वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आईआईटी की एक छात्रा के साथ छेड़खानी की वारदात को अंजाम दिया गया था. छात्रा से छेड़खानी के बाद उनकी सुरक्षा को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक ओर मंथन किया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर इस विरोध के बीच में IIT बीएचयू और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के बीच बाउंड्री वॉल उठाने का भी मुद्दा जोरों से चल रहा है. जिसका परिणाम अलग-अलग छात्र संगठनों के विरोध के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या IIT बीएचयू और बीएचयू के बीच दीवार बनाई जा सकती है. इसे बनाया जाना कितना संभव है. इन तमाम विषयों पर ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की और विश्वविद्यालय के पूर्व संकायाअध्यक्ष से बातचीत की.
जानिए पूरा मामला
दरअसल IIT बीएचयू में छात्रों के धरने के बाद जिला प्रशासन, पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन हरकत में आ गया है. एक ओर धरने पर बैठे छात्रों की मांगों को माने जाने का आश्वासन दिया गया है. वहीं, दूसरी ओर वादा किया गया है कि बीएचयू और IIT बीएचयू के बीच बाउंड्री वॉल बनाकर दोनों कैंपस को अलग किया जाएगा.
शिक्षा मंत्रालय से हुई बातचीत
प्रेस एंड पब्लिसिटी सेल के इंचार्ज प्रो. विकास दुबे का कहना है कि क्लोज कैंपस की डिमांड को पूरा करने की कार्रवाई शुरू हो गई है. वाराणसी जिला प्रशासन ने इस संबंध में शिक्षा मंत्रालय से बातचीत की गई है. मंत्रालय की ओर से निर्देश मिलने के बाद बाउंड्री वॉल तैयार की जाएगी. वहीं, छेड़खानी वाली जगह को रात में ब्लॉक कर दिया जाएगा.
विश्वनाथ मंदिर के सामने दीवार बनाने का था प्लान
इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सामाजिक संकाय के पूर्व डीन कौशल किशोर मिश्रा से इस बारे में बातचीत की. उन्होंने इस मामले को एकदम साफ कर दिया है कि IIT बीएचयू और बीएचयू का एक ही गेट है. पूरे IIT बीएचयू के निर्माण से लेकर अभी तक एक ही गेट है. छात्रा के साथ जब ये घटना घटी तो विभाजनकारी लोगों को मौका मिल गया. साल 2012 से पहले IIT बीएचयू को जिन लोगों ने अलग करने का प्रयास किया था, उन लोगों ने फिर से एक बार IIT बीएचयू और बीएचयू को अलग करने का मामला उठा दिया है. साल 2012 में जब IIT बीएचयू बना तो उस समय ये हुआ कि विश्वनाथ मंदिर के सामने से एक दीवार उठाई जाएगी. दीवार के दोनों तरफ IIT बीएचयू और बीएचयू हो जाएगा. जहां IIT का रास्ता दूसरी तरफ से खोला जाएगा.'
पंडित मदन मोहन मालवीय को आप कैसे बांट सकते हैं ?
पूर्व डीन कौशल किशोर मिश्रा बताते हैं कि 'विश्वविद्यालय का एक ही गेट है जिसे न तोड़ा जा सकता है और न ही विभाजित किया जा सकता है. अब ये लोग पुराना प्रस्ताव लागू करना चाहते हैं. यहीं से बात उठी कि हम दीवार बनाएंगे. मगर उन्हें ये पता नहीं है कि संसद में और MOU में विश्वविद्यालय को अलग नहीं किया गया है. इसे कोई भी अलग नहीं कर सकता है. जब तक कि इसे संसद नहीं पास करता है. यह संपत्ति, हॉस्टल, क्लासरूम, टीचर्स चैंबर सब कुछ पंडित मदन मोहन मालवीय का है. जब सब कुछ उन्हीं का है तो आप पंडित मदन मोहन मालवीय को बांट देंगे? पंडित मालवीय ने कहा था कि विश्वविद्यालय एक राष्ट्र है. इस राष्ट्र का विभाजन कोई नहीं बर्दाश्त करेगा.'
