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काशी में संतों ने उठाई आवाज, बोले- सरकार तय करे अल्पसंख्यक की परिभाषा

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने ईद के दिन अल्पसंख्यक समुदाय के 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृति देने की घोषणा के बाद सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है.

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती
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Published : Jun 11, 2019, 5:40 PM IST

वाराणसी: अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए भाजपा सरकार के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति उमड़े प्रेम का ही परिणाम था कि ईद के दिन अल्पसंख्यक समुदाय के 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृति देने की घोषणा कर दी गई. सरकार की इसी मंशा पर अखिल भारतीय संत समिति ने अपने उस पत्र के जरिये सवाल खड़ा किया है, जिसमें उन्होंने न केवल मौजूदा सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है.

मीडिया से बातचीत करते स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती.


स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कही ये बातें

  • प्रधानमंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, गृह मत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग को 9 बिंदुओं पर पत्र लिखने वाले अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही एक जन एक राष्ट्र की भावना की बात कही गई है.
  • इसलिए अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा कहीं से संविधान में तो नहीं है. दिसंबर 1992 में कांग्रेस सरकार द्वारा पहली बार अल्पसंख्यक आयोग का गठन संसद में प्रस्ताव लाकर किया गया और यह संविधान की मूल अवधारणा के विरुद्ध था.
  • ऐसे में सवाल है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है? चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर देखिए न तो उसके अनुसार और ही दुनिया के जिन देशों ने अल्पसंख्यक की परिभाषा दी है, उसके अनुसार भी मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हो सकता.
  • सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच ने 2002 में यह कहा है कि अल्पसंख्यक की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर नहीं वरन राज्यस्तर पर ही तय की जानी चाहिए. क्योंकि भारत के आठ राज्यों जम्मू-कश्मीर, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, लक्षद्वीप, नगालैंड, अरुणांचल प्रदेश और मणिपुर में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं.
  • यहां ढाई प्रतिशत से लेकर 38 प्रतिशत तक ही यहां हिंदू हैं, तो क्या इस कानून के तहत मिलने वाले लाभ को हिंदू अल्पसंख्यक लेने का हकदार नहीं है? क्या इन 8 राज्यों में अल्पसंख्यक हिंदुओं को सरकार की ओर से दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए.
  • अभी सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक आयोग से मांग की है कि राज्यवार अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करके बताये.
  • हम सरकार से यहीं मांग कर रहें हैं. इसलिए सरकार छात्रवृति अल्पसंख्यकों को बाटे हमें खुशी है, लेकिन उसमें आठ राज्यों का अल्पसंख्यक हिंदू भी हो और सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंडों का पालन हो.
  • यहीं देश का संत समाज चाहता है. हमारे दिमाग में अल्पसंख्यक का मतलब मुसलमान बैठा दिया गया है जो गलत है, तो अल्पसंख्यको की राजनीति ने देश को ऐसे जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि जिन-जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वे देश से टूटने के कगार पर आकर खड़ा हो गया है.
  • उन्होंने बताया कि उनके समिति में केंद्रीय मार्गदर्शक दल की बैठक 19-20 जून को हरिद्वार में होने वाली है. स्वभाविक है कि हिंदू हितों का प्रश्न उठेगा और हिंदू हितों और राष्ट्रवाद के कारण ये सरकार बनी है तो इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन समय पर बताना और जागरूक करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.

वाराणसी: अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए भाजपा सरकार के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति उमड़े प्रेम का ही परिणाम था कि ईद के दिन अल्पसंख्यक समुदाय के 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृति देने की घोषणा कर दी गई. सरकार की इसी मंशा पर अखिल भारतीय संत समिति ने अपने उस पत्र के जरिये सवाल खड़ा किया है, जिसमें उन्होंने न केवल मौजूदा सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है.

मीडिया से बातचीत करते स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती.


