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30 नवंबर को काशी में मनाई जाएगी देव दिवाली, जानिए इसकी कथा

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Published : Nov 28, 2020, 6:43 PM IST

वैसे तो सनातन धर्म में पर्व और त्योहारों का विशेष महत्व है, लेकिन दिवाली का त्योहार इन सभी में विशेष और सर्वोत्तम माना जाता है. दिवाली पर दीयों कि रोशनी से हर कोई अपने जीवन में फैले अंधकार को दूर करना चाहता है. धर्म नगरी वाराणसी में दिवाली के 15 दिन बाद देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है. जानिए इसके मनाए जाने की कथा...

देव दिवाली.
देव दिवाली.

वाराणसी: दिवाली भले ही मानव समाज की तरफ से मनाया जाने वाला पर्व हो, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली देव दिवाली खुद देवताओं के द्वारा काशी में मनाया जाने वाला महाउत्सव है. जिसका साक्षी हर कोई बनना चाहता है. आखिर क्यों मनाई जाती है यह देव दिवाली और क्या है इस देव दिवाली का धार्मिक महत्व जानिए आप भी...

देव दिवाली की जानकारी देते ज्योतिषाचार्य.

भगवान कार्तिकेय और भोलेनाथ से जुड़ी है कथा
दरअसल कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली देव दिवाली देवताओं के द्वारा मनाए जाने वाले दिवाली पर्व से जुड़ा हुआ है. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार काशी में भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय की तरफ से किए गए तारकासुर के वध के बाद दीपोत्सव की शुरुआत हुई, लेकिन देवताओं द्वारा दिवाली का पर्व धूमधाम के साथ काशी में तब मनाया गया. जब तारकासुर के 3 पुत्रों त्रिपुरासुर का अंत भगवान शिव ने खुद किया.

भगवान शिव ने दिलाई आतंक से मुक्ति
पंडित पवन त्रिपाठी की माने तो शास्त्रों में पौराणिक कथा के अनुसार एक समय तीनों लोक तारकासुर के तीन पुत्रों के आतंक से परेशान था. इन तीन पुत्रों में तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. इन 3 दिनों के आतंक से पृथ्वी लोक देव लोक और पाताल लोक तीनों परेशान हो चुके थे. भगवान ब्रह्मा से मिले आशीर्वाद के फलस्वरूप इन तीनों का वध एक साथ एक बाण से एक ही वक्त में एक सिधाई में आने पर किया जा सकता था. जिसकी वजह से इनका वध हो पाना मुश्किल था, लेकिन भगवान शिव ने धनुष से बाण के जरिए इन तीनों का वध कर देव मानव सभी को इनके आतंक से मुक्ति दिलाई थी.

जल रहे दीयों को देखने से ही दूर होते हैं कष्ट
मान्यता है कि इन तीन दैत्यों के वध के बाद देवताओं ने भगवान शिव को धन्यवाद देने के लिए काशी के गंगा घाटों पर शिव मंदिरों में, देवालयों में दीपक जलाए थे. जिसके बाद से यह दीपोत्सव देव दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की नगरी काशी में भगवान शंकर को धन्यवाद स्वरूप देवताओं की तरफ से मनाई जाने वाली इस दिवाली के जलते हुए दिए को देखने मात्र से सारे संकटों का नाश होता है.

मुक्ति की राह प्रशस्त होती है और भगवान शंकर का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. क्योंकि जिन देवताओं के लिए दिए जलाते हैं. उससे जो आशीर्वाद प्राप्त होता है. उससे कहीं ज्यादा आशीर्वाद उन देवताओं की तरफ से जलाए जाने वाले दीयों को देखने या उनके दर्शन मात्र से ही प्राप्त होता है. यानी कार्तिक पूर्णिमा पर काशी में मनाई जाने वाली देव दिवाली पर जल रहे तीनों को सिर्फ देखने मात्र से ही सारे संकटों का नाश संभव है.

वाराणसी: दिवाली भले ही मानव समाज की तरफ से मनाया जाने वाला पर्व हो, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली देव दिवाली खुद देवताओं के द्वारा काशी में मनाया जाने वाला महाउत्सव है. जिसका साक्षी हर कोई बनना चाहता है. आखिर क्यों मनाई जाती है यह देव दिवाली और क्या है इस देव दिवाली का धार्मिक महत्व जानिए आप भी...

देव दिवाली की जानकारी देते ज्योतिषाचार्य.

भगवान कार्तिकेय और भोलेनाथ से जुड़ी है कथा
दरअसल कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली देव दिवाली देवताओं के द्वारा मनाए जाने वाले दिवाली पर्व से जुड़ा हुआ है. इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार काशी में भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय की तरफ से किए गए तारकासुर के वध के बाद दीपोत्सव की शुरुआत हुई, लेकिन देवताओं द्वारा दिवाली का पर्व धूमधाम के साथ काशी में तब मनाया गया. जब तारकासुर के 3 पुत्रों त्रिपुरासुर का अंत भगवान शिव ने खुद किया.

भगवान शिव ने दिलाई आतंक से मुक्ति
पंडित पवन त्रिपाठी की माने तो शास्त्रों में पौराणिक कथा के अनुसार एक समय तीनों लोक तारकासुर के तीन पुत्रों के आतंक से परेशान था. इन तीन पुत्रों में तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली को त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था. इन 3 दिनों के आतंक से पृथ्वी लोक देव लोक और पाताल लोक तीनों परेशान हो चुके थे. भगवान ब्रह्मा से मिले आशीर्वाद के फलस्वरूप इन तीनों का वध एक साथ एक बाण से एक ही वक्त में एक सिधाई में आने पर किया जा सकता था. जिसकी वजह से इनका वध हो पाना मुश्किल था, लेकिन भगवान शिव ने धनुष से बाण के जरिए इन तीनों का वध कर देव मानव सभी को इनके आतंक से मुक्ति दिलाई थी.

जल रहे दीयों को देखने से ही दूर होते हैं कष्ट
मान्यता है कि इन तीन दैत्यों के वध के बाद देवताओं ने भगवान शिव को धन्यवाद देने के लिए काशी के गंगा घाटों पर शिव मंदिरों में, देवालयों में दीपक जलाए थे. जिसके बाद से यह दीपोत्सव देव दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की नगरी काशी में भगवान शंकर को धन्यवाद स्वरूप देवताओं की तरफ से मनाई जाने वाली इस दिवाली के जलते हुए दिए को देखने मात्र से सारे संकटों का नाश होता है.

मुक्ति की राह प्रशस्त होती है और भगवान शंकर का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. क्योंकि जिन देवताओं के लिए दिए जलाते हैं. उससे जो आशीर्वाद प्राप्त होता है. उससे कहीं ज्यादा आशीर्वाद उन देवताओं की तरफ से जलाए जाने वाले दीयों को देखने या उनके दर्शन मात्र से ही प्राप्त होता है. यानी कार्तिक पूर्णिमा पर काशी में मनाई जाने वाली देव दिवाली पर जल रहे तीनों को सिर्फ देखने मात्र से ही सारे संकटों का नाश संभव है.

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