जिला प्रशासन नहीं कर सकता हस्तक्षेप
पूर्व डीन कौशल किशोर मिश्रा कहते हैं, कि 'ये भारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं है. इस समय मालवीय के सम्मान को बांटा जा रहा है. अब मांग की जा रही है कि IIT बीएचयू को कुलपति के अधीन किया जाए. यह भारत के इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता का मामला है. जिन लोगों ने इस तरह के प्रस्ताव को हवा दी है. वे लोग अपराधी हैं. वे लोग मालवीय द्रोही हैं. जिस तरह से जिला प्रशासन इसमें हस्तक्षेप कर रहा है. उसे यह समझना चाहिए कि यह जिला प्रशासन की संपत्ति नहीं है. जिला प्रशासन विश्वविद्यालय के अंदर बिना कुलपति के आदेश के घुस भी नहीं सकता है. उन्होंने कहा कि 'यह मालवीय के सम्मान की रक्षा का सवाल है. दीवार बनने पर गांव वाले गेट बंद कर सकते हैं.
महामना ने की थी स्थापना
IIT बीएचयू और बीएचयू के बीच बाउंड्री वाल बनाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और जिला प्रशासन तैयार तो हो गया है. लेकिन अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या IIT बीएचयू और बीएचयू कैंपस को अलग किया जा सकता है. दरअसल, बीएचयू और IIT बीएचयू आपस में कई विभागों को साझा करते हैं. इन्हें बाउंड्री वाल से अलग करना कठिन काम होगा. पंडित मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू की स्थापना साल 1916 में थी. इसके तीन साल बात इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई थी. जिसे IIT बीएचयू का दर्जा दिया गया था. महामना मदन मोहन मालवीय ने इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिस्से के रूप में ही की थी. साल 2012 में इसे IIT बीएचयू का दर्जा दिया गया था.
बीएचयू के विभाग IIT परिसर में होते हैं संचालित
इतना ही नहीं बीएचयू परिसर में स्थित IIT बीएचयू का माइनिंग एंड मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग 100 साल पूरे कर रहा है. यह विज्ञान संस्थान परिसर में भूभौतिकी विभाग के पीछे बनाया गया है. IIT बीएचयू परिसर के पिछले हिस्से में BHU का डेयरी विभाग है. यहां पर गोशाला भी मौजूद है. इसके आगे की खाली जमीन पर कृषि क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल की जाती है. परिसर में स्थित स्वतंत्रता भवन, बीएचयू और IIT बीएचयू के लिए बड़ा ऑडिटोरियम है. दोनों संस्थानों के सभी बड़े कार्यक्रमों के आयोजन यहीं पर होते रहते हैं. इसके साथ ही IIT में आने वाला सीरगोवर्धन और हैदराबाद गेट भी बीएचयू ही संचालित करता है. इसकी सुरक्षा बीएचयू प्रशासम द्वारा की जाती है. ऐसे में कौन से विभाग को किस तरह से अलग किया जाएगा ये बड़ी समस्या होगी.
IIT बीएचयू को किया जा रहा था IIT वाराणसी
बीएचयू के मुख्य परिसर का क्षेत्रफल 1300 एकड़ है. इसमें 425 एकड़ में IIT बीएचयू कैंपस है. पहले भी मेन कैंपस और IIT को अलग रखने की कोशिश हुई थी. उस समय IIT बीएचयू को IIT वाराणसी का नाम दिया जा रहा था. ऐसे में इसका विरोध यह कहकर जताया गया कि IIT को BHU से अलग नहीं किया जाना चाहिए. यह महामना की बीएचयू की स्थापना की मूल भावना के खिलाफ था. ऐसे में BHU और IIT अलग न हों. इसके लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में 3 रिट दायर किए गए थे. भारतरत्न और BHU के पूर्व छात्र प्रो. सीएनआर रॉव ने भी अलग न करने का समर्थन किया था. उस समय विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक डॉ. अशोक सिंहल ने सरकार को चिट्ठी लिखी थी.
IIT बीएचयू महामना मालवीय की मूल भावना है
'विविध, कला, अर्थशास्त्र, गायन और गणित, खनिज, औषधि रसायन, प्रतीचि-प्राची का मेल सुंदर यह विश्वविद्या की राजधानी है.' काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलगीत का हिस्सा है. इसमें महामना मदन मोहन मालनीय के बेहतर शिक्षण संस्थान की परिकल्पना है. IIT बीएचयू और बीएचयू के बीच बाउंड्री वाल का विरोध कर रहे छात्रों का कहना है, कि 'कुलगीत की इस पंक्ति से गणित और खनिज हट जाएगा. ऐसे में महामना के सपने को उजाड़ा जा रहा है. हम कैंपस में रहें या न रहें मगर हम इस विभाजन का विरोध जारी रखेंगे. IIT बीएचयू महामना की मूल भावना है. जिसे उन्होंने एक ही रूप में स्थापित किया था. अब दीवार बनाकर इसे मिटाया जा रहा है.'
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