ETV Bharat / state

BHU के पत्रकारिता विभाग के हेड नौ साल बाद छेड़खानी के मामले में कोर्ट से बरी - बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की न्यूज

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के हेड प्रो. शिशिर बसु को छेड़खानी और एससी-एसटी एक्ट सहित अन्य आरोपों में दर्ज मुकदमे में वाराणसी की कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया है.

Etv bharat
BHU के पत्रकारिता विभाग के हेड नौ साल बाद छेड़खानी के मामले में कोर्ट से बरी
author img

By

Published : Nov 16, 2022, 5:12 PM IST

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के हेड प्रो. शिशिर बसु को छेड़खानी और एससी-एसटी एक्ट सहित अन्य आरोपों में दर्ज मुकदमे में वाराणसी की कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया है. प्रो. बसु के खिलाफ यह मुकदमा उन्हीं की विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने दर्ज कराया था. अदालत में प्रो. बसु की ओर से सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन एडवोकेट विवेक शंकर तिवारी ने पक्ष रखा. विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) संजीव कुमार सिन्हा की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रो. शिशिर बसु को दोषमुक्त करते हुए उनका जमानत पत्र और निजी बंधपत्र निरस्त किए जाते हैं.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने 16 मार्च 2013 को चीफ प्रॉक्टर को एक शिकायती पत्र दिया था. उनका आरोप था कि विभाग के 6 छात्र-छात्राएं उन्हें जातिसूचक गाली देते हैं. इसके साथ ही उनकी अश्लील फोटो निकालकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं. चारों छात्रों पर तत्काल कार्रवाई की जाए. यह सब करने के लिए छात्रों को प्रो. शिशिर बसु उत्तेजित करते हैं. प्रो. शिशिर बसु के साथ ही सभी पर तत्काल कानूनी कार्रवाई नहीं की गई तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगी. यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने असिस्टेंट प्रोफेसर के शिकायती पत्र को लंका थाने फॉरवर्ड कर दिया था. उसके आधार पर लंका थाने में प्रो. बसु के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ. पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट पर कोर्ट ने 19 जून 2013 को संज्ञान लिया.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता का कहना है कि अभियुक्त उसे वर्ष 2003 से ही प्रताड़ित कर रहा था, लेकिन, उन्होंने 10 वर्ष तक थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई. इससे पीड़िता के आरोप पर संशय उत्पन्न होता है. गठित की गई जांच कमेटियों में भी सेक्शुअल हरासमेंट जैसी कोई बात सामने नहीं आई है. अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों को देखने पर यह प्रतीत हुआ कि पीड़िता की शिकायत बीएचयू के अधिकारियों से शैक्षणिक विवाद से संबंधित है. पीड़िता की कार्यक्षमता के बारे में यूनिवर्सिटी में शिकायतें दर्ज हैं और अन्य फैकल्टी मेंबर्स के खिलाफ भी उनके द्वारा दोषारोपण किया गया है.

मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप के तहत अपराध, दिन, समय, घटना और घटना किए जाने के तरीके को साबित करने में अभियोजन पूरी तरह से असफल रहा है. इस वजह से अभियुक्त प्रो. शिशिर बसु को सभी आरोपों से दोषमुक्त किया जाता है.

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के हेड प्रो. शिशिर बसु को छेड़खानी और एससी-एसटी एक्ट सहित अन्य आरोपों में दर्ज मुकदमे में वाराणसी की कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया है. प्रो. बसु के खिलाफ यह मुकदमा उन्हीं की विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने दर्ज कराया था. अदालत में प्रो. बसु की ओर से सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन एडवोकेट विवेक शंकर तिवारी ने पक्ष रखा. विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) संजीव कुमार सिन्हा की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रो. शिशिर बसु को दोषमुक्त करते हुए उनका जमानत पत्र और निजी बंधपत्र निरस्त किए जाते हैं.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने 16 मार्च 2013 को चीफ प्रॉक्टर को एक शिकायती पत्र दिया था. उनका आरोप था कि विभाग के 6 छात्र-छात्राएं उन्हें जातिसूचक गाली देते हैं. इसके साथ ही उनकी अश्लील फोटो निकालकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं. चारों छात्रों पर तत्काल कार्रवाई की जाए. यह सब करने के लिए छात्रों को प्रो. शिशिर बसु उत्तेजित करते हैं. प्रो. शिशिर बसु के साथ ही सभी पर तत्काल कानूनी कार्रवाई नहीं की गई तो वह आमरण अनशन शुरू करेंगी. यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने असिस्टेंट प्रोफेसर के शिकायती पत्र को लंका थाने फॉरवर्ड कर दिया था. उसके आधार पर लंका थाने में प्रो. बसु के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ. पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट पर कोर्ट ने 19 जून 2013 को संज्ञान लिया.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता का कहना है कि अभियुक्त उसे वर्ष 2003 से ही प्रताड़ित कर रहा था, लेकिन, उन्होंने 10 वर्ष तक थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई. इससे पीड़िता के आरोप पर संशय उत्पन्न होता है. गठित की गई जांच कमेटियों में भी सेक्शुअल हरासमेंट जैसी कोई बात सामने नहीं आई है. अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों को देखने पर यह प्रतीत हुआ कि पीड़िता की शिकायत बीएचयू के अधिकारियों से शैक्षणिक विवाद से संबंधित है. पीड़िता की कार्यक्षमता के बारे में यूनिवर्सिटी में शिकायतें दर्ज हैं और अन्य फैकल्टी मेंबर्स के खिलाफ भी उनके द्वारा दोषारोपण किया गया है.

मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप के तहत अपराध, दिन, समय, घटना और घटना किए जाने के तरीके को साबित करने में अभियोजन पूरी तरह से असफल रहा है. इस वजह से अभियुक्त प्रो. शिशिर बसु को सभी आरोपों से दोषमुक्त किया जाता है.

ये भी पढ़ेंः श्रीकृष्ण जन्मभूमि प्रकरण की 2 याचिकाओं पर हुई सुनवाई, अब इन तारीखों पर होगी बहस

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.