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Miyawaki Technic: जापानी तकनीक से बनारस बना हरा भरा, शहर की आबोहवा बेहतर होने की उम्मीद

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Published : Mar 10, 2023, 6:28 PM IST

वाराणसी में प्रकृति प्रेमी मियावाकी (Nature lover Miyawaki in Varanasi) से 4 कक्रीट का जंगल तैयार हो रहा है. इस तकनीक के सफल होने के बाद शहर के नमो घाट और रविदास घाट पर इस तकनीक का प्रयोग कर जंगल तैयार किया जाएगा.

डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह
डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह
डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह ने बताया.

वाराणसी: शहरी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा कंक्रीट के जंगल में अब हरियाली निकलने लगी है. जापान की तकनीक को अपनाकर शहर की आबोहवा को बेहतर करने का प्रयास सार्थक दिखाई दे रहा है. वाराणसी में लगभग 2 साल पहले जापान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और प्रकृति प्रेमी मियावाकी की तकनीक पर कम घनत्व और कम जगह पर ज्यादा पेड़ लगाकर कृतिम जंगल बनाए जाने की तकनीक कारगर साबित होती दिखाई दे रही है. वाराणसी में इस तकनीक का उपयोग 4 जगहों पर किया गया था. जिसमें काफी अच्छे नतीजे दिए हैं. वन विभाग इस प्लान को और आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है.

डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह का कहना है कि मियावाकी तकनीक कम जगह पर ज्यादा पेड़ और बड़े घनत्व में इसे तैयार करने की वह तकनीक है, जो शहरी क्षेत्र में ग्रीनरी बढ़ाकर इसकी आबोहवा को बेहतर करने का काम करती है. इससे ना सिर्फ उस क्षेत्र में बल्कि आसपास के लगभग 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में आबोहवा और डस्ट पार्टिकल को लेकर काफी सुधार दिखाई देता है. ऐसा ही कुछ प्रयास लगभग 2 साल पहले वाराणसी में 4 स्थानों पर किया गया था. इसमें प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव डोमरी, रिंग रोड Qj काशी हिंदू विश्वविद्यालय कैंपस समेत शहर के कुछ अन्य इलाकों में इस तकनीक के जरिये जंगल तैयार किया गया था.

ऑक्सीजन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ने से जीवों की संख्या बढ़ी: डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर ने बताया कि इस तकनीक में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 30 हजार पौधे रोपे जाते हैं. यह पौधे अलग-अलग साइज और प्रजाति के होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन सभी क्षेत्रों में जो पौधे लगाए गए थे. उनमें से महज कुछ परसेंट पौधे ही खराब हुए हैं. जबकि अधिकांश पौधे पनपना शुरू हो गए हैं. इसके सीथ ही ये पौधे इस समय काफी बड़ा रूप भी ले चुके हैं. इन पौधों के बड़े होने की वजह से ऑक्सीजन उत्सर्जन की मात्रा भी बड़ी है. जिससे इन क्षेत्रों के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में बेहतर वायु का स्तर होने के अलावा जीवों की तादाद में भी वृद्धि हुई है.


नमो घाट और रविदास घाट पर भी बनेगा कृतिम जंगलः मियावाकी तकनीक से तैयार जंगल की वजह से चिड़ियों और अन्य जीव की संख्या में वृद्धि होने की वजह से यहां पर जिंदगी भी अब काफी बेहतर तरीके से महसूस की जा सकती है. डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर ने बताया कि वाराणसी में मियावाकी तकनीक के प्रयोग से बनाए गए कृतिम जंगल काफी कारगर साबित हुए हैं. अब इनका इस्तेमाल शहर के कुछ अन्य इलाकों में भी करने की तैयारी की जा रही है. जिनमें वाराणसी का नमो घाट और रविदास घाट भी शामिल किया जा रहा है. इन क्षेत्रों में भी घनत्व वाले जंगल डेवलप करने के निर्देश मिलने के बाद काम शुरू हो गया है. घाट किनारे घूमने और आने वालों के लिए भी एक बेहतर माहौल इस जापानी मियावाकी तकनीक के वजह से डेवलप किया जाएगा.



