वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले को लेकर सुनवाई गुरुवार को पूरी हो चुकी है और अब हर किसी को इंतजार 12 सितंबर का है. 12 सितंबर इसलिए क्योंकि इस दिन कोर्ट इस मामले की पोषणीयता यानी मुकदमा चले या नहीं इसे लेकर अपना फैसला सुनाएगा. कोर्ट के इस फैसले के पहले जिस तरह के अंतिम के 4 दिनों में मुस्लिम पक्ष में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें पेश की. उसने इस पूरे मामले में कई बदलाव लाते हुए पिछले दिनों हुई बहस से अलग चीजें प्रस्तुत करने का काम किया है. एक तरफ जहां हिंदू पक्ष लगातार इस पूरे मामले में इस बात को लेकर चल रहा है कि मुस्लिम पक्ष के पास ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा कोई कागजात नहीं है और प्रस्तुत किए जा रहे कागजात पूरी तरह से फर्जी और गलत है तो वहीं मुस्लिम पक्ष ने खसरा खतौनी से लेकर ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन की तमाम चीजों को कोर्ट के सामने रखते हुए इसे 1669 नहीं बल्कि उससे भी पुरानी मस्जिद बताया है. जिसमें उनके द्वारा कई साक्ष्य भी दिए गए हैं. फिलहाल मामले की पोषणीय को लेकर कोर्ट जो भी फैसला सुनाए, लेकिन अगस्त 2021 में फाइल किए गए इस मुकदमे की असली सुनवाई 12 सितंबर से ही शुरू होगी.
ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में नियमित दर्शन को लेकर दायर की गई राखी सिंह और उनके बाद 4 अन्य महिलाओं की याचिका पर कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई शुरू की थी. सीनियर जे सिविल डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में फाइल किए गए मुकदमे में तत्कालीन न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने वकील कमीशन नियुक्त करते हुए कमीशन के कार्यवाही को पूर्ण करने की इजाजत दी थी. जिसमें ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी पूरी होने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया था. मामले में वकील कमिश्नर की कार्यवाही के दौरान मस्जिद के अंदर वजू खाने में एक काला पत्थर भी मिला, जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग तो मुस्लिम पक्ष द्वारा बताता रहा है इस पूरे स्थान को सील करके यहां पर सुरक्षा व्यवस्था भी बढ़ाई गई है और इस स्थान पर नमाजियों के जाने पर रोक भी लगाई गई है.
इस प्रकरण में मुस्लिम पक्ष लगातार यह अपील करता रहा कि प्रकरण सुनवाई योग्य नहीं है. मुस्लिम पक्ष का यह दावा रहा कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और वक्फ की संपत्ति होने की वजह से संबंधित मुकदमा सिविल न्यायालय में चल ही नहीं सकता. इसके लिए बकायदा वक्फ न्यायालय में जाना होगा. फिलहाल 2021 अगस्त के महीने में शुरू हुए इस मुकदमे की सुनवाई अब आगे बढ़ेगी या मुकदमा यहीं पर खत्म हो जाएगा. यह तो आने वाला 12 सितंबर का दिन बताएगा, लेकिन इस ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन मामले में दाखिल इस मुकदमे ने पूरे देश की निगाहें अपने ऊपर लगा रखी है. हालात ये हैं कि सिर्फ नियमित दर्शन के नाम पर शुरू हुआ यह मामला पूरी तरह से ज्ञानवापी और आदि विश्वेश्वर के पुराने मामले से जुड़ गया. जिसके कारण देश का सबसे हॉट टॉक मामला अब तक बना हुआ है.
दरअसल, ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन पर 1993 में रोक लगा दी गई थी. 1992 अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद जब मुलायम सिंह सरकार में ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा बढ़ाई जा रही थी, तो मस्जिद के चारों और लोहे की बैरिकेडिंग करने के बाद श्रृंगार गौरी मंदिर के सामने पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती की गई और बाद में पैरामिलिट्री फोर्स का कैंप यहां लगने के कारण यहां भक्तों का नियमित दर्शन बंद कर दिया गया. जिसके बाद काफी जद्दोजहद हुई और नवरात्रि 1 दिन यहां प्रदर्शन की अनुमति मिली, लेकिन कुछ गिने-चुने लोगों को हालांकि बाद में नवरात्र के 1 दिन सभी भक्तों को दर्शन की अनुमति मिली, लेकिन अब तक यहां नियमित दर्शन नहीं होता है. जिसकी वजह से राखी सिंह समेत 4 अन्य महिलाओं ने नियमित दर्शन की मांग को लेकर याचिका दायर की थी.
मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील शमीम अहमद का कहना है कि कोर्ट के सामने अंतिम के 4 दिनों में जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं. उसमें 1944 में प्रदेश शासन की तरफ से जारी बजट में वक्फ संख्या 100 में से ज्ञानवापी को आलमगीर मस्जिद के नाम से जाना जाता है. वहीं, नाम दस्तावेज में दर्ज भी किया गया है. राजस्व अभिलेख में 1291 फसली के खसरा में भी इसे आलमगीर मस्जिद ही बताया गया है. जबकि पंचगंगा घाट स्थित धरहरा मस्जिद जिसे आलमगीर मस्जिद बताया जा रहा है, वह वक्फ संख्या 211 में दर्ज है. ज्ञानवापी मस्जिद चौक वार्ड में और धरहरा मस्जिद कोतवाली वार्ड में स्थित है.
