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वाराणसी शहर दक्षिणी विधानसभा: पिछले 30 साल से इस सीट पर काबिज है बीजेपी, इस बार भी यहां खिलेगा कमल !

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर राजनीतिक दलों ने हर जिले में बिसात बिछानी शुरू कर दी है. आइये जानते हैं वाराणसी की शहर दक्षिणी विधानसभा में चुनावी समीकरण क्या रहेगा.

वाराणसी शहर दक्षिणी विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.
वाराणसी शहर दक्षिणी विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट.
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Published : Oct 2, 2021, 10:32 PM IST

वाराणसी: विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर ईटीवी भारत अलग-अलग विधानसभा की वर्तमान स्थिति, राजनैतिक परिदृश्य और उस सीट के इतिहास से आपको रूबरू करा रहे हैं. आज हम आपको वाराणसी की उस सबसे पुरानी और लोकप्रिय सीट पर लेकर चल रहे हैं, जहां बीजेपी का एक या दो नहीं बल्कि 30 सालों से ज्यादा वक्त से कब्जा रहा है. वह है शहर दक्षिणी विधानसभा, या यूं कहें कि असली बनारस इसी विधानसभा में ही बसता है. वाराणसी में आने वाले प्रमुख मंदिरों में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, माता अन्नपूर्णा मंदिर, बाबा काल भैरव मंदिर और गंगा घाट के अलावा अधिकांश गलियां शहर दक्षिणी विधानसभा में ही आती हैं. इसलिए यह विधानसभा बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन इस विधानसभा की कुछ और खासियत भी है. वह खासियत है यहां के वोटर्स का मिजाज. लंबे वक्त से यहां के वोटर्स पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के प्रति ईमानदार रहे हैं, लेकिन इस बार क्या होगा और बीजेपी का पुराना चेहरा ही क्या फिर से लोगों के दिलों पर राज करेगा या फिर किसी नए को मौका मिलेगा, इन्हीं सवालों के जवाब के साथ हम शहर दक्षिणी विधानसभा की डेमोग्राफिक आपके सामने रख रहे हैं.

हर नेता के निशाने पर होती है बनारस की यह सीट

शहर दक्षिणी विधानसभा राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि काशी आने वाला कोई भी बड़ा नेता बिना शहर दक्षिणी विधानसभा में प्रवेश किए शहर के भाव और मिजाज को समझ ही नहीं सकता है. चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव हों या फिर प्रियंका गांधी हर कोई शहर दक्षिणी विधानसभा से ही बनारस की अन्य विधानसभाओं में जीत की जद्दोजहद में जुटता है, क्योंकि यहां आने के बाद बाबा विश्वनाथ और काल भैरव मंदिर में दर्शन पूजन के बाद ही हर नेता का काशी में खेल शुरू हो जाता है.

घाटों का शहर
घाटों का शहर

इसे भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2022: खिलाड़ियों में वर्तमान सरकार से दिखी नाराजगी, आने वाली सरकार से उम्मीद

पहले तो इतने वोटर अब बढ़ गए इतने

वर्तमान समय में शहर दक्षिणी विधानसभा में 302887 वोटर्स हैं. पहले की अगर बात की जाए तो यह संख्या 3,01,243 थी लेकिन, हाल ही में इपिक वोटर के जरिए लगभग 1644 नए वोटर्स इस विधानसभा में शामिल हैं. इन वोटर्स के जातीय गणित की यदि बातचीत की जाए तो शहर दक्षिणी विधानसभा में ब्राह्मण वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है. लगभग 25,000 से ज्यादा ब्राह्मण वोटर यहां पर बड़ा खेल बदलने की क्षमता रखते हैं. उसके बाद यहां पर मिश्रित आबादी के मामले में मुस्लिम वोटर की संख्या भी 14,000 से ज्यादा है. इतना ही नहीं शहर दक्षिणी विधानसभा में वैश्य, गुजराती, बंगाली, चौरसिया और पटेल के अलावा राजपूत वोटर्स भी अच्छी संख्या में है. यही वजह है कि यह विधानसभा सीट लंबे वक्त से भारतीय जनता पार्टी की सबसे मजबूत सीट मानी जाती रही है.

