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वाराणसी : मोदी सरकार के पांच सालों में कितना बदला बुनकरों का हाल - up news

वाराणसी में पीएम मोदी की ओर से बुनकरों के लिए तमाम योजनाएं शुरू की गईं. इसके बाद भी पिछले पांच सालों में बुनकरों के हालात में सुधार नहीं हुआ. वाराणसी के बुनकरों की माने तो बुनकरों के लिए आए सरकारी पैसे बिचौलियों के द्वारा हड़प लिए जाते रहे हैं.

पांच सालों में कितनी बदली बुनकरों की तस्वीर, देखें रिपोर्ट.
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Published : Apr 20, 2019, 11:46 PM IST

वाराणसी: हथकरघे के ताने-बाने पर जिंदगी के सपने को बुनने वाले बुनकर इस बार भी सरकारी वादों का शिकार हो गए या सच में मोदी सरकार की मौजूदगी में यहां के बुनकरों को मिला. यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या वास्तव में बनारस के बुनकरों के 5 सालों में हालात सुधरे हैं या फिर उसी तरह आज भी बनारस के बुनकर परेशान हैं जैसे पिछली सरकारों में हुआ करते थे.

बनारसी साड़ी उद्योग का सालाना कारोबार 10000 करोड़ से ज्यादा का है. तीन लाख से ज्यादा बुनकर परिवार बनारस में इस उद्योग से जुड़े हैं. वहीं बनारस के जेतपुरा, पीली कोठी, बड़ी बाजार, सरिया शक्कर तालाब, नक्खीघाट, लोहता, कोटवा समेत आधा दर्जन से ज्यादा इलाके ऐसे हैं, जहां पर हर वक्त साड़ी बनाने में जुटे बुनकर मिल जाएंगे.

पांच सालों में कितनी बदली बुनकरों की तस्वीर, देखें रिपोर्ट.

वहीं बुनकरों के लिए सरकार की ओर से चलाई गए योजनाओं को लेकर यहां के बुनकरों का कहना है कि मोदी सरकार में उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला, बल्कि हालात और भी बिगड़ गए. बनारस के लल्लापुरा इलाके के रहने वाले बहरुद्दीन अंसारी का कहना है कि हालात कुछ भी नहीं बदले. पीएम मोदी ने हजारों करोड़ रुपये की सौगात के रूप में बुनकरों को दीनदयाल हस्तकला संकुल तो दे दिया, लेकिन यह संकुल इतना दूर है कि बनारस के बुनकर हर रोज 100 रुपये खर्च कर इतना दूर अपना माल लेकर जाने में असमर्थ हैं. इस वजह से बुनकरों के लिए मिला यह तोहफा किसी काम का नहीं.

वहीं सरदार मोहम्मद हाशिम का कहना है कि सरकार ने उस्ताद योजना समेत कई अन्य योजनाओं को लाकर बुनकरों को फायदा दिलाने का प्रयास किया, लेकिन ये योजनाएं हमारे लिए कोई काम की नहीं. हालात यह हैं कि बनारस में 80 प्रतिशत बुनकर जो साड़ी बुनाई का काम करते हैं, उन्हें रोज के 200 से 250 रुपये मिलते हैं. यानी सरकार में बुनकरों को अपना काम छोड़कर अपना कर्ज उतारने के लिए दूसरे कामों को करना पड़ रहा है जिसकी वजह से बनारस के बुनकर मोदी सरकार से बेहद नाराज दिख रहे हैं.

वाराणसी: हथकरघे के ताने-बाने पर जिंदगी के सपने को बुनने वाले बुनकर इस बार भी सरकारी वादों का शिकार हो गए या सच में मोदी सरकार की मौजूदगी में यहां के बुनकरों को मिला. यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या वास्तव में बनारस के बुनकरों के 5 सालों में हालात सुधरे हैं या फिर उसी तरह आज भी बनारस के बुनकर परेशान हैं जैसे पिछली सरकारों में हुआ करते थे.

