वाराणसी: दिल्ली के रामलीला मैदान में अक्टूबर 1965 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री ने देश की जनता को संबोधित करते हुए देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की थी. भारत को कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने पहली बार 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था.
आजाद भारत में पहली बार दिल्ली के लाल किले पर जब सैनिक अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए नजर आएंगे तो दिल्ली के बॉर्डर पर तीन लाख ट्रैक्टरों की रैलियों के साथ किसान अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए नजर आएंगे. किसानों का कहना है कि सरकार जब तक तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का काम नहीं करती है तब तक उनका धरना प्रदर्शन चलता रहेगा.
किसानों के आंदोलन को देखते हुए ईटीवी भारत की टीम ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पैतृक निवास स्थान रामनगर के किसानों से किसानों के मुद्दे पर बात की. इस दौरान किसानों ने कहा कि वह किसानों की इस लड़ाई में उनके साथ खड़े हैं. वह 26 जनवरी के पहले प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय में तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पत्र सौंपेंगे. यही नहीं गांव-गांव जाकर किसानों के हित के लिए जागरूक करने का काम करेंगे.
किसानों के लिए उठाई आवाज
1962 की लड़ाई के बाद 1965 में भारत में खाद्यानों की कमी को महसूस किया गया, जिसके चलते विदेशों से भी अनाज मंगाए गए. अनाज में गुणवत्ता की कमी होने के कारण जब लोगों ने अस्वीकार करना शुरू किया तो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों और नौजवानों का हौसला बुलंद करने के लिए पहली बार 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया.
पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने इसकी शुरुआत रामनगर स्थित अपने पैतृक आवास से की. लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन संग्रहालय के संरक्षक पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉ. सुभाष ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र ने बताया कि देश में खाद्यान्न को कमी को देखते हुए पिताजी ने इसकी शुरुआत घर में की. घर में सबसे पहले सात दिनों तक एक दिन अनाज का सेवन किया. वह देखना चाहते थे इससे परिवार या बच्चों को किसी प्रकार की समस्या तो नहीं खड़ी हो रही है. जब यह घर में सफल हुआ तो उसके बाद वह देश को संबोधित करते हुए दिन में एक समय भोजन करने की निवेदन किया. इसके बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बातों को जनता ने मानते हुए प्रयोग करना शुरू किया, जिससे देश में खाद्यान्न की कमी को रोका गया.
प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय का करेंगे घेराव
किसान छोटे लाल ने कहा कि किसानों के खिलाफ तीन कृषि कानूनों को लाया गया है, जिसको लेकर किसान दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. वे भी अपने किसान भाइयों के साथ खड़े हैं. छोटे लाल ने बताया कि 26 जनवरी के पहले हम लोग गांव-गांव जाकर किसानों को इस कृषि कानून के विषय में बताने का काम करेंगे और प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय पर घेराव भी किया जाएगा.
महात्मा गांधी किसानों को राजा मानते थे
किसान धर्मेंद्र यादव ने बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी किसानों को राजा मानते थे. यह सरकार किसानों के विरोध में काम कर रही है. सरकार जिस तरह से ये कानून लाई है, उससे यह साबित होता है कि सरकार को किसानों की चिंता नहीं है. हम इस आंदोलन में किसानों के साथ खड़े हैं. तन, मन और धन से हम लोग इस कृषि कानून के विरोध में गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय पर भी पहुंचा जाएगा.
एमएसपी हो निर्धारित
रामनगर के गंगोली गांव के निवासी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि जो आंदोलन चल रहा है वह किसानों के हित के लिए ही है. किसानों की मांग है कि किसानों का अनाज एमएसपी के रेटों पर ही खरीदा जाए, लेकिन सरकार इस बात को लिख कर देने के लिए तैयार नहीं है. कोई भी फैक्ट्री मालिक सामान बनाता है तो वो उसका रेट निर्धारित करता है, लेकिन किसान का कोई रेट निर्धारित नहीं है. 1800 के आसपास धान की दर तय की गई है और उसकी खरीदारी 1200-1100 के आसपास की जा रही है, जो किसानों को नुकसान हो रहा है, वो आगे जाकर और होगा. इसीलिए किसानों की एमएसपी निर्धारित की जाए.