वाराणसी: 2022 को लेकर चुनावी माहौल बनने लगा है और इस चुनावी माहौल को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम वाराणसी की अडियों पर पहुंच रही है. अभी कुछ दिन पहले आपको महमूरगंज स्थित बसंत टी स्टॉल पर हुए जमावड़े का मजा दिलवाया और अब आज हम आपको लेकर चल रहे हैं, उस अड़ी पर जिसके बिना शायद बनारसीपन अधूरा है. जी हां! हम बात कर रहे हैं, अस्सी स्थित पप्पू की चाय की अड़ी की. सुबह के वक्त जब हम यहां पहुंचे, तो माहौल कुछ बदला हुआ नजर आया. चाय की चुस्की से पहले कचौड़ी का मजा लेने की तैयारी चल रही थी. कैमरा देखकर यहां पर बैठे बुद्धिजीवियों ने भी जैसे हमारा मूड भांप लिया और फिर क्या था, होने लगी कचौड़ी और चाय संग राजनीतिक चर्चा. आइए बनारस की मशहूर अड़ी का आप भी आनंद लीजिये.
बनारस की मशहूर पप्पू की चाय की दुकान पर बैठ की कोई नई बात नहीं है. यह वही जगह है, जहां मशहूर साहित्यकार उपन्यासकार काशीनाथ सिंह, बच्चन सिंह जैसे तमाम बड़े नाम अक्सर मिल जाया करते थे. इसी अड़ी पर फिल्म मोहल्ला अस्सी की भूमिका तैयार हुई और काशी का अस्सी रुपहले पर्दे पर दिखा. आज भी यह जगह बुद्धिजीवियों का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड प्रोफेसर हो या फिर वर्तमान में पठन-पाठन से जुड़े बड़े नाम बैंकिंग सेक्टर हो या फिर नेता हर कोई आपको इस दुकान पर जरूर मिलेगा और यह सैकड़ों साल पुरानी दुकान आज भी अपने राजनैतिक चर्चा के लिए बनारस में सबसे मशहूर है, तो हम भी पहुंच गए इस अड़ी पर.
लोगों ने खुलकर कहा कि छोटी पार्टियां अपने चक्कर में हैं और बड़ी पार्टियां अपने चक्कर में, सरकार किसी एक की नहीं बनने वाली. सबको मिलजुल कर काम करना होगा, लेकिन जब इन सबके बीच विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर चर्चा शुरू हुई और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली बीजेपी पर कॉरीडोर में मंदिर तोड़े जाने को लेकर सवाल उठे तो हर कोई अपने अपने तरीके से सामने आया. किसी ने कहा विकास के नाम पर विध्वंस तो होना ही है और किसी ने कहा मंदिर टूटे ही नहीं हैं. हालांकि हकीकत क्या है, यह तो कॉरिडोर तैयार होने के बाद साफ हो पाएगा कि तोड़े गए मंदिर फिर से स्थापित होते हैं या नहीं. लेकिन एक बात तो साफ है पप्पू की चाय की अड़ी पर आज भी वही राजनीतिक रंग हमें देखने को मिला, जिसके लिए यह दुकान पूरी दुनिया में जानी जाती है.
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