स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कही ये बातें

  • प्रधानमंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, गृह मत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग को 9 बिंदुओं पर पत्र लिखने वाले अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही एक जन एक राष्ट्र की भावना की बात कही गई है.
  • इसलिए अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा कहीं से संविधान में तो नहीं है. दिसंबर 1992 में कांग्रेस सरकार द्वारा पहली बार अल्पसंख्यक आयोग का गठन संसद में प्रस्ताव लाकर किया गया और यह संविधान की मूल अवधारणा के विरुद्ध था.
  • ऐसे में सवाल है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है? चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर देखिए न तो उसके अनुसार और ही दुनिया के जिन देशों ने अल्पसंख्यक की परिभाषा दी है, उसके अनुसार भी मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हो सकता.
  • सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच ने 2002 में यह कहा है कि अल्पसंख्यक की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर नहीं वरन राज्यस्तर पर ही तय की जानी चाहिए. क्योंकि भारत के आठ राज्यों जम्मू-कश्मीर, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, लक्षद्वीप, नगालैंड, अरुणांचल प्रदेश और मणिपुर में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं.
  • यहां ढाई प्रतिशत से लेकर 38 प्रतिशत तक ही यहां हिंदू हैं, तो क्या इस कानून के तहत मिलने वाले लाभ को हिंदू अल्पसंख्यक लेने का हकदार नहीं है? क्या इन 8 राज्यों में अल्पसंख्यक हिंदुओं को सरकार की ओर से दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए.
  • अभी सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक आयोग से मांग की है कि राज्यवार अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करके बताये.
  • हम सरकार से यहीं मांग कर रहें हैं. इसलिए सरकार छात्रवृति अल्पसंख्यकों को बाटे हमें खुशी है, लेकिन उसमें आठ राज्यों का अल्पसंख्यक हिंदू भी हो और सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंडों का पालन हो.
  • यहीं देश का संत समाज चाहता है. हमारे दिमाग में अल्पसंख्यक का मतलब मुसलमान बैठा दिया गया है जो गलत है, तो अल्पसंख्यको की राजनीति ने देश को ऐसे जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि जिन-जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वे देश से टूटने के कगार पर आकर खड़ा हो गया है.
  • उन्होंने बताया कि उनके समिति में केंद्रीय मार्गदर्शक दल की बैठक 19-20 जून को हरिद्वार में होने वाली है. स्वभाविक है कि हिंदू हितों का प्रश्न उठेगा और हिंदू हितों और राष्ट्रवाद के कारण ये सरकार बनी है तो इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन समय पर बताना और जागरूक करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.
Intro:एंकर- वाराणसी: अल्पसंख्यक वोटों को साधने के लिए भाजपा सरकार के मन में अल्पसंख्यकों के प्रति उमड़े प्रेम का ही नतीजा था कि ईद के दिन अल्पसंख्यक समुदाय के 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृति देने की घोषणा कर दी गई. सरकार की इसी मंशा पर अखिल भारतीय संत समिति ने अपने उस पत्र के जरिये सवाल खड़ा किया है. जिसमें उन्होने न केवल मौजूदा सरकार से अल्पसंख्यक की परिभाषा पूछी है, बल्कि वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले में कि अल्पसंख्यक की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर न होकर वास्तविक आधार पर तय की जानी चाहिए और इसी आधार पर इसे लागू करने की भी मांग की है, क्योंकि देश में आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यकों की तरह रह रहा है.


Body:वीओ-01 प्रधानमंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, गृह मत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग को 9 बिंदूओं पर पत्र लिखने वाले अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही एक जन एक राष्ट्र की भावना की बात कही गई है. इसलिए अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा कहीं से संविधान में तो नहीं है. दिसंबर 1992 में कांग्रेस सरकार द्वारा पहली बार अल्पसंख्यक आयोग का गठन संसद में प्रस्ताव लाकर किया गया और यह संविधान की मूल अवधारणा के विरुद्ध था. ऐसे में सवाल है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है? चाहे संयुक्त राष्ट्रसंघ का चार्टर देखिए न तो उसके अनुसार और ही दुनिया के जिन देेशों ने अल्पसंख्यक की परिभाषा दी है उसके अनुसार भी मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच ने 2002 में यह कहा है कि अल्पसंख्यक की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर नहीं वरन राज्य स्तर पर ही तय की जानी चाहिए. क्योंकि भारत के आठ राज्यों जम्मू-कश्मीर, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, लक्षद्वीप, नगालैंड, अरुणांचल प्रदेश और मणिपुर में हिंदू भी अल्पसंख्यक हैं.


Conclusion:वीओ-02 ये ढाई प्रतिशत से लेकर 38 प्रतिशत तक ही यहां हिंदू हैं, तो क्या इस कानून के तहत मिलने वाले लाभ को हिंदू अल्पसंख्यक लेने का हकदार नहीं है? क्या इन 8 राज्यों में अल्पसंख्यक हिंदुओं को सरकार की ओर से दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए. अभी सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक आयोग से मांग की है कि राज्यवार अल्पसंख्यक की परिभाषा राज्यवार तय करके बताइये और हम सरकार से यहीं मांग कर रहें हैं. इसलिए सरकार छात्रवृति अल्पसंख्यकों को बाटे हमें खुशी है, लेकिन उसमें आठ राज्यों का अल्पसंख्यक हिंदू भी हो और सुप्रीम कोर्ट के तय मापदंडों का पालन हो, यहीं देश का संत समाज चाहता है। हमारे दिमाग में अल्पसंख्यक का मतलब मुसलमान बैठा दिया गया है जो गलत है, तो अल्पसंख्यको की राजनीति ने देश को ऐसे जगह लाकर खड़ा कर दिया है कि जिन जिन राज्योंं में हिंदू अल्पसंख्यक है वे देश से टूटने के कगार पर आकर खड़ा हो गया है. उन्होंने बताया कि उनके समिति में केंद्रीय मार्गदर्शक दल की बैठक 19-20 जून को हरिद्वार में होने वाली है. स्वभाविक है कि हिंदू हितों का प्रश्न उठेगा और हिंदू हितों और राष्ट्रवाद के कारण ये सरकार बनी है तो इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन समय पर बताना और जागरूक करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.

बाईट- स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती- महामंत्री, अखिल भारतीय संत समिति

गोपाल मिश्र

9839809074

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