वाराणसीः पुत्र के दीर्घायुष्य एवं कुशलता के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को जितिया व्रत रखा जाता है. मान्यता यह भी है कि जिसे संतान की प्राप्ति नहीं होती वह भी इस व्रत को रखता है, तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है. व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता इसलिए यह निर्जला व्रत होता है. व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है.
व्रती महिलाओं ने काशी के घाटों ,कुंडों के किनारे विधि-विधान से भगवान जीमूत वाहन की कथा को सुना और पूजा की थाली या पात्र में रखकर सोने या चांदी की जूतियां धागा को महिलाओं ने धारण किया. व्रती महिलाओं ने प्रसाद रूपी धागे का बना हुआ जिउतिया अपने- अपने बच्चों के गले में पहनाया. इस पर्व पर ईश्वरगंगी तालाब,शंकुधारा पोखरा लक्ष्मी कुंड,डीरेका, सूरजकुंड, पर सभी महिलाओं ने पूजा अनुष्ठान संपन्न किया.
इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा. वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे. नियत समय पर जीमूतवाहन लाल कपड़े पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए. गरुण लाल कपड़े में लपेटे हुए जीव को अपने पंजे में दबोच कर साथ लेकर चले गए. वह पहाड़ पर रुके जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई, पक्षीराज गरुड़ ने साहस परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने को जीवन दान दे दिया और कहा कि वे किसी भी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. इसी तरह नागों की रक्षा की इस घटना के बाद से ही पुत्रों के लंबी आयु और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी.
पूनम ने बताया पुत्र की लंबी आयु और निरोग होने के लिए हम लोग जीवित्पुत्रिका का व्रत रखते हैं. यह व्रत निर्जला रहा जाता है. हम लोग तालाबों, कुंडो, घाटों के किनारे आकर पूरे विधि-विधान से जीमूतवाहन का पूजा करते हैं. कथा सुनते हैं हाथों में जीवतिया(घागा) लेकर यह कथा सुना जाता है. फिर उस को अपने बच्चों को पहनाया जाता है.