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व्याकरण के प्रकांड विद्वान पं. मनुदेव भट्टाचार्य का निधन - वाराणसी में संस्कृत प्रकांड विद्वान पंडित मनुदेव भट्टाचार्य

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में व्याकरण के प्रकांड विद्वान पंडित मनुदेव भट्टाचार्य का हार्ट अटैक से निधन हो गया. बीते 28 अक्टूबर से उनका इलाज शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा था.

पंडित मनुदेव भट्टाचार्य का हुआ निधन.
पंडित मनुदेव भट्टाचार्य का हुआ निधन.
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Published : Nov 7, 2020, 4:23 AM IST

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण के प्रकांड विद्वान पंडित मनुदेव भट्टाचार्य का शुक्रवार को हार्ट अटैक से निधन हो गया. वह 74 वर्ष के थे. वे कुछ दिनों से अस्वस्थ्य चल रहे थे. बीते 28 अक्टूबर से उनका इलाज शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा था.


विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ला ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि काशी की विद्युत परंपरा की एक और कड़ी आज हमसे दूर हो गई. यह संस्कृत व्याकरण क्षेत्र की अपूर्व क्षति है, जिसकी कभी भरपाई नहीं की जा सकती है. आचार्य मनुदेव भट्टाचार्य को 16 फरवरी 2019 को जारी सूची में राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सम्मानित करने हेतू नामित किया गया था. हालांकि कोविड-19 के कारण सम्मान समारोह नहीं हुआ. परंतु इसकी धनराशि उन्हें प्रतिमाह मिल रही थी.

संस्कृत से था गहरा लगाव
प्रो. भट्टाचार्य को शुरू से ही संस्कृत से बेहद लगाव था. संस्कृत पढ़ने के लिए 1957 में वह काशी आए थे. आचार्य करने के बाद 1977 में गोयनका संस्कृत महाविद्यालय से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी. 1983 में गोयनका को छोड़कर संस्कृत विश्वविद्यालय में उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया और यहीं से साल 2008 में सेवानिवृत्त हो गए.

उसके बाद 2015 तक बीएचयू में बतौर अतिथि अध्यापक व विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर रहे थे. बता दें कि प्रो. भट्टाचार्य ने तीन महाकाव्य, आठ खंडकाव्य, 20 से अधिक पुस्तक लिखी हैं. इसके साथ ही उनके 1000 से अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं.

वाराणसी: जिले के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण के प्रकांड विद्वान पंडित मनुदेव भट्टाचार्य का शुक्रवार को हार्ट अटैक से निधन हो गया. वह 74 वर्ष के थे. वे कुछ दिनों से अस्वस्थ्य चल रहे थे. बीते 28 अक्टूबर से उनका इलाज शहर के एक निजी अस्पताल में चल रहा था.


विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ला ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि काशी की विद्युत परंपरा की एक और कड़ी आज हमसे दूर हो गई. यह संस्कृत व्याकरण क्षेत्र की अपूर्व क्षति है, जिसकी कभी भरपाई नहीं की जा सकती है. आचार्य मनुदेव भट्टाचार्य को 16 फरवरी 2019 को जारी सूची में राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सम्मानित करने हेतू नामित किया गया था. हालांकि कोविड-19 के कारण सम्मान समारोह नहीं हुआ. परंतु इसकी धनराशि उन्हें प्रतिमाह मिल रही थी.

संस्कृत से था गहरा लगाव
प्रो. भट्टाचार्य को शुरू से ही संस्कृत से बेहद लगाव था. संस्कृत पढ़ने के लिए 1957 में वह काशी आए थे. आचार्य करने के बाद 1977 में गोयनका संस्कृत महाविद्यालय से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी. 1983 में गोयनका को छोड़कर संस्कृत विश्वविद्यालय में उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया और यहीं से साल 2008 में सेवानिवृत्त हो गए.

उसके बाद 2015 तक बीएचयू में बतौर अतिथि अध्यापक व विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर रहे थे. बता दें कि प्रो. भट्टाचार्य ने तीन महाकाव्य, आठ खंडकाव्य, 20 से अधिक पुस्तक लिखी हैं. इसके साथ ही उनके 1000 से अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं.

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