बनारसी साड़ी उद्योग का सालाना कारोबार 10000 करोड़ से ज्यादा का है. तीन लाख से ज्यादा बुनकर परिवार बनारस में इस उद्योग से जुड़े हैं. वहीं बनारस के जेतपुरा, पीली कोठी, बड़ी बाजार, सरिया शक्कर तालाब, नक्खीघाट, लोहता, कोटवा समेत आधा दर्जन से ज्यादा इलाके ऐसे हैं, जहां पर हर वक्त साड़ी बनाने में जुटे बुनकर मिल जाएंगे.

पांच सालों में कितनी बदली बुनकरों की तस्वीर, देखें रिपोर्ट.

वहीं बुनकरों के लिए सरकार की ओर से चलाई गए योजनाओं को लेकर यहां के बुनकरों का कहना है कि मोदी सरकार में उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला, बल्कि हालात और भी बिगड़ गए. बनारस के लल्लापुरा इलाके के रहने वाले बहरुद्दीन अंसारी का कहना है कि हालात कुछ भी नहीं बदले. पीएम मोदी ने हजारों करोड़ रुपये की सौगात के रूप में बुनकरों को दीनदयाल हस्तकला संकुल तो दे दिया, लेकिन यह संकुल इतना दूर है कि बनारस के बुनकर हर रोज 100 रुपये खर्च कर इतना दूर अपना माल लेकर जाने में असमर्थ हैं. इस वजह से बुनकरों के लिए मिला यह तोहफा किसी काम का नहीं.

वहीं सरदार मोहम्मद हाशिम का कहना है कि सरकार ने उस्ताद योजना समेत कई अन्य योजनाओं को लाकर बुनकरों को फायदा दिलाने का प्रयास किया, लेकिन ये योजनाएं हमारे लिए कोई काम की नहीं. हालात यह हैं कि बनारस में 80 प्रतिशत बुनकर जो साड़ी बुनाई का काम करते हैं, उन्हें रोज के 200 से 250 रुपये मिलते हैं. यानी सरकार में बुनकरों को अपना काम छोड़कर अपना कर्ज उतारने के लिए दूसरे कामों को करना पड़ रहा है जिसकी वजह से बनारस के बुनकर मोदी सरकार से बेहद नाराज दिख रहे हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: हथकरघे के ताने-बाने पर जिंदगी के सपने को बुनने और बनारस को एक अलग पहचान दिलाकर बनारसी साड़ी उद्योग को आगे बढ़ाने वाले बुनकर क्या इस बार भी सरकारी वादों का शिकार हो गए या फिर सच में इन 5 सालों में मोदी सरकार की मौजूदगी में बतौर सांसद बनारस से प्रधानमंत्री के खुद होने का फायदा यहां के बुनकरों को मिला. यह सवाल बड़ा है, वह भी तब जब देश में चुनावी मैदान में बड़े बड़े सूरमा ताल ठोक रहे है, दो चरण के मतदान हो चुके हैं और अब बनारस में भी सियासी संग्राम चरम पर पहुंचने वाला है. इन सब के बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या वास्तव में बनारस के बुनकरों के 5 सालों में हालात सुधरे हैं या फिर उसी तरह आज भी बनारस के बुनकर परेशान हैं जैसे पिछली सरकारों में हुआ करते थे.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 अगर बनारस की बात की जाए तो बनारसी साड़ी उद्योग का सालाना कारोबार 10000 करोड़ से ज्यादा का है तीन लाख से ज्यादा बुनकर परिवार बनारस में इस उद्योग से जुड़कर बनारस को बनारसी साड़ी उद्योग के साथ आसमान तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बनारस के जेतपुरा पीली कोठी बड़ी बाजार सरिया शक्कर तालाब नक्खीघाट लोहता कोटवा समेत आधा दर्जन से ज्यादा और ऐसे इलाके हैं जहां पर हर वक्त आपको साड़ी बनाने में जुटे यह बुनकर मिल जाएंगे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है इतनी बड़ी आबादी जब बनारस में बुनकर के पेशे से जुड़कर अपनी जिंदगी को बदलने का प्रयास कर रही हो तो सरकार क्या इन के इस प्रयास को सफल बनाने का काम पूरी इमानदारी से कर रही है शायद सवाल का जवाब इन बुनकरों ने न के रूप में दिया उनका कहना था कि अगर 5 सालों में बात की जाए तो इस वर्तमान मोदी सरकार में उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला बल्कि हालात और भी बिगड़ गए बनारस के लल्लापुरा इलाके के रहने वाले बहरुद्दीन अंसारी का कहना था की हालात कुछ भी नहीं बदले प्रधानमंत्री मोदी ने हजारों करोड़ रुपए की सौगात के रूप में बनारस के बुनकरों को दीनदयाल हस्तकला संकुल दे दिया लेकिन यह संकुल इतना दूर है कि बनारस के 200 से ढाई सौ रुपए कमाने वाला एक बुनकर हर रोज 100 रुपये खर्च कर इतना दूर अपना माल लेकर जाने में असमर्थ है, जिसकी वजह से बुनकरों के लिए मिला है तोहफा किसी काम का हमारे लिए तो नहीं उनका कहना है कि बुनकर बिरादरी बड़े ही पिछड़ी बिरादरी मानी जाती है. यहां पढ़ाई लिखाई ना होने की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ हमें नहीं मिलता है इसका फायदा बिचौलिए जरूर उठाते हैं चाहे लोग चलाने के लिए कम रेट पर बिजली हो चाहे ताना-बाना बनाने के लिए सामग्री या फिर रेशम कोई भी चीज हम तक सीधे नहीं पहुंच पाते बिचौलियों के माध्यम से आने की वजह से नुकसान होता है बुनकरों का गाना सबसे बड़ा नुकसान तो बुनकरों और साड़ी कारोबार को पहले नोटबंदी और जीएसटी ने दिया नोटबंदी ने जहां बुनकरों की कमर तोड़ दी. वही जीएसटी पहली बार वस्त्र उधोग पर लगने की वजह से बनारसी साड़ी उद्योग आधे से भी कम हो गया. जिसका सीधा असर इस उधोग पर पड़ा, जो साड़ी कारोबार 2014 से पहले तक फल फूल रहा था वह अचानक से गिर पड़ा और अब तक उठ नहीं सका है.