काशी विश्वनाथ मंदिर.
काशी विश्वनाथ मंदिर.

बदला प्रत्याशी तो खुद पीएम ने संभाला मोर्चा

इस सीट से 1 बार नहीं बल्कि 7 बार भारतीय जनता पार्टी ने एक ही प्रत्याशी श्यामदेव राय चौधरी पर अपना भरोसा जताया और उन्होंने लगातार एक के बाद एक जीत हासिल की. 2017 के विधानसभा चुनाव में अचानक से 7 बार के विधायक श्यामदेव राय चौधरी का जब टिकट कटा तो सियासी गणित गड़बड़ाने लगा. उस समय बीजेपी ने डॉ. नीलकंठ तिवारी पर भरोसा जताया और वकालत करने वाले डॉ. नीलकंठ तिवारी को जब बीजेपी का टिकट मिला तो अंदरूनी राजनीति भी शुरू हो गई, क्योंकि श्यामदेव राय चौधरी के समर्थकों का बीजेपी को विरोध झेलना पड़ रहा था. शायद यही वजह थी कि उस समय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी की इस सीट की कमान संभाली और 3 दिनों तक बनारस में रहकर चुनाव से पहले पूरा का पूरा सियासी गणित ही बदलकर रख दिया. शहर दक्षिणी विधानसभा में रोड शो बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले नाराज श्यामदेव राय चौधरी का हाथ पकड़कर उन्हें मंदिर तक लेकर जाना और फिर सब कुछ पलट जाना साबित. फिर से इस सीट पर आठवीं बार भी कमल ही खिला.

गंगा घाट
गंगा घाट

इसे भी पढ़ें- यूपी विधानसभा चुनाव 2022: गूंगी-बहरी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए खेला जरूर होई : पूर्व सपा विधायक

ऐतिहासिक है यह सीट

फिलहाल शहर दक्षिणी विधानसभा अपने आप में काफी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक विधानसभा मानी जाती है. इसकी बड़ी वजह यह है कि इस विधानसभा से ही आजादी के बाद भारतीय गणतंत्र में उत्तर प्रदेश को पहला मुख्यमंत्री मिला था. आजादी से पहले यूनाइटेड प्रोविंशियल के सीएम की कुर्सी शहर दक्षिणी से जीते हुए विधायक डॉ. संपूर्णानंद को मिली थी. जिसके बाद काशी के विकास की नई रूपरेखा खींची जाने लगी. डॉ. संपूर्णानंद शहर दक्षिणी से दो बार विधायक रहे और उन्होंने कभी भी क्षेत्र में चुनाव प्रचार भी नहीं किया, लेकिन काशी के शहर दक्षिणी विधानसभा के लोगों ने उनको खूब प्यार दिया. हालांकि बाद में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और वैचारिक मतभेद की वजह से संपूर्णानंद को प्रदेश की राजनीति से दूर होना पड़ा.

मां गंगा वाराणसी
मां गंगा वाराणसी

कांग्रेस के बाद सीपीआई और फिर कांग्रेस

इस सीट पर शुरुआत में 1951 से लेकर 1957 तक संपूर्णानंद के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले सीपीआई के रुस्तम को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन 1967 में इस विधानसभा में पहली बार सीपीआई से रुस्तम की जीत हुई, लेकिन 5 साल बाद फिर से हुए चुनावों में जनसंघ के सचिंद्र नाथ बक्शी ने पहली बार इस विधानसभा में भगवा झंडा लहराया. इसके बाद 1980 और 85 में कांग्रेस के कैलाश नाथ टंडन और फिर कांग्रेस के ही डॉक्टर रजनीकांत दत्ता यहां पर विधायक चुने गए.

इसे भी पढ़ें- वाराणसी अजगरा विधानसभा के विधायक जी भइलन ईद के चांद, वोट मांगे खातिर अब कैसे दिखइहन आपन मुंह

1989 से बीजेपी का कब्जा

इसके बाद शहर दक्षिणी की राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि 1989 से लेकर 2017 तक इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 7 बार श्यामदेव राय चौधरी भी विधायक रहे. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनका टिकट कटा और फिर डॉ. नीलकंठ तिवारी ने यहां से जीत हासिल की, लेकिन इस बार का चुनावी समीकरण क्या होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा, क्योंकि शहर दक्षिणी विधानसभा में स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत तमाम विकास कार्य चल रहे हैं. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया जा रहा है. कुल मिलाकर चुनावों से पहले शहर दक्षिणी विधानसभा का एक बदला स्वरूप लोगों के सामने रखकर भारतीय जनता पार्टी इस पुरानी सीट से बनारस की आठों विधानसभाओं पर अपना परचम लहराने की तैयारी कर रही है.

