ETV Bharat / state

काशी में व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य, पुत्र के दीर्घायु होने की कामना की - asthachalagami sun

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में सोमवार को छठ व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर पुत्र के दीर्घायु होने की कामना की. इस दौरान लाॅकडाउन के कारण गंगा घाट पर भीड़ नहीं थी.

etv bharat
काशी में व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य
author img

By

Published : Mar 31, 2020, 10:59 PM IST

वाराणसी: सूर्योपासना का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है. एक चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि और दूसरा कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को. इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय कार्तिक का छठ व्रत है, जो दीपावली के बाद आता है. दोनों ही छठ व्रत चार दिन का होता है. इस व्रत में स्वच्छता पर विशेष महत्व दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है.

काशी में व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

इस बार नहाए खाए के साथ 28 मार्च से यह पर्व शुरू हुआ और सोमवार को व्रती महिलाओं ने अस्तचलगामी सूर्य भगवान को अर्घ्य दे करके अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना की. लॉकडाउन की वजह से इस बार इक्का-दुक्का महिलाएं घाटों पर नजर आईं और वह भी कोरोना वायरस को देखते हुए उचित दूरी बनाकर पूजा की.

आमतौर पर छठ पूजा में घर के सभी लोग शामिल होते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण सिर्फ व्रती महिलाएं ही पूजा करती दिखीं. हालांकि इस दौरान प्रशासन लोगों को गंगा घाटों पर जाने से रोकता रहा और उनको समझा-बुझाकर घर भी भेजा.

चार दिनों का होता है महापर्व
छठ व्रत की पूजा चार दिनों की होती है. पहला दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है. कार्तिक या चैत्र के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन होता है. इस दिन व्रती स्नान करती हैं और नए वस्त्र को धारण करती हैं. इसके बाद भोजन करती हैं. व्रती के भोजन करने के उपरांत ही घर के बाकी लोग भोजन करते हैं.

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन पूरे दिन व्रत रहा जाता है. शाम को व्रती महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं. शाम को चावल और गुड़ की खीर बनाकर खाया जाता है. भोजन में नमक-चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके बाद सभी महिलाएं छठ माता का गीत गाती हैं. पूजा में ठेकुए का विशेष महत्व होता है. इसके साथ ही साथ सूप और दौरे को भी सजाया जाता है. जिसे लेकर के सभी लोग पास के नदी, तालाब या गंगा घाट पर जाते हैं और वहां पर स्नान-ध्यान करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं.

व्रती महिलाओं ने बताया कि यह पूजा करना बड़ा ही कठिन होता है. कार्तिक माह व्रत सभी लोग करते हैं और सफल भी हो जाते हैं, लेकिन चैती छठ को करना बड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि यह गर्मी का महीना होता है. ऐसे में निर्जल उपवास रखना बेहद कठिन होता है. इसके बावजूद भी सभी लोग व्रत करते हैं.

ऐसे ही अगले दिन सुबह उठते हुए पूजा-अर्चना करने के साथ सभी लोग द्वारा सजाकर के गंगा घाट जाते हैं और वहां पर उदयाचल गांव में सुरियानी उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है, इस दौरान पूजा-पाठ में विशेष शुद्धता का ख्याल रखा जाता है, इसके बाद सभी महिलाएं व्रत का पारण करती हैं.

वाराणसी: सूर्योपासना का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है. एक चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि और दूसरा कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को. इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय कार्तिक का छठ व्रत है, जो दीपावली के बाद आता है. दोनों ही छठ व्रत चार दिन का होता है. इस व्रत में स्वच्छता पर विशेष महत्व दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है.

काशी में व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य

इस बार नहाए खाए के साथ 28 मार्च से यह पर्व शुरू हुआ और सोमवार को व्रती महिलाओं ने अस्तचलगामी सूर्य भगवान को अर्घ्य दे करके अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना की. लॉकडाउन की वजह से इस बार इक्का-दुक्का महिलाएं घाटों पर नजर आईं और वह भी कोरोना वायरस को देखते हुए उचित दूरी बनाकर पूजा की.

आमतौर पर छठ पूजा में घर के सभी लोग शामिल होते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण सिर्फ व्रती महिलाएं ही पूजा करती दिखीं. हालांकि इस दौरान प्रशासन लोगों को गंगा घाटों पर जाने से रोकता रहा और उनको समझा-बुझाकर घर भी भेजा.

चार दिनों का होता है महापर्व
छठ व्रत की पूजा चार दिनों की होती है. पहला दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है. कार्तिक या चैत्र के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन होता है. इस दिन व्रती स्नान करती हैं और नए वस्त्र को धारण करती हैं. इसके बाद भोजन करती हैं. व्रती के भोजन करने के उपरांत ही घर के बाकी लोग भोजन करते हैं.

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन पूरे दिन व्रत रहा जाता है. शाम को व्रती महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं. शाम को चावल और गुड़ की खीर बनाकर खाया जाता है. भोजन में नमक-चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसके बाद सभी महिलाएं छठ माता का गीत गाती हैं. पूजा में ठेकुए का विशेष महत्व होता है. इसके साथ ही साथ सूप और दौरे को भी सजाया जाता है. जिसे लेकर के सभी लोग पास के नदी, तालाब या गंगा घाट पर जाते हैं और वहां पर स्नान-ध्यान करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं.

व्रती महिलाओं ने बताया कि यह पूजा करना बड़ा ही कठिन होता है. कार्तिक माह व्रत सभी लोग करते हैं और सफल भी हो जाते हैं, लेकिन चैती छठ को करना बड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि यह गर्मी का महीना होता है. ऐसे में निर्जल उपवास रखना बेहद कठिन होता है. इसके बावजूद भी सभी लोग व्रत करते हैं.

ऐसे ही अगले दिन सुबह उठते हुए पूजा-अर्चना करने के साथ सभी लोग द्वारा सजाकर के गंगा घाट जाते हैं और वहां पर उदयाचल गांव में सुरियानी उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है, इस दौरान पूजा-पाठ में विशेष शुद्धता का ख्याल रखा जाता है, इसके बाद सभी महिलाएं व्रत का पारण करती हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.