वाराणसीः उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने अंतरराज्यीय स्तर पर कछुओं की तस्करी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया है. इस दौरान उन्होंने 4 तस्करों को भी गिरफ्तार किया है. इनके कब्जे से 126 कछुए बरामद किये गये हैं. इन कछुओं का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाओं को बनाने में किया जाता है. गिरफ्तार अभियुक्तों के खिलाफ वन प्रभाग वाराणसी में वन अपराध वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 पंजीकृत कराया गया है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में विगत काफी दिनों से संकटग्रस्त संरक्षित वन्य जीओं और कछुओं की तस्करी करने वाले गैंग के सक्रिय होने की सूचनाएं प्राप्त होने पर एसटीएफ की विभिन्न टीमों और फील्ड इकाइयों को दिशा निर्देश के आधार पर वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के माध्यम से सूचना प्राप्त हुई कि कछुओं का अवैध व्यापार करने वाला गिरोह वाराणसी और आस-पास के जिलों में सक्रिय है.
पुलिस को जानकारी मिली कि कछुओं की तस्करी करने वाले तस्कर भारी मात्रा में कछुए लेकर वाराणसी कैण्ट रेलवे स्टेशन के पास मौजूद हैं. इसके साथ ही जौनपुर का एक और तस्कर असलम खां उर्फ जुम्मन भी इनको कुछ कछुए देने के लिए कैण्ट रेलवे स्टेशन के पास आने वाला है.
इसी जानकारी पर निरीक्षक अरविन्द सिंह के नेतृत्व में एसटीएफ टीम और स्थानीय वन विभाग की टीम ने संयुक्त रुप से कार्रवाई करते हुए 4 तस्करों को दबोच लिया. जिनमें राजू पुत्र श्यामलाल निवासी 355 फेज 2 बापूधाम कॉलोनी सेक्टर 26, चण्डीगढ़, गोपाल सरकार पुत्र आनन्द सरकार, निवासी शक्तिगढ़, वर्धमान (प0बंगाल), बाबूलाल पुत्र अनिल, निवास बापूधाम कॉलोनी सेक्टर 26 चण्डीगढ़, असलम खॉं उर्फ जुम्मन पुत्र नब्बू खां, निवासी मुस्तफाबाद थाना मछलीशहर जनपद जौनपुर को गिरफ्तार कर लिया गया. इनके पास से 126 कछुए, 5 मोबाइल फोन, 3,940 रुपये नगद बरामद हुआ.
इसे भी पढ़ें- डीआरआई ने रेलवे स्टेशन पर पकड़ा 35 लाख का सोना, एक तस्कर गिरफ्तार
भारत में कछुओं की पाई जाने वाली 29 प्रजातियों में 15 प्रजातियां उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं. इनमें 11 प्रजातियों का अवैध व्यापार किया जाता है, यह अवैध व्यापार जीवित कछुए के मांस और पालने (AS PET) अथवा कछुएं की कैलिपी (झिल्ली) को सुखा कर शक्तिवर्धक दवा के लिए किया जाता है. कछुओं को मुलायम कवच ( SOFT SHELL ) और ( HARD SHELL ) कठोर कवच के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. उत्तर प्रदेश के यमुना, चम्बल, गंगा, गोमती, घाघरा, गण्डक जैसी नदियों और उनकी सहायक नदियों, तालाबों में ये दोनोें प्रकार के कछुए बहुतायत में पाए जाते हैं.