वाराणसी: भारत देश में हर त्योहार के अलग रंग हैं और सभी विधिवत मनाए जाते हैं. शरद पूर्णिमा का त्योहार अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. सनातन धर्म के अनुसार, शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है. ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से आराधना करने से भक्तों पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा होती है.
क्या है शरद पूर्णिमा व्रत
पौराणिक मान्यता है कि एक साहूकार की 2 बेटियां थीं. दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. एक बार बड़ी बेटी ने पूर्णिमा का विधिवत व्रत पूजन किया, लेकिन छोटी ने व्रत छोड़ दिया. इसके बाद छोटी लड़की के बच्चों की जन्म लेते ही मृत्यु हो जाती थी. इस दौरान बड़ी बेटी ने छोटी बेटी के बालक को स्पर्श कर जीवित कर दिया. तब से यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लगा.
जानें पूर्णिमा व्रत से क्या मिलता है फल
इस बाबत श्रद्धालुओं का कहना है कि इस व्रत के करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है. सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं क्योंकि इस दिन रात को इंद्र भगवान के साथ माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं. इस दौरान जो मनुष्य उनका ध्यान करता है, जगा रहता है, उसे माता लक्ष्मी सारे दुखों से मुक्त कर देती हैं.
चंद्रमा की रोशनी में चांदी के बर्तन में रखी जाती है खीर
कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की खीर चांदी के बर्तन में रखना ज्यादा उत्तम रहता है. अगर चांदी का बर्तन न हो तो उसे किसी भी पात्र में रख सकते हैं. धार्मिक मान्यता है कि यह खीर गाय के दूध से बनानी चाहिए क्योंकि उसमें कई औषधीय गुण होते हैं. ऐसा कहा जाता है कि बनाई गई खीर को मध्य रात्रि में कम से कम 4 घंटे तक रखना चाहिए. इससे उसमें औषधि गुण आ जाएंगे और उसमें कीड़े न पड़ें इसके लिए उसे किसी वस्त्र से ढंक देना चाहिए. अगले दिन भगवान लक्ष्मीनारायण को भोग लगाने के बाद खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लेना चाहिए.