वाराणसीः महादेव की नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ के अलावा कई ऐसे शिवलिंग विराजमान है जिनको लेकर कई अद्भुत पौराणिक मान्यताएं हैं. ऐसे ही शिवलिंगों में एक है काशी का गौरी केदारेश्वर शिवलिंग.
काशी में स्थित गौरी केदारेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग बेहद अद्भुत है. मान्यता है कि इस शिवलिंग का निर्माण खिचड़ी से हुआ है. बाबा इस शिवलिंग में माता पार्वती के साथ विराजमान है. यहीं नहीं माता अन्नपूर्णा और विष्णु-लक्ष्मी की कृपा भी इस शिवलिंग को पूजने से मिलती है. इस तरह इस शिवलिंग के पूजन से कुल पांच देवी-देवताओं की कृपा मिलती है. यहां केदारेश्वर महादेव 15 कलाओं के साथ विराजमान हैं. इनके दर्शन से बाबा विश्वनाथ के पूजन-अर्चन जैसा फल मिलता है. विशेषकर सोमवार के दिन यहां पूजन का विशेष महत्व है.
पुजारी आनंद प्रकाश दुबे बताते हैं कि वाराणसी प्रमुख तीन खंडों में विभाजित है. मधुमेह विशेश्वर के प्रधान श्री काशी विश्वनाथ हैं. उत्तर भाग को ओमकारेश्वर और दक्षिण भाग को केदारेश्वर खंड कहते हैं. केदारेश्वर खंड में श्री गौरी केदारेश्वर का मंदिर है.
मान्यता है कि यहां के राजा मांधाता ने शिवलिंग के लिए हिमालय में कठोर तप किया. हिमालय पर केदारेश्वर मंदिर के दर्शन की मान्यता है. राजा को आज्ञा हुई कि तुम काशी जाओ, वहां दर्शन मिलेंगे. काशी में राजा ने खिचड़ी रखकर पूजन शुरू कर दिया. वह खिचड़ी को दो भागों में बांट देते थे. एक भाग वह खा लेते थे जबकि दूसरा भाग ब्राह्मण को दान कर देते थे. मकर संक्रांति वाले दिन खिचड़ी पत्थर की हो गई. यह देखकर राजा रोने लगे. भोले बाबा ने ब्राह्मण का वेष त्यागकर राजा को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारी इच्छा पूर्ण हुई. यह खिचड़ी शिवलिंग में बदल चुकी है.
आनंद प्रकाश दुबे ने बताया कि इस शिवलिंग में शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी के साथ ही माता अन्नपूर्णा का वास है. चूंकि यह शिवलिंग अन्न से बना था इसलिए इसमें माता अन्नपूर्णा का वास है. इसे पूजन से पांच देवी-देवताओं की विशेष कृपा मिलती है. उन्होंने कहा कि श्री काशी विश्वनाथ और ओमकारेश्वर महादेव में दर्शन करने से सभी प्रकार की मुक्ति तो मिलती है लेकिन भैरवी यात्रा का दुख सहना पड़ता है. वहीं, काशी के केदारखंड में प्राण त्यागने पर भैरव दंड से मुक्ति मिल जाती है. भक्त चंद्रभान ने बताया कि मंदिर के सामने से दर्शन करने पर नंदी और मां भागीरथी गंगा का दर्शन होता है. यहां दर्शन करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है. यह कैलाश स्थित केदारेश्वर महादेव के प्रतिरूप हैं.