वाराणसी : नगर निगम के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रच दिया. बीजेपी के मेयर पद के प्रत्याशी अशोक तिवारी ने 1,33,137 वोटों से जीत हासिल करके 28 साल पुराने बीजेपी के उस रुतबे को कायम रखा जिसने बनारस में नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को मजबूत बनाया था. भाजपा ने बनारस के 100 वार्ड में से 63 वार्डों में जीत हासिल की है, जबकि समाजवादी पार्टी तो निर्दल प्रत्याशियों के आंकड़े से भी पीछे रह गई. सपा ने पिछले प्रदर्शन से भी खराब प्रदर्शन करते हुए महज 13 सीटों पर ही जीत दर्ज की है, जबकि 15 निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली है. सबसे बड़ी बात यह है कि इन 15 प्रत्याशियों में से भी लगभग आधे प्रत्याशी ऐसे हैं, जो बीजेपी और सपा से टिकट न मिलने की वजह से वह निर्दल ही चुनाव मैदान में उतर गए थे. इस बार के निकाय चुनाव में बागियों ने पार्टी को चोट पहुंचाने के साथ ही आंकड़ों में अपने आप को मजबूत भी कर लिया. हालांकि यह तो समय बताएगा कि यह निर्दल आगे भी निर्दल ही रहते हैं या फिर बीजेपी या अन्य किसी पार्टी का दामन थाम लेंगे.
दरअसल, वाराणसी नगर निगम के सीमा क्षेत्र में विस्तार के बाद 90 से 100 वार्ड होने के उपरांत यह बड़ा सवाल था कि आखिर परिसीमन बदलने के बाद क्या होगा? क्योंकि बनारस को बीजेपी के गढ़ के रूप में जाना जाता है. समाजवादी पार्टी लगातार इसमें सेंधमारी की कोशिश कर रही थी लेकिन टिकट बंटवारे के दौरान प्रत्याशियों की नाराजगी दोनों ही पार्टियों को देखनी पड़ी. बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के टिकट काटे और टिकट बदले भी. भारतीय जनता पार्टी में लगभग 10 और समाजवादी पार्टी के 40 नेता ऐसे थे जो टिकट न मिलने की वजह से बागी हो गए. उन्होंने निर्दल ही पर्चा भरकर चुनावी ताल ठोंक दी. वहीं बीजेपी ने भी कुछ ऐसा ही किया जिसके बाद दोनों ही पार्टियों के काफी बागियों ने चुनावी मैदान में उतरकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ ताल ठोंक दी. भारतीय जनता पार्टी ने बनारस में लगभग 36 प्रत्याशियों को बगावत करने के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया.
इन सब के बाद बीजेपी का प्रदर्शन हर बार की अपेक्षा काफी बेहतर दिखाई दिया. 100 में से लगभग 46 का आंकड़ा बीजेपी को सदन में बहुमत हासिल करने के लिए चाहिए था लेकिन बीजेपी ने 63 का आंकड़ा पार कर इसे हासिल कर लिया. वहीं अपने ही बागियों की वजह से बीजेपी कहीं ना कहीं पीछे रह गई. अगर यह बागी बीजेपी के खिलाफ मैदान में न होते तो शायद जीत का अंतर और बढ़ सकता था. वहीं समाजवादी पार्टी के बागी प्रत्याशियों की वजह से भी सपा को सिर्फ 13 सीट पर ही समझौता करना पड़ा. जबकि निर्दल प्रत्याशी के तौर पर 15 कैंडिडेट ने पार्षद पद पर जीत हासिल की है.
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