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वाराणसीः पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जीवित्पुत्रिका व्रत

धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में माताओं ने अश्विनी कृष्ण अष्टमी के दिन निर्जला और निराहार रहकर जीवित्पुत्रिका का कठिन व्रत रखा. यह व्रत माताएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने के लिए रखती हैं.

पूजन करती माताएं.
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Published : Sep 22, 2019, 4:50 PM IST

वाराणसीः पुत्र के दीर्घायुष्य एवं कुशलता के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है. मान्यता यह भी है कि जिसे संतान की प्राप्ति नहीं होती वह भी इस व्रत को रखता है, तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है. व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता इसलिए यह निर्जला व्रत होता है. व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है.

व्रती महिलाओं ने काशी के घाटों ,कुंडों के किनारे विधि-विधान से भगवान जीमूत वाहन की कथा को सुना और पूजा की थाली या पात्र में रखकर सोने या चांदी की जूतियां धागा को महिलाओं ने धारण किया. व्रती महिलाओं ने प्रसाद रूपी धागे का बना हुआ जिउतिया अपने- अपने बच्चों के गले में पहनाया. इस पर्व पर ईश्वरगंगी तालाब,शंकुधारा पोखरा लक्ष्मी कुंड,डीरेका, सूरजकुंड, पर सभी महिलाओं ने पूजा अनुष्ठान संपन्न किया.

पूजन करती माताएं.
जिउतिया व्रत की पौराणिक कथाःमान्यता यह है कि गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन उदार और परोपकारी व्यक्ति थे. पिता के वन प्रस्थान के बाद उनको ही राजा बनाया गया , लेकिन उनका मन उसमें नहीं रमा. राजपाट भाइयों को देकर जीमूतवाहन अपने पिता के पास चले गए. उनकी मुलाकात वृद्धा से हुई. वह काफी डरी हुई थी. जीमूतवाहन में उसी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा, इस पर उसने बताया कि नागो ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वह एक नाग आहार के रूप में देंगे. आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है.

इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा. वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे. नियत समय पर जीमूतवाहन लाल कपड़े पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए. गरुण लाल कपड़े में लपेटे हुए जीव को अपने पंजे में दबोच कर साथ लेकर चले गए. वह पहाड़ पर रुके जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई, पक्षीराज गरुड़ ने साहस परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने को जीवन दान दे दिया और कहा कि वे किसी भी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. इसी तरह नागों की रक्षा की इस घटना के बाद से ही पुत्रों के लंबी आयु और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी.

पूनम ने बताया पुत्र की लंबी आयु और निरोग होने के लिए हम लोग जीवित्पुत्रिका का व्रत रखते हैं. यह व्रत निर्जला रहा जाता है. हम लोग तालाबों, कुंडो, घाटों के किनारे आकर पूरे विधि-विधान से जीमूतवाहन का पूजा करते हैं. कथा सुनते हैं हाथों में जीवतिया(घागा) लेकर यह कथा सुना जाता है. फिर उस को अपने बच्चों को पहनाया जाता है.

वाराणसीः पुत्र के दीर्घायुष्य एवं कुशलता के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है. मान्यता यह भी है कि जिसे संतान की प्राप्ति नहीं होती वह भी इस व्रत को रखता है, तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है. व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता इसलिए यह निर्जला व्रत होता है. व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है.

व्रती महिलाओं ने काशी के घाटों ,कुंडों के किनारे विधि-विधान से भगवान जीमूत वाहन की कथा को सुना और पूजा की थाली या पात्र में रखकर सोने या चांदी की जूतियां धागा को महिलाओं ने धारण किया. व्रती महिलाओं ने प्रसाद रूपी धागे का बना हुआ जिउतिया अपने- अपने बच्चों के गले में पहनाया. इस पर्व पर ईश्वरगंगी तालाब,शंकुधारा पोखरा लक्ष्मी कुंड,डीरेका, सूरजकुंड, पर सभी महिलाओं ने पूजा अनुष्ठान संपन्न किया.

पूजन करती माताएं.
जिउतिया व्रत की पौराणिक कथाःमान्यता यह है कि गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन उदार और परोपकारी व्यक्ति थे. पिता के वन प्रस्थान के बाद उनको ही राजा बनाया गया , लेकिन उनका मन उसमें नहीं रमा. राजपाट भाइयों को देकर जीमूतवाहन अपने पिता के पास चले गए. उनकी मुलाकात वृद्धा से हुई. वह काफी डरी हुई थी. जीमूतवाहन में उसी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा, इस पर उसने बताया कि नागो ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वह एक नाग आहार के रूप में देंगे. आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है.

इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा. वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे. नियत समय पर जीमूतवाहन लाल कपड़े पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए. गरुण लाल कपड़े में लपेटे हुए जीव को अपने पंजे में दबोच कर साथ लेकर चले गए. वह पहाड़ पर रुके जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई, पक्षीराज गरुड़ ने साहस परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने को जीवन दान दे दिया और कहा कि वे किसी भी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. इसी तरह नागों की रक्षा की इस घटना के बाद से ही पुत्रों के लंबी आयु और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी.

पूनम ने बताया पुत्र की लंबी आयु और निरोग होने के लिए हम लोग जीवित्पुत्रिका का व्रत रखते हैं. यह व्रत निर्जला रहा जाता है. हम लोग तालाबों, कुंडो, घाटों के किनारे आकर पूरे विधि-विधान से जीमूतवाहन का पूजा करते हैं. कथा सुनते हैं हाथों में जीवतिया(घागा) लेकर यह कथा सुना जाता है. फिर उस को अपने बच्चों को पहनाया जाता है.

Intro:धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में पुत्र की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए माताओं ने अश्विनी कृष्ण अष्टमी के दिन निर्जला और निराहार रहकर जीवित्पुत्रिका का कठिन व्रत रखा पूरे दिन निर्जला रह माताओं ने गंगा घाटों और स्वरों कुंड पर गाजे-बाजे के साथ पूजन सामग्री को लेकर विभिन्न समूहों में पहुंची।

गंगा घाट,कुंडो के किनारे विधि-विधान से भगवान जीमूत वाहन की कथा को सुना और पूजा की थाली या पात्र में रखकर सोने या चांदी की जूतियां को महिलाओं ने धारण किया इस दौरान जिन महिलाओं के जिनके पुत्र रहे उन्होंने इतनी संख्या में जूतियां को धारण किया व्रती महिलाओं ने प्रसाद रूपी धागे का बना हुआ जिउतिया अपने अपने बच्चों के गले में पहन आया और उन्होंने तिलक लगाया। इस पर्व पर ईश्वरगंगी तालाब,शंकुधारा पोखरा लक्ष्मी कुंड,डीरेका, सूरजकुंड, पर सही महिलाओं ने पूजा अनुष्ठान का कार्य संपन्न किया।


Body:यह है कथा

मान्यता यह है कि गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन उदार और परोपकारी व्यक्ति थे। पिता के वन प्रस्थान के बाद उनको ही राजा बनाया गया। लेकिन उनका मन उसमें नहीं रमा राजपाट भाइयों को देकर अपने पिता के पास चले गए। उनकी मुलाकात वृद्धा से हुई जो नागवंशी वृद्धा रो रही थी। वह काफी डरी हुई थी।जीमूतवाहन में उसी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा।

इस पर उसने बताया कि नागो ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वह एक नाक उनके आहार के रूप में देंगे।वृद्धा ने बताया कि उसका बेटा जिसका नाम शंखचूर्ण है।आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है। इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे।नियत समय पर जीमूतवाहन लाल कपड़े पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए। लाल कपड़े में लपेटे हुए जीवन को अपने पंजे में दबोच कर साथ लेकर चले गए उसी दौरान उन्होंने उनकी आंखों में आंसू निकलते देखा और कराते हुए सुना वह पहाड़ पर रुके जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई पक्षीराज गरुड़ ने साहस परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए उन्होंने को जीवन दान दे दिया और कहा कि वे किसी भी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। इसी तरह नागों की रक्षा की इस घटना के बाद से ही पुत्रों के लंबी आयु और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी।


Conclusion:पूनम ने बताया पुत्र की लंबी आयु और निरोग होने के लिए हम लोग जीवित्पुत्रिका का व्रत रखते हैं यह व्रत निर्जला कहा जाता है आज हम लोग तालाबों कुंडो घाटों के किनारे आकर पूरे विधि-विधान से जीमूतवाहन का पूजा करते हैं। कथा सुनते हैं हाथों में जीवतिया(घागा) कर यह कथा सुना जाता है फिर उस को अपने बच्चों को पहनाया जाता है। मान्यता यह भी है कि जिसे संतान विशेषकर पुत्र की प्राप्ति नहीं होती वह भी इस व्रत को रखता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।

बाईट :-- पूनम,श्रद्धालु

अशुतोष उपाध्याय

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