बाईट- बहरुद्दीन अंसारी, बुनकर


Conclusion:वीओ-02 एक तरफ बुनकर जहां बिचौलियों की वजह से आज भी परेशान होने की बात कर रहे हैं वहीं बुनकर समुदाय को जोड़कर आगे बढ़ाने का प्रयास करने वाले बुनकर सरदार भी सरकार की तरफ से किए गए वादों को सिर्फ कागजी बता रहे हैं. सरदार मोहम्मद हाशिम का कहना है कि सरकार ने उस्ताद योजना समेत कई अन्य योजनाओं को लाकर बुनकरों को फायदा दिलाने का प्रयास किया लेकिन यहां योजनाएं हमारे लिए कोई काम की नहीं इसका लाभ मुझे नहीं लगता किसी भी बुनकर को बनारस में सीधे मिला है हालात यह है कि बनारस में 80% बुनकर जो साड़ी बुनाई का काम करते हैं. उन्हें रोज के 200 से 250 रुपए मिलते हैं एक साड़ी को तैयार करने में 20 से 25 दिन का वक्त लगता है यानी अगर पूरे महीने की बात की जाए तो एक बुनकर को 4 से 5000 रुपये ही मिल पाते हैं और इतने रुपए में उसके घर का घर चल पाना मुश्किल है जिसकी वजह से वह कर्ज में डूबता जा रहा है हालात यह हो गए हैं अब इस कर्ज से उबरने के लिए अपने इस पेशे को छोड़कर रिक्शा चलाना, ऑटो चलाना सब्जी बेचने का काम कर रहे हैं. यानी सरकार में बुनकरों को अपना काम छोड़कर अपना कर्ज उतारने के लिए दूसरे कामों को करना पड़ रहा है जिसकी वजह से बनारस के बुनकर मोदी सरकार से बेहद नाराज दिख रहे हैं.

बाईट- सरदार मोहम्मद हासिम, बुनकर सरदार

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र

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