वाराणसी: विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर ईटीवी भारत अलग-अलग विधानसभा की वर्तमान स्थिति, राजनैतिक परिदृश्य और उस सीट के इतिहास से आपको रूबरू करा रहे हैं. आज हम आपको वाराणसी की उस सबसे पुरानी और लोकप्रिय सीट पर लेकर चल रहे हैं, जहां बीजेपी का एक या दो नहीं बल्कि 30 सालों से ज्यादा वक्त से कब्जा रहा है. वह है शहर दक्षिणी विधानसभा, या यूं कहें कि असली बनारस इसी विधानसभा में ही बसता है. वाराणसी में आने वाले प्रमुख मंदिरों में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, माता अन्नपूर्णा मंदिर, बाबा काल भैरव मंदिर और गंगा घाट के अलावा अधिकांश गलियां शहर दक्षिणी विधानसभा में ही आती हैं. इसलिए यह विधानसभा बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन इस विधानसभा की कुछ और खासियत भी है. वह खासियत है यहां के वोटर्स का मिजाज. लंबे वक्त से यहां के वोटर्स पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के प्रति ईमानदार रहे हैं, लेकिन इस बार क्या होगा और बीजेपी का पुराना चेहरा ही क्या फिर से लोगों के दिलों पर राज करेगा या फिर किसी नए को मौका मिलेगा, इन्हीं सवालों के जवाब के साथ हम शहर दक्षिणी विधानसभा की डेमोग्राफिक आपके सामने रख रहे हैं.

हर नेता के निशाने पर होती है बनारस की यह सीट

शहर दक्षिणी विधानसभा राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि काशी आने वाला कोई भी बड़ा नेता बिना शहर दक्षिणी विधानसभा में प्रवेश किए शहर के भाव और मिजाज को समझ ही नहीं सकता है. चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव हों या फिर प्रियंका गांधी हर कोई शहर दक्षिणी विधानसभा से ही बनारस की अन्य विधानसभाओं में जीत की जद्दोजहद में जुटता है, क्योंकि यहां आने के बाद बाबा विश्वनाथ और काल भैरव मंदिर में दर्शन पूजन के बाद ही हर नेता का काशी में खेल शुरू हो जाता है.

घाटों का शहर
घाटों का शहर

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पहले तो इतने वोटर अब बढ़ गए इतने

वर्तमान समय में शहर दक्षिणी विधानसभा में 302887 वोटर्स हैं. पहले की अगर बात की जाए तो यह संख्या 3,01,243 थी लेकिन, हाल ही में इपिक वोटर के जरिए लगभग 1644 नए वोटर्स इस विधानसभा में शामिल हैं. इन वोटर्स के जातीय गणित की यदि बातचीत की जाए तो शहर दक्षिणी विधानसभा में ब्राह्मण वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है. लगभग 25,000 से ज्यादा ब्राह्मण वोटर यहां पर बड़ा खेल बदलने की क्षमता रखते हैं. उसके बाद यहां पर मिश्रित आबादी के मामले में मुस्लिम वोटर की संख्या भी 14,000 से ज्यादा है. इतना ही नहीं शहर दक्षिणी विधानसभा में वैश्य, गुजराती, बंगाली, चौरसिया और पटेल के अलावा राजपूत वोटर्स भी अच्छी संख्या में है. यही वजह है कि यह विधानसभा सीट लंबे वक्त से भारतीय जनता पार्टी की सबसे मजबूत सीट मानी जाती रही है.

काशी विश्वनाथ मंदिर.
काशी विश्वनाथ मंदिर.

