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238 वर्ष पहले बनारस ने लड़ी थी आजादी की पहली लड़ाई

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Published : Aug 15, 2019, 12:13 PM IST

बनारस ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 1781 में काशीवासियों ने राजा चेत सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था. इस विद्रोह में तीन अंग्रेज अधिकारी के साथ करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे. आज भी इनके कब्रिस्तान यहां मौजूद हैं और इस क्षेत्र को अब संरक्षित घोषित कर दिया गया है.

बनारस ने लड़ी थी आजादी की पहली लड़ाई.

वाराणसी: बनारस एक ऐसा शहर है, जिसको आप जितना जानेंगे आपके लिए उतना ही कम होगा. आज पूरे देश में आजादी की लड़ाई का जश्न मनाया जा रहा है. ऐसे में आजादी की लड़ाई में हम बनारस का योगदान कैसे भूल सकते हैं. बहुत कम लोगों को पता है कि 238 वर्ष पहले काशी नगरी ने आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी.

बनारस ने लड़ी थी आजादी की पहली लड़ाई

1781 में ईस्ट इंडिया कंपनी खुद को पूरे देश में विस्तारित कर रही थी. साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग की हठधर्मिता के चलते ऐसा माहौल बना कि काशीवासियों ने राजा चेत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया. वैसे तो इतिहास में 1857 में हुए प्रथम विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है. मगर बहुतों को यह नहीं पता कि आजादी की पहली लड़ाई अंग्रेजों से काशी में हुई थी, जिसमें गवर्नर जनरल को यहां से भागना पड़ा था. काशी में मौजूद इसके निशान और दस्तावेज आज भी इस लड़ाई की कहानी बयां करते हैं.

शिलालेख बयां करती है लड़ाई की कहानी
चेत सिंह घाट पर स्थित महाराजा चेत सिंह किला पर बकायदा शिलापट्ट लगा हुआ है, जिसमें लड़ाई का पूरा विवरण दिया गया है. उसके साथ ही शिवाला घाट पर स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलालेख उस समय हुई लड़ाई की गवाही देता है. शिलालेख पर अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट स्टाकर, लेफ्टिनेंट स्टाक और लेफिटनेंट जार्ज संग करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे. आज भी कब्रिस्तान यहां मौजूद है और इस क्षेत्र को अब संरक्षित घोषित कर दिया गया है.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अधिक टैक्स की मांग की
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया कि उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी. ऐसे में बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था. ईस्ट इंडिया कंपनी महाराजा चेत सिंह से बहुत अधिक टैक्स की मांग कर रही थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ही अधिक था. टैक्स को वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आए.

1781 में पड़ी स्वतंत्रता आंदोलन की नींव
उन्होंने कहा कि आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे, लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. काशीवासियों ने वारेन हेस्टिंग पर आक्रमण कर दिया और वारेन हेस्टिंग को यहां से भागना पड़ा. बाद में वह चुनार चले गए. उसके बाद कोलकाता से सेना मंगवा कर वारेन हेस्टिंग ने चेत किला पर कब्जा कर लिया, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि अंग्रेजों का विद्रोह सबसे पहले काशी की जनता ने 1781 में किया और अंग्रेजी अधिकारी को भगाकर स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी.

वाराणसी: बनारस एक ऐसा शहर है, जिसको आप जितना जानेंगे आपके लिए उतना ही कम होगा. आज पूरे देश में आजादी की लड़ाई का जश्न मनाया जा रहा है. ऐसे में आजादी की लड़ाई में हम बनारस का योगदान कैसे भूल सकते हैं. बहुत कम लोगों को पता है कि 238 वर्ष पहले काशी नगरी ने आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी.

बनारस ने लड़ी थी आजादी की पहली लड़ाई

1781 में ईस्ट इंडिया कंपनी खुद को पूरे देश में विस्तारित कर रही थी. साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग की हठधर्मिता के चलते ऐसा माहौल बना कि काशीवासियों ने राजा चेत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया. वैसे तो इतिहास में 1857 में हुए प्रथम विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है. मगर बहुतों को यह नहीं पता कि आजादी की पहली लड़ाई अंग्रेजों से काशी में हुई थी, जिसमें गवर्नर जनरल को यहां से भागना पड़ा था. काशी में मौजूद इसके निशान और दस्तावेज आज भी इस लड़ाई की कहानी बयां करते हैं.

शिलालेख बयां करती है लड़ाई की कहानी
चेत सिंह घाट पर स्थित महाराजा चेत सिंह किला पर बकायदा शिलापट्ट लगा हुआ है, जिसमें लड़ाई का पूरा विवरण दिया गया है. उसके साथ ही शिवाला घाट पर स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलालेख उस समय हुई लड़ाई की गवाही देता है. शिलालेख पर अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट स्टाकर, लेफ्टिनेंट स्टाक और लेफिटनेंट जार्ज संग करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे. आज भी कब्रिस्तान यहां मौजूद है और इस क्षेत्र को अब संरक्षित घोषित कर दिया गया है.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अधिक टैक्स की मांग की
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया कि उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी. ऐसे में बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था. ईस्ट इंडिया कंपनी महाराजा चेत सिंह से बहुत अधिक टैक्स की मांग कर रही थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ही अधिक था. टैक्स को वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आए.

