वाराणसी: धर्म नगरी काशी को शिक्षा संस्कृति कलाओं का शहर कहा जाता है. यही वजह है कि हर कोई यहां की शिक्षा, कला, संस्कृति, संगीत को समझने का प्रयास करता है. बनारस की इसी कला और रस को समझने के लिए इन दिनों सैकड़ों की संख्या में छात्रों का एक जत्था धर्म नगरी पहुंचा है. बड़ी बात यह है कि काशी में इन छात्रों का आना न सिर्फ उन्हें बनारस की कलाओं को बारीकी से समझने और जानने का मौका दे रहा है, बल्कि उनका आना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म और कर्मभूमि के अद्भुत संगम का भी गवाह बना हुआ है. जी हां, इन दिनों गुजरात के अहमदाबाद विश्वविद्यालय से लगभग 300 की संख्या में छात्र-छात्राएं बनारस आए हुए हैं. यह विद्यार्थी प्रोडक्ट डेवलपमेंट, इंटीरियर डिजाइनिंग और अन्य क्रिएटिव क्षेत्र से है. यह बनारस आकर यहां की संस्कृति संगीत के साथ मुख्य तौर पर यहां की हस्तशिल्प कला को जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं. इन कलाओं में लकड़ी के खिलौने, स्टोन कार्विंग, बुनकारी और अन्य शामिल है.
शिल्प कलाओं के जरिए हो रहा पीएम मोदी के जन्म व कर्मभूमि का संगम
दरअसल, यह वही कला है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश दुनिया में प्रचार करते रहते हैं. अब उनके जन्मभूमि से आकर छात्र उनके कर्मभूमि में यहां की कलाओं जान और सीख रहे हैं. इस बारे में वाराणसी पहुंची छात्राओं ने बताया कि, वह इंटीरियर डिजाइनिंग, प्रोडक्शन डेवलपमेंट के विद्यार्थी हैं. उन्होंने अपने रिसर्च के लिए बनारस का चयन किया है. बनारस में वह यहां के हस्तशिल्प कलाओ पर मुख्य तौर से रिसर्च कर रहे हैं. जिसमें बनारसी साड़ी, यहां की स्टोन कार्विंग और लकड़ी के खिलौने हैं.
कहा कि बनारस आने का उनका उद्देश्य यहां की कलाओं को बारीकी से जानना और समझना है, क्योंकि यहां की कला पूरे देश की कलाओं से बेहद अलग और खूबसूरत है. उन्होंने बताया कि हमने यहां पर अभी लकड़ी का खिलौना बनाने वाले आर्टिजन से मुलाकात की. हमने देखा कि वह बेहद बारीकी तरीके से उस पर डिजाइन को तैयार कर रहे है, जो हमारे लिए एकदम नया अनुभव है. हमने बकायदा इसकी डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है और हमारा प्रयास होगा कि हम इसे आगे और भी प्रमोट करें.
ये ट्रिप नए स्टार्टअप का देगा मौका
छात्राओं ने कहा कि बनारस आना न सिर्फ उनको यहां की संस्कृति को समझने और जानने का मौका दे रहा है, बल्कि भविष्य में एक नए स्टार्टअप की सोच को भी बढ़ावा दे रहा है. बहुत छात्र इंटीरियर डिजाइनिंग के हैं. उनके लिए यहां का शिल्प एक कलर पैलेट की तरह है. क्योंकि, वर्तमान समय में लोग फॉरेन के साथ-साथ इंडियन कलर पायलट से अपने घर को डेकोरेट करने की चाह रखते हैं. ऐसे में बनारस का कलरफुल शिल्प उनके घर को और भी ज्यादा इनोवेटिव बना सकता है. यहां पर वुडन के अलावा अन्य अलग-अलग हैंडीक्राफ्ट को भी देखा है, जो कि एक नया स्टार्टअप का भी विचार देगा. इससे भविष्य में बनारस के आर्टिजन के साथ मिलकर गुजरात और देश के अन्य हिस्सों में एक नए कारोबार की भी शुरुआत कर सकते हैं, जिससे न सिर्फ कारीगरों को बढ़ावा मिलेगा. बल्कि बनारस की कला को और भी ज्यादा पहचान मिलेगी.
बनारस की कलाओं को मिलेगी नई उड़ान
इस दौरान लकड़ी के खिलौने की डिजाइनर शुभी ने बताया कि 'यह हमारे लिए बेहद उत्साह भरा मौका है. जब दूसरे राज्यों से बच्चे यहां की कला को देख और समझ रहे हैं. मैं इसका श्रेय अपने सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना चाहूंगी. जिस तरीके से उन्होंने बनारस की हैंडीक्राफ्ट को यहां के शिल्प को प्रमोट किया है. उसी का परिणाम है कि अब हमारी नई पीढ़ी भी इस पर रिसर्च कर रही है. इन बच्चों के बनारस आने से यहां की कला और कारीगरों को और भी लाभ मिलेगा.
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