

वाराणसी: आज 30 अगस्त को पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. यह पर्व वैष्णव और शैव दोनों संप्रदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. हालांकि हर साल कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व दोनों संप्रदाय के लोग अलग-अलग दिन मनाते हैं लेकिन इस बार जन्माष्टमी दोनों संप्रदाय की तरफ से 30 अगस्त को ही मनाई जाएगी.

दरअसल, अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र यानी जिस काल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, वह 30 अगस्त की रात्रि में प्राप्त हो रही है. इस अद्भुत योग की वजह से श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त की मध्य रात्रि 12:00 बजे ही मनाया जाएगा. इसी समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जा सकेगा.

ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण अष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस विशेष दिन में व्रत रखने का विशेष विधान बताया गया है.

इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव धूमधाम के साथ पूरी दुनिया में मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी रोहिणी नक्षत्र में वृषभ राशि के चंद्रमा में हुआ था. भगवान श्री कृष्ण ही ऐसे विशेष देवता हैं जो 10 अवतारों में सर्व प्रमुख पूर्ण अवतार यानी 16 कलाओं से परिपूर्ण माने जाते हैं.

जानकारी देते पंडित ऋषि द्विवेदी
पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत आज 30 अगस्त को रखा जा रहा है और इसी दिन यह पर्व मनाया जा रहा है. अष्टमी तिथि 29 अगस्त की रात्रि 10:10 पर लग गई है जो आज 30 अगस्त की रात्रि 12:14 तक रहेगी. वहीं रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त को प्रातः 6:42 पर है जो 31 अगस्त को सुबह 9:00 बजकर 19 मिनट तक रहेगा.
अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र की वजह से बन रहा यह संयोग
देखा जाए तो इस बार श्री कृष्ण जन्माष्टमी अपने आप में बेहद खास होने वाली है. इसका बड़ा कारण यह है कि रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी का योग जयंती नामक अद्भुत संयोग के साथ आगे बढ़ेगा, जो यदा-कदा देखने को मिलता है.
इस बार ऐसा ही सुंदर योग रात्रि के समय अपने आप मिल रहा है.क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में ही माना गया है और इस बार रोहिणी नक्षत्र अष्टमी तिथि मध्य रात्रि में प्राप्त हो रही है. इसलिए श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12:00 बजे किया जाना सर्वोत्तम होगा.
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है की व्यापिनी रोहिणी मतालंबी वैष्णव 30 और 31 अगस्त दोनों दिन यह त्यौहार मना सकते हैं, लेकिन जो अद्भुत सहयोग प्राप्त हो रहा है वह 30 अगस्त को ही इस त्योहार को मनाए जाने के लिए उत्तम है.
खीरे से जन्म लेते हैं भगवान श्री कृष्णा
भगवान श्री कृष्ण का जन्म बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसमें तिथि और नक्षत्र का तो विशेष ध्यान रखा जाता है लेकिन सबसे प्रमुख पूजा में जो चीज इस्तेमाल होती है वह होता है खीरा. खीरे के अंदर से ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जाता है और भगवान को भोग भी लगाया जाता है.
इस बारे में पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि खीरा माता देवकी की कोख के रूप में माना जाता है. इससे भगवान श्री कृष्ण को जन्म कराने के बाद खीरे के ऊपर मौजूद छोटी डंठल को भी काटा जाता है.
यह डंठल बच्चे की नाल के रूप में मानी जाती है ताकि वह माता के गर्भ से बाहरी दुनिया में आ सके. इसलिए पूजा के दौरान ऐसे खीरे का प्रयोग करना चाहिए जिसमें ऊपर छोटी सी डंठल लगी हो और जनों के बाद उसे एक सिक्के से काट देना चाहिए.
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