वाराणसी: विश्व प्रसिद्ध देव दीपावली में गंगा महाआरती महोत्सव इस वर्ष 7 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन कार्तिक पूर्णिमा के पावन दिवस का अपरान्ह 3:54 बजे से शुभारंभ हो रहा है. अगले दिन 8 नवंबर दिन मंगलवार को अपरान्ह 3:53 बजे तक मुहूर्त है. इसी दिन वैकुंठ चर्तुदशी के दिन ज्ञानवापी स्थित मंदिर में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्ष 1734 में बाबा विश्वनाथ की स्थापना की थी. इस दिन सोमवार का दिन है. अगले दिन 8 नवंबर मंगलवार को चंद्रग्रहण है. उस काल में भोग आरती सम्भव नहीं है. इसलिए 7 नवंबर को देव दीपावली और गंगा आरती महोत्सव मनाया जाएगा.
यह निर्णय काशी के धर्माचार्य, संत-महात्मा ज्योविषविदों, काशी विद्वत परिषद और अन्य विशिष्टजनों से विचार-विमर्श के बाद लिया गया है. यह जानकारी केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष आचार्य वागीश दत्त मिश्र ने दी है. आचार्य वागीश दत्त मिश्र ने बताया कि चंद्रग्रहण के दिन हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं. सुबह से अगले दिन तक हजारों लोग गंगा के तट पर ही रहते हैं.
उस दिन सूतक काल सुबह 10 बजे से शुरू हो रहा है और इसका मोक्ष शाम 6:19 बजे हो रहा है. उसके बाद भी स्नान, ध्यान और दान होता रहता है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु घाट पर ही आश्रय लेते हैं. शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में न तो आरती कर सकते हैं और न ही भोग लगा सकते हैं. आचार्य वागीश दत्त मिश्र बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा हम सबके लिए सर्वोपरि है. जितना जरुरी देव दीपावली को उत्साह से मनाना है, उससे जरूरी महोत्सव और चंद्रग्रहण में शामिल होने वाले भारतवासियों और विदेशी मेहमानों की सुरक्षा है.
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कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाने के लिए पहले से ही 7 किलोमीटर के क्षेत्र में 84 घाटों की धुलाई-सफाई का कार्य शुरू हो जाता है. असंख्य दीपों की धुलाई कर उन्हें सुखाकर उसमें बत्ती और सरसों का तेल डालकर घाटों पर बेहद भव्य तरीके से सजाया जाता है. शाम को एक साथ सारे दीप जलाए जाते हैं. उसी दिन शुभ मुहूर्त में गंगा की महाआरती होती है. ऐसी मनोहारी छवि को देखने के लिए पच्चीसों लाख लोग गंगा तट पर उमड़ते हैं. इसलिए देव दीपावली अच्छे से सम्पन्न हों, इसके पूरे प्रयास हैं.
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