वाराणसी: हिंदू धर्म में व्रत-त्योहारों का अलग महत्व होता है. इनमें से खास जीवित्पुत्रिका व्रत भी है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत और जिउतिया व्रत के नाम से भी जानते हैं. आश्विन मास कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को पुत्र के आरोग्य लाभ, दीर्घायु और सर्वविद कल्याण के लिए जीवित्पुत्रिका अर्थात जितिया व्रत का विधान धर्मशास्त्रकारों ने निर्दिष्ट किया है. प्राय: स्त्रियां इस व्रत को करती हैं. मान्यता है कि जितिया व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखती हैं. इस बार यह व्रत 29 सितंबर को रखा जा रहा है. जानिए पूजन का समय और पूजन विधि-
यह है पूजन विधि
ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को अंगीकार करते हुए आचार्यों ने प्रदोषकाल में जीमूतवाहन के पूजन का विधान स्पष्ट शब्दों में किया है. आज के दिन पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोषकाल में गाय के गोमय से अपने प्रांगण को उपलिप्त कर परिष्कृत करें और छोटा सा तालाब भी जमीन खोदकर बना लें. तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें, शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे अलंकृत करें और धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्य से पूजन करें. मिट्टी और गाय के गोबर से चिल्ली (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से भूषित कर दें. अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए. व्रत महात्म की कथा का श्रवण करना चाहिए. अपनी संतान की लंबी आयु और सुंदर स्वास्थ्य की कामना के लिए महिलाओं को विशेष कर इस व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए.
पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि इस व्रत का महत्व बहुत ज्यादा है. 2 दिनों तक चलने वाले इस व्रत में आज मुख्य पूजन पाठ संपन्न होगा, जबकि 30 सितंबर को माता बहनें पारण करेंगी. पंडित प्रसाद दीक्षित के मुताबिक अश्विन मास की अष्टमी तिथि को यह व्रत शुरू होता है, और नवमी तिथि को इस व्रत के पारण करने का विधान बताया गया है. इस व्रत में साफ सफाई और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है. यह व्रत पुत्र की दीर्घायु के साथ हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत है.
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जितिया व्रत का कथा
जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली.
अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.
किस दिन से व्रत का शुरुआत करें
- जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत नहाय खाए से होती है.
- 29 सितंबर 2021 दिन बुधबार को निर्जला व्रत रखा जाएगा.
- 30 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा. सूर्य उदय के बाद