1781 में पड़ी स्वतंत्रता आंदोलन की नींव
उन्होंने कहा कि आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे, लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. काशीवासियों ने वारेन हेस्टिंग पर आक्रमण कर दिया और वारेन हेस्टिंग को यहां से भागना पड़ा. बाद में वह चुनार चले गए. उसके बाद कोलकाता से सेना मंगवा कर वारेन हेस्टिंग ने चेत किला पर कब्जा कर लिया, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि अंग्रेजों का विद्रोह सबसे पहले काशी की जनता ने 1781 में किया और अंग्रेजी अधिकारी को भगाकर स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी.

Intro:15 अगस्त स्पेशल

बनारस एक ऐसा शहर आप जिसको जितना जानोगे उतना आपके लिए कम ही रहेगा। आज पूरे देश में आजादी की लड़ाई का जश्न मनाया जा रहा है ऐसे में आजादी की लड़ाई में हम बनारस का योगदान आपको बताते हैं।


बहुत कम लोगों को पता है कि 238 वर्ष पहले काशी नगरी ने आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी तब ईस्ट इंडिया कंपनी खुद को पूरे देश में विस्तारित कर रही थी साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग की हठधर्मिता के चलते ऐसा माहौल बना की काशी वासियों ने राजा चेत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।अंग्रेज फौज से मुकाबला हुआ इसमें कई शहीद हुए तो अंग्रेज सैनिकों अफसर भी मारे गए वैसे तो इतिहास में 18 57 में हुए प्रथम विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है मगर बहुतों को यह नहीं पता कि आजादी की पहली लड़ाई अंग्रेजों से काशी में हुई थी जिसमें गवर्नर जनरल को यहां से भागना पड़ा काशी में मौजूद है इसके निशान और दस्तावेज आज भी इस लड़ाई की कहानी कहते हैं।


Body:शिलालेख बयां करती है लड़ाई की कहानी।

चेत सिंह घाट पर स्थित महाराजा चेत सिंह किला पर बकायदा शिलापट्ट लगा हुआ है।।जिसमें किस तरह की लड़ाई हुई इसका पूरा विवरण किया गया है उसके साथी शिवाला घाट पर स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलालेख उस समय की हुई लड़ाई की गवाही देता है।उस पर अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट स्टाकर और लेफ्टिनेंट स्टाक व लेफिटनेंट जार्ज संग करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे। आज भी कब्रिस्तान वहां मौजूद है और यह क्षेत्र को अब संरक्षित घोषित कर दिया गया है।


Conclusion:आइए हम जानते हैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास प्रोफेसर राकेश पांडेय से कैसी थी कि युद्ध क्या थी वजह और क्या हुआ।

प्रोफेसर राकेश पांडे ने बताया कि उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी। ऐसे में बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था। ईस्ट इंडिया कंपनी महाराजा चेत सिंह से टैक्स बहुत अधिक मांग रही थी। जो उस समय के हिसाब से बहुत ही अधिक था। टैक्स को वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आया।

जब गवर्नर जनरल बनारस पहुंचता है चुनार के किले में रुकता है यह 1781 की बात है। बनारस की डीएवी कॉलेज के पास औसानगंज राजा की कोठी में उसका निवास स्थान रहता है।
अभी बात ही चल रही थी और महाराजा चेत सिंह का किला रामनगर में भी था और शिवाला स्थित चेत सिंह घाट पर भी। इतने में यह बात फैल गई और चेत सिंह के सैनिकों ने गवर्नर जनरल पर हमला कर दिया उस हमले में बहुत से सैनिक मारे गए। जिसका स्मारक आज भी शिवाला के पास बना हुआ जो अंग्रेजों ने स्वयं बनवाया था।

आप कह सकते हैं कि अपनी आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। हमारे राजा को बहुत दबाया जा रहा है यहां की जनता ने खुद खड़ी होकर वारेन हेस्टिंग पर आक्रमण कर दिया वारेन हेस्टिंग यहां से भाग गया। और बाद में वह चुनार चला गया उसके बाद कोलकाता से और सेना मंगवा कर उसने चेत किला पर कब्जा कर लिया। लेकिन हम यह कर सकते हैं कि अंग्रेजों का विद्रोह सबसे पहले काशी की जनता ने 1781 में किया और अंग्रेजी अधिकारी को भगाकर इस स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत किया।

नॉट :-- 15 अगस्त विशेष कार्यक्रम जिसमें एक्सपोर्ट की बाइट है यह खबर हमने एडिट नहीं की है।

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