यह भी पढ़ें- Varanasi में बन रहा यूपी का पहला वेटरिनरी मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, मिलेंगी ये सुविधाएं

डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह ने बताया.

वाराणसी: शहरी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा कंक्रीट के जंगल में अब हरियाली निकलने लगी है. जापान की तकनीक को अपनाकर शहर की आबोहवा को बेहतर करने का प्रयास सार्थक दिखाई दे रहा है. वाराणसी में लगभग 2 साल पहले जापान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और प्रकृति प्रेमी मियावाकी की तकनीक पर कम घनत्व और कम जगह पर ज्यादा पेड़ लगाकर कृतिम जंगल बनाए जाने की तकनीक कारगर साबित होती दिखाई दे रही है. वाराणसी में इस तकनीक का उपयोग 4 जगहों पर किया गया था. जिसमें काफी अच्छे नतीजे दिए हैं. वन विभाग इस प्लान को और आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है.

डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर संजीव कुमार सिंह का कहना है कि मियावाकी तकनीक कम जगह पर ज्यादा पेड़ और बड़े घनत्व में इसे तैयार करने की वह तकनीक है, जो शहरी क्षेत्र में ग्रीनरी बढ़ाकर इसकी आबोहवा को बेहतर करने का काम करती है. इससे ना सिर्फ उस क्षेत्र में बल्कि आसपास के लगभग 5 से 7 किलोमीटर के दायरे में आबोहवा और डस्ट पार्टिकल को लेकर काफी सुधार दिखाई देता है. ऐसा ही कुछ प्रयास लगभग 2 साल पहले वाराणसी में 4 स्थानों पर किया गया था. इसमें प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव डोमरी, रिंग रोड Qj काशी हिंदू विश्वविद्यालय कैंपस समेत शहर के कुछ अन्य इलाकों में इस तकनीक के जरिये जंगल तैयार किया गया था.

ऑक्सीजन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ने से जीवों की संख्या बढ़ी: डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर ने बताया कि इस तकनीक में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 30 हजार पौधे रोपे जाते हैं. यह पौधे अलग-अलग साइज और प्रजाति के होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन सभी क्षेत्रों में जो पौधे लगाए गए थे. उनमें से महज कुछ परसेंट पौधे ही खराब हुए हैं. जबकि अधिकांश पौधे पनपना शुरू हो गए हैं. इसके सीथ ही ये पौधे इस समय काफी बड़ा रूप भी ले चुके हैं. इन पौधों के बड़े होने की वजह से ऑक्सीजन उत्सर्जन की मात्रा भी बड़ी है. जिससे इन क्षेत्रों के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में बेहतर वायु का स्तर होने के अलावा जीवों की तादाद में भी वृद्धि हुई है.


नमो घाट और रविदास घाट पर भी बनेगा कृतिम जंगलः मियावाकी तकनीक से तैयार जंगल की वजह से चिड़ियों और अन्य जीव की संख्या में वृद्धि होने की वजह से यहां पर जिंदगी भी अब काफी बेहतर तरीके से महसूस की जा सकती है. डिस्टिक फॉरेस्ट ऑफिसर ने बताया कि वाराणसी में मियावाकी तकनीक के प्रयोग से बनाए गए कृतिम जंगल काफी कारगर साबित हुए हैं. अब इनका इस्तेमाल शहर के कुछ अन्य इलाकों में भी करने की तैयारी की जा रही है. जिनमें वाराणसी का नमो घाट और रविदास घाट भी शामिल किया जा रहा है. इन क्षेत्रों में भी घनत्व वाले जंगल डेवलप करने के निर्देश मिलने के बाद काम शुरू हो गया है. घाट किनारे घूमने और आने वालों के लिए भी एक बेहतर माहौल इस जापानी मियावाकी तकनीक के वजह से डेवलप किया जाएगा.



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