वहीं, पूरे मामले में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें पेश करते हुए इसे बड़ा फर्जीवाड़ा बताया है हिंदू पक्ष की वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन समेत अन्य का दावा है कि जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं वह ज्ञानवापी मस्जिद के है ही नहीं. मुस्लिम पक्ष बार-बार यह बातें कह रहा है कि औरंगजेब ने इस मस्जिद को अधिग्रहित किया था और औरंगजेब ने ही इसको अपने अधीन रखा था तो क्या औरंगजेब भारत आए तो क्या मस्जिद की जमीन लेकर आए थे. हिंदू पक्ष के वकीलों का कहना है कि फर्जीवाड़े की वजह से इसमें क्रिमिनल ऑफेंस भी बनता है और आगे की जरूरत पड़ी तो हम कोर्ट में इसके लिए हम क्रिमिनल मुकदमा भी लड़ेंगे, क्योंकि यह बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा है, क्योंकि ज्ञानवापी मस्जिद थे जुड़ा अधिग्रहण और अन्य का कोई कागज इनके पास है ही नहीं, इसलिए दूसरी मस्जिद का कागज प्रस्तुत करके यह मामले को डाइवर्ट करना चाह रहे हैं.
दरअसल, मुस्लिम पक्ष लगातार पुराने दस्तावेज और आदेशों के हवाले से इस मुकदमे में अपनी पैरवी कर रहा है और मुकदमे को सुनवाई योग्य नहीं मान रहा है. मुस्लिम पक्ष का यह भी कहना है कि वक्फ की संपत्ति होने की वजह से किसी भी तरह के विवाद का निपटारा वक्फ कोर्ट में हो सकता है न कि सिविल कोर्ट में, लेकिन हिंदू पक्ष क्या करना है यह तभी लागू होगा जब कोई मुकदमा मुस्लिम वर्सेस मुस्लिम के द्वारा लड़ा जाए. यहां पर मामला मुस्लिम वर्सेस हिंदू का है. इसलिए यह मुकदमा सिविल कोर्ट में ही चलने योग्य है.
अपनी पूरी पैरवी में मुस्लिम पक्ष ने 1936 के दीन मोहम्मद केस का भी हवाला दिया है.दीन मोहम्मद के के मुताबिक आराजी संख्या 9130 में मस्जिद का जिक्र किया गया है और तत्कालीन कमिश्नर ने इस जमीन की पैमाइश करवाने के बाद इस पूरे स्थान को मस्जिद परिसर के रूप में डिक्लेअर भी किया है. स्थानीय अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक में इसे स्वीकार किया गया है. इसके अलावा 1991 में पूजा के अधिकार कानून के तहत 1947 से पहले तक किसी स्थान के मंदिर या मस्जिद होने की स्थिति में वहां यथास्थिति रखने के नियम के मुताबिक ज्ञानवापी परिसर को मस्जिद ही डिक्लेअर किया जा चुका है. उसके बाद इस मुकदमे का कोई मतलब ही नहीं बनता.
वहीं, 4 दिनों तक अंतिम बहस में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने भी अदालत में अपनी जो दलीलें रखी हैं. उसमें उन्होंने कहा है कि 1944 की वक्फ संपत्ति के जिस गजट की बात है मुस्लिम पक्ष कर रहा है वह आलमगीर मस्जिद है. यह पंचगंगा घाट पर स्थित है. और वक्फ बोर्ड में जिस संपत्ति का जिक्र है उसके आगे आराजी संख्या लिखी ही नहीं गई है. 1291 फसली के खसरा में भी आलमगीर मस्जिद ही दर्ज है. ज्ञानवापी का जिक्र नहीं किया है. दीन मोहम्मद के मुकदमे में भी इसे स्वीकार ही नहीं किया गया है. मस्जिद की ओर से दाखिल हर दस्तावेज में ज्ञानवापी लिखा गया है और अचानक से मुस्लिम पर गलत दस्तावेज प्रस्तुत करके कोर्ट को गुमराह करके बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. उन्होंने अदालत में 1979 के मुस्लिम राधा कृष्ण मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र भी किया है.
हरिशंकर जैन का कहना है कि जिस वक्फ कानून की बात कहकर मुकदमे को सिविल कोर्ट में न चलने की चीजें बता रहे हैं. वह इस मुकदमे में लागू ही नहीं होता, क्योंकि इसमें एक पक्ष हिंदू है दूसरा मुस्लिम है. फिलहाल अंतिम के 4 दिनों तक चली जबरदस्त बहस और दोनों पक्षों के तरफ से दी गई दलीलों के बाद अब 12 सितंबर को इस पूरे मामले में यह स्पष्ट होगा कि यह मुकदमा वाराणसी के सिविल कोर्ट में चलेगा या नहीं, यदि मुकदमा स्वीकार होता है तो पूजा के अधिकार के तहत हिंदू पक्ष के अलग-अलग हिंदूवादी संगठनों की तरफ से यहां मिले तथाकथित शिवलिंग की पूजा के अधिकार को लेकर दायर किए गए मुकदमे की सुनवाई भी शुरू होगी. इसके अलावा वकील कमीशन के दौरान की गई वीडियोग्राफी की रिपोर्ट मीडिया में लीक होने के मामले को लेकर सीबीआई जांच की मांग भी वादी राखी सिंह की तरफ से की गई है. जिस पर भी सुनवाई होगी, यानी कुल मिलाकर मुकदमे के शिकार होने के बाद इस प्रकरण की असली सुनवाई शुरू होगी.
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