बदला प्रत्याशी तो खुद पीएम ने संभाला मोर्चा

इस सीट से 1 बार नहीं बल्कि 7 बार भारतीय जनता पार्टी ने एक ही प्रत्याशी श्यामदेव राय चौधरी पर अपना भरोसा जताया और उन्होंने लगातार एक के बाद एक जीत हासिल की. 2017 के विधानसभा चुनाव में अचानक से 7 बार के विधायक श्यामदेव राय चौधरी का जब टिकट कटा तो सियासी गणित गड़बड़ाने लगा. उस समय बीजेपी ने डॉ. नीलकंठ तिवारी पर भरोसा जताया और वकालत करने वाले डॉ. नीलकंठ तिवारी को जब बीजेपी का टिकट मिला तो अंदरूनी राजनीति भी शुरू हो गई, क्योंकि श्यामदेव राय चौधरी के समर्थकों का बीजेपी को विरोध झेलना पड़ रहा था. शायद यही वजह थी कि उस समय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी की इस सीट की कमान संभाली और 3 दिनों तक बनारस में रहकर चुनाव से पहले पूरा का पूरा सियासी गणित ही बदलकर रख दिया. शहर दक्षिणी विधानसभा में रोड शो बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले नाराज श्यामदेव राय चौधरी का हाथ पकड़कर उन्हें मंदिर तक लेकर जाना और फिर सब कुछ पलट जाना साबित. फिर से इस सीट पर आठवीं बार भी कमल ही खिला.

गंगा घाट
गंगा घाट

इसे भी पढ़ें- यूपी विधानसभा चुनाव 2022: गूंगी-बहरी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए खेला जरूर होई : पूर्व सपा विधायक

ऐतिहासिक है यह सीट

फिलहाल शहर दक्षिणी विधानसभा अपने आप में काफी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक विधानसभा मानी जाती है. इसकी बड़ी वजह यह है कि इस विधानसभा से ही आजादी के बाद भारतीय गणतंत्र में उत्तर प्रदेश को पहला मुख्यमंत्री मिला था. आजादी से पहले यूनाइटेड प्रोविंशियल के सीएम की कुर्सी शहर दक्षिणी से जीते हुए विधायक डॉ. संपूर्णानंद को मिली थी. जिसके बाद काशी के विकास की नई रूपरेखा खींची जाने लगी. डॉ. संपूर्णानंद शहर दक्षिणी से दो बार विधायक रहे और उन्होंने कभी भी क्षेत्र में चुनाव प्रचार भी नहीं किया, लेकिन काशी के शहर दक्षिणी विधानसभा के लोगों ने उनको खूब प्यार दिया. हालांकि बाद में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और वैचारिक मतभेद की वजह से संपूर्णानंद को प्रदेश की राजनीति से दूर होना पड़ा.

मां गंगा वाराणसी
मां गंगा वाराणसी

कांग्रेस के बाद सीपीआई और फिर कांग्रेस

इस सीट पर शुरुआत में 1951 से लेकर 1957 तक संपूर्णानंद के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले सीपीआई के रुस्तम को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन 1967 में इस विधानसभा में पहली बार सीपीआई से रुस्तम की जीत हुई, लेकिन 5 साल बाद फिर से हुए चुनावों में जनसंघ के सचिंद्र नाथ बक्शी ने पहली बार इस विधानसभा में भगवा झंडा लहराया. इसके बाद 1980 और 85 में कांग्रेस के कैलाश नाथ टंडन और फिर कांग्रेस के ही डॉक्टर रजनीकांत दत्ता यहां पर विधायक चुने गए.

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1989 से बीजेपी का कब्जा

इसके बाद शहर दक्षिणी की राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि 1989 से लेकर 2017 तक इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 7 बार श्यामदेव राय चौधरी भी विधायक रहे. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनका टिकट कटा और फिर डॉ. नीलकंठ तिवारी ने यहां से जीत हासिल की, लेकिन इस बार का चुनावी समीकरण क्या होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा, क्योंकि शहर दक्षिणी विधानसभा में स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत तमाम विकास कार्य चल रहे हैं. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया जा रहा है. कुल मिलाकर चुनावों से पहले शहर दक्षिणी विधानसभा का एक बदला स्वरूप लोगों के सामने रखकर भारतीय जनता पार्टी इस पुरानी सीट से बनारस की आठों विधानसभाओं पर अपना परचम लहराने की तैयारी कर रही है.

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