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बेटी पैदा होने पर वाराणसी के इस अस्पताल में होता है जश्न, डॉक्टर भी नहीं लेतीं फीस - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

देश में आज भी कई जगह बेटियों को कमतर आंका जाता है. बेटियों के जन्म पर लोग दुःखी हो जाते हैं, लेकिन इन सब के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बेटियों पर जान छिड़कते हैं. एक ऐसी ही डॉक्टर हैं शिप्रा धर, जो अपने नर्सिंग में बेटी पैदा होने पर शुल्क नहीं लेती हैं. पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Mar 8, 2021, 12:04 PM IST

वाराणसी: पीएम मोदी के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के अभियान को उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी की लेडी डॉक्टर शिप्रा धर सच साबित कर रही हैं. शिप्रा शक्ति स्वरूपा बेटियों को इस दुनिया में लाने में अहम भूमिका निभाती हैं. शिप्रा अपने नर्सिंग अस्पताल में डिलीवरी के दौरान बेटी होने पर कोई शुल्क नहीं लेतीं. इतना ही नहीं, बेटी पैदा होने पर परिजनों को और पूरे स्टाफ को मिठाई बांटकर जश्न भी मनाती हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

410 बेटियों की कराई नि:शुल्क डिलीवरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पहड़िया इलाके में डॉक्टर शिप्रा धर नर्सिंग होम संचालित करती हैं. शिप्रा धर साल 2014 से इस मुहिम में जुटी हैं. पति डॉ. एमके श्रीवास्तव की मदद से वह इस नेक कार्य को अंजाम दे रही हैं. डॉ. शिप्रा ने बीएचयू से एमबीबीएस और एमडी किया है. पिछले कई सालों से वह वाराणसी में काम कर रही हैं. अब तक उन्होंने लगभग 410 बेटियों की निःशुल्क डिलीवरी कराई है.

पीएम मोदी दे चुके हैं बधाई.
पीएम मोदी दे चुके हैं बधाई.

पति के साथ ने बढ़ाई हिम्मत
डॉ. शिप्रा ने बताया कि उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत 25 जुलाई 2014 में की थी. वह आए दिन अपने अस्पताल में देखती थीं कि जब भी बेटी पैदा होती है तो लोग मायूस हो जाते थे. वहीं दूसरी ओर बेटा पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती थीं. इन सभी स्थितियों को देखकर डॉ. शिप्रा ने बेटी बचाओ अभियान को नया स्वरूप देने का सोचा.

अपने पति डॉ. एमके श्रीवास्तव के सहयोग से उन्होंने बेटियों की डिलीवरी निःशुल्क करने की शुरुआत की. कन्या भ्रूण हत्या रोकने और बेटियों के जन्म को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बेटी नहीं है बोझ, बदलो अपनी सोच मुहिम चलाई है. नर्सिंग होम में बच्ची के पैदा होने पर वह पूरे नर्सिंग होम में मिठाई बांटती हैं.

बच्चियों को निःशुल्क शिक्षा देने के साथ उन्हें बनाती हैं आत्मनिर्भर
डॉ. शिप्रा का कहना है कि लोगों का बच्चियों के प्रति अभी भी नकारात्मक सोच है. जब लोगों को बेटी पैदा होती है तो लोग मायूस हो जाते हैं. गरीब वर्ग के लोग तो रोने लगते हैं. शिप्रा इसी सोच को बदलने की कोशिश कर रही हैं. कहा कि बहुत सारी बच्चियां कम उम्र में दूसरों के घर जाकर काम करती हैं. इसके बाद उन्होंने छोटी-छोटी बच्चियों को बुलाकर अपने यहां पढ़ाना शुरू किया. साथ ही बड़ी बच्चियों के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत की. जहां पर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई इत्यादि तमाम गुण सिखाए जाते हैं, ताकि लड़कियां आत्मनिर्भर बन सकें.

अनाज बैंक का भी करती हैं संचालन
डॉ. शिप्रा धर बताती हैं कि बच्चों और परिवार को कुपोषण न हो, इसके लिए वह अनाज बैंक का संचालन करती हैं. वह लगभग 40 अति निर्धन, विधवा और असहाय परिवारों को महीने की एक तारीख को अनाज उपलब्ध कराती हैं. इसमें प्रत्येक को 10 किलो, 5 किलो गेहूं और चावल दिया जाता है. होली, दीपावली पर इन परिवारों को वस्त्र उपहार और मिठाई भी बांटा जाता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी की है सराहना
डॉ. शिप्रा धर के इस नेक काम की सराहना खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी की है. वाराणसी में अपने दौरे के दौरान पीएम मोदी ने डॉ. शिप्रा धर को इस काम के लिए बधाई दी थी. साथ ही पीएम मोदी ने देश के सभी डॉक्टरों से अपील किया कि 9 तारीख को पैदा होने वाली बेटी के परिजनों से किसी भी प्रकार का कोई चार्ज न लिया जाए. बल्कि उन्हें निःशुल्क सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाए.

