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...न माइक, न लाइट और दूर-दूर तक गूंजते ये राम के संवाद

प्रदेश का वाराणसी शहर इतिहास के पन्नों में कई परंपराएं एकत्रित करे बैठा है. हर दिन यहां कुछ न कुछ न नया या ऐतिहासिक देखने को मिलता है. इसी कड़ी में काशी की एक परंपरा देखेने को मिली है. पढ़ें ईटीवी भारत की खास पेशकश.....

रामनगर की अनोखी रामलीला.
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Published : Sep 21, 2019, 1:14 PM IST

Updated : Sep 21, 2019, 1:28 PM IST

वाराणसी: दुनिया का सबसे पुराना शहर काशी जिसे धर्म, अध्यात्म और परंपराओं की नगरी कहा जाता है के इतिहास के पिटारे से हम एक ऐसी परंपरा खोज लाए हैं, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे. चकाचौंध भरी दुनिया, भारी-भरकम भीड़, ऊपर से गर्मी और चारों तरफ सन्नाटा. न बिजली की उम्मीद, न पंखे का आनंद और गर्मी में टपकता पसीना आपके होश उड़ा देने के लिए काफी है.

रामनगर की अनोखी रामलीला.

काशी का अनोखी रामलीला
हम बात कर रहे हैं काशी के मशहूर रामनगर की रामलीला की. यहां 1835 से ही एक अनोखी रामलीला होती है. रामलीला अनंत चतुर्दशी से प्रारंभ होकर अश्विनी पूर्णिमा तक एक महीने चलती है. एक महीने तक चलने वाली इस रामलीला में न लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है और न ही बिजली का.

इस रामलीला कमेटी में पात्र के बाद भी कई लोग पाठ करने वाले होते हैं, जिन्हें बिना माइक के हजारों लोगों की भीड़ तक संवाद पहुंचाना होता है. आधे किमी तक इनकी आवाज बिना माइक के ही सुनाई देती है. यहां रोशनी के लिए पेट्रोमैक्स का प्रयोग किया जाता है. जब चारों तरफ पेट्रोमैक्स लग जाते हैं तो बिजली की जरूरत ही नहीं होती.

165 वर्ष पुरान रामलीला
यह रामलीला 165 वर्ष पुरानी है. काशी की जनता पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाती चली आ रही है. आज भी काशी की जनता और महाराजा परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.

वाराणसी: दुनिया का सबसे पुराना शहर काशी जिसे धर्म, अध्यात्म और परंपराओं की नगरी कहा जाता है के इतिहास के पिटारे से हम एक ऐसी परंपरा खोज लाए हैं, जिसे सुनकर आप दंग रह जाएंगे. चकाचौंध भरी दुनिया, भारी-भरकम भीड़, ऊपर से गर्मी और चारों तरफ सन्नाटा. न बिजली की उम्मीद, न पंखे का आनंद और गर्मी में टपकता पसीना आपके होश उड़ा देने के लिए काफी है.

रामनगर की अनोखी रामलीला.

काशी का अनोखी रामलीला
हम बात कर रहे हैं काशी के मशहूर रामनगर की रामलीला की. यहां 1835 से ही एक अनोखी रामलीला होती है. रामलीला अनंत चतुर्दशी से प्रारंभ होकर अश्विनी पूर्णिमा तक एक महीने चलती है. एक महीने तक चलने वाली इस रामलीला में न लाउडस्पीकर का प्रयोग होता है और न ही बिजली का.

इस रामलीला कमेटी में पात्र के बाद भी कई लोग पाठ करने वाले होते हैं, जिन्हें बिना माइक के हजारों लोगों की भीड़ तक संवाद पहुंचाना होता है. आधे किमी तक इनकी आवाज बिना माइक के ही सुनाई देती है. यहां रोशनी के लिए पेट्रोमैक्स का प्रयोग किया जाता है. जब चारों तरफ पेट्रोमैक्स लग जाते हैं तो बिजली की जरूरत ही नहीं होती.

165 वर्ष पुरान रामलीला
यह रामलीला 165 वर्ष पुरानी है. काशी की जनता पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ाती चली आ रही है. आज भी काशी की जनता और महाराजा परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी

धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी यह शहर जितना पुराना है इसके इतिहास और परंपरा उतने ही आश्चर्यचकित करने वाले हैं। ऐसे में आज के दौर में जहां बिना इलेक्ट्रिसिटी के कुछ देर रहना मुश्किल है वैसे मैं यह शहर अपने लगभग डेढ़ सौ वर्ष से ज्यादा पुरानी परंपरा का उसी अंदाज में निर्वहन कर रहा है। हम बात कर रहे हैं 1835 में शुरू हुए विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला की।
रामलीला की शुरुआत अनंत चतुर्दशी से प्रारंभ होकर अश्विनी पूर्णिमा तक निरंतर 1 महीनों तक चलता है।



Body:आज हम जो आपको बताने वाले हैं आप उसे सुनकर जरूर चकित होंगे लेकिन यह शहरी ऐसा है जिसे आप जितना जानोगे उतना रहस्य से पर्दा उठता जाएगा। वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध रामलीला का नाम आपने जरूर सुना होगा यह रामलीला पूरे विश्व में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह सबसे अलग तरीके से होती हैं हम आपको बता दें कि इस रामलीला में आज भी लाउडस्पीकर और इलेक्ट्रिसिटी का प्रयोग नहीं होता। रामलीला कमेटी में पात्र के बाद भी कई लोग पाठ करने वाले होते हैं वह सारे संवादों को अपनी आवाज में पहुंचे हैं और इनके आवाज आधे किलोमीटर से दूर तक सुनाई देती है। वहीं रोशनी के लिए मिट्टी के तेल के गैस से बने पेट्रोमैक्स का प्रयोग किया जाता है एक अलग तरह की की या लाइन जब चारों तरफ लगा दिया जाता है तो वह किसी इलेक्ट्रिसिटी से कम नहीं लगती है। ऐसे में हम बात करें तो 165 वर्ष पुरानी यह जो परंपरा चली आ रही है आज भी काशी की जनता और महाराजा परिवार इस का निर्वहन कर रहा है।


Conclusion:रामलीला प्रेमी मदन साहनी ने बताया मैं पिछले 35 वर्षों से लगातार एक महीने चलने वाली रामलीला में आता हूं। जब मैं छोटा था तो अपने पिताजी के साथ आता था भगवान का यहां पर साक्षात्कार होता है यह रामलीला इसलिए खास है कि इस पूरे रामलीला में कहीं भी इलेक्ट्रिसिटी यानी बिजली का प्रयोग नहीं होता रामायण का पाठ करने वाले शहर में ऐसा पाठ करते हैं कि आज ही किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक सुनाई देता है वही लाइट के लिए मिट्टी के तेल के गैस का बना पेट्रोमैक्स को प्रयोग किया जाता है या आज से नहीं अंग्रेजों के जमाने से किया जाता है अंग्रेजों ने भी माना था कि यह रामलीला सचमुच अनोखी है।

बाईट :-मदन साहनी,लीला प्रेमी


नोट :-- यह स्पेशल स्टोरी विश्वनाथ सुमन सर के निर्देश पर किया गया है।

अशुतोष उपध्याय
9005099684
Last Updated : Sep 21, 2019, 1:28 PM IST
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