वाराणसी: पीएम मोदी के 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के अभियान को उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी की लेडी डॉक्टर शिप्रा धर सच साबित कर रही हैं. शिप्रा शक्ति स्वरूपा बेटियों को इस दुनिया में लाने में अहम भूमिका निभाती हैं. शिप्रा अपने नर्सिंग अस्पताल में डिलीवरी के दौरान बेटी होने पर कोई शुल्क नहीं लेतीं. इतना ही नहीं, बेटी पैदा होने पर परिजनों को और पूरे स्टाफ को मिठाई बांटकर जश्न भी मनाती हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

410 बेटियों की कराई नि:शुल्क डिलीवरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पहड़िया इलाके में डॉक्टर शिप्रा धर नर्सिंग होम संचालित करती हैं. शिप्रा धर साल 2014 से इस मुहिम में जुटी हैं. पति डॉ. एमके श्रीवास्तव की मदद से वह इस नेक कार्य को अंजाम दे रही हैं. डॉ. शिप्रा ने बीएचयू से एमबीबीएस और एमडी किया है. पिछले कई सालों से वह वाराणसी में काम कर रही हैं. अब तक उन्होंने लगभग 410 बेटियों की निःशुल्क डिलीवरी कराई है.

पीएम मोदी दे चुके हैं बधाई.
पीएम मोदी दे चुके हैं बधाई.

पति के साथ ने बढ़ाई हिम्मत
डॉ. शिप्रा ने बताया कि उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत 25 जुलाई 2014 में की थी. वह आए दिन अपने अस्पताल में देखती थीं कि जब भी बेटी पैदा होती है तो लोग मायूस हो जाते थे. वहीं दूसरी ओर बेटा पैदा होने पर खुशियां मनाई जाती थीं. इन सभी स्थितियों को देखकर डॉ. शिप्रा ने बेटी बचाओ अभियान को नया स्वरूप देने का सोचा.

अपने पति डॉ. एमके श्रीवास्तव के सहयोग से उन्होंने बेटियों की डिलीवरी निःशुल्क करने की शुरुआत की. कन्या भ्रूण हत्या रोकने और बेटियों के जन्म को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बेटी नहीं है बोझ, बदलो अपनी सोच मुहिम चलाई है. नर्सिंग होम में बच्ची के पैदा होने पर वह पूरे नर्सिंग होम में मिठाई बांटती हैं.

बच्चियों को निःशुल्क शिक्षा देने के साथ उन्हें बनाती हैं आत्मनिर्भर
डॉ. शिप्रा का कहना है कि लोगों का बच्चियों के प्रति अभी भी नकारात्मक सोच है. जब लोगों को बेटी पैदा होती है तो लोग मायूस हो जाते हैं. गरीब वर्ग के लोग तो रोने लगते हैं. शिप्रा इसी सोच को बदलने की कोशिश कर रही हैं. कहा कि बहुत सारी बच्चियां कम उम्र में दूसरों के घर जाकर काम करती हैं. इसके बाद उन्होंने छोटी-छोटी बच्चियों को बुलाकर अपने यहां पढ़ाना शुरू किया. साथ ही बड़ी बच्चियों के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत की. जहां पर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई इत्यादि तमाम गुण सिखाए जाते हैं, ताकि लड़कियां आत्मनिर्भर बन सकें.

अनाज बैंक का भी करती हैं संचालन
डॉ. शिप्रा धर बताती हैं कि बच्चों और परिवार को कुपोषण न हो, इसके लिए वह अनाज बैंक का संचालन करती हैं. वह लगभग 40 अति निर्धन, विधवा और असहाय परिवारों को महीने की एक तारीख को अनाज उपलब्ध कराती हैं. इसमें प्रत्येक को 10 किलो, 5 किलो गेहूं और चावल दिया जाता है. होली, दीपावली पर इन परिवारों को वस्त्र उपहार और मिठाई भी बांटा जाता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी की है सराहना
डॉ. शिप्रा धर के इस नेक काम की सराहना खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी की है. वाराणसी में अपने दौरे के दौरान पीएम मोदी ने डॉ. शिप्रा धर को इस काम के लिए बधाई दी थी. साथ ही पीएम मोदी ने देश के सभी डॉक्टरों से अपील किया कि 9 तारीख को पैदा होने वाली बेटी के परिजनों से किसी भी प्रकार का कोई चार्ज न लिया जाए. बल्कि उन्हें निःशुल्क सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाए.

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