वाराणसी: हथकरघे के ताने-बाने पर जिंदगी के सपने को बुनने वाले बुनकर इस बार भी सरकारी वादों का शिकार हो गए या सच में मोदी सरकार की मौजूदगी में यहां के बुनकरों को मिला. यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या वास्तव में बनारस के बुनकरों के 5 सालों में हालात सुधरे हैं या फिर उसी तरह आज भी बनारस के बुनकर परेशान हैं जैसे पिछली सरकारों में हुआ करते थे.
बनारसी साड़ी उद्योग का सालाना कारोबार 10000 करोड़ से ज्यादा का है. तीन लाख से ज्यादा बुनकर परिवार बनारस में इस उद्योग से जुड़े हैं. वहीं बनारस के जेतपुरा, पीली कोठी, बड़ी बाजार, सरिया शक्कर तालाब, नक्खीघाट, लोहता, कोटवा समेत आधा दर्जन से ज्यादा इलाके ऐसे हैं, जहां पर हर वक्त साड़ी बनाने में जुटे बुनकर मिल जाएंगे.
वहीं बुनकरों के लिए सरकार की ओर से चलाई गए योजनाओं को लेकर यहां के बुनकरों का कहना है कि मोदी सरकार में उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला, बल्कि हालात और भी बिगड़ गए. बनारस के लल्लापुरा इलाके के रहने वाले बहरुद्दीन अंसारी का कहना है कि हालात कुछ भी नहीं बदले. पीएम मोदी ने हजारों करोड़ रुपये की सौगात के रूप में बुनकरों को दीनदयाल हस्तकला संकुल तो दे दिया, लेकिन यह संकुल इतना दूर है कि बनारस के बुनकर हर रोज 100 रुपये खर्च कर इतना दूर अपना माल लेकर जाने में असमर्थ हैं. इस वजह से बुनकरों के लिए मिला यह तोहफा किसी काम का नहीं.
वहीं सरदार मोहम्मद हाशिम का कहना है कि सरकार ने उस्ताद योजना समेत कई अन्य योजनाओं को लाकर बुनकरों को फायदा दिलाने का प्रयास किया, लेकिन ये योजनाएं हमारे लिए कोई काम की नहीं. हालात यह हैं कि बनारस में 80 प्रतिशत बुनकर जो साड़ी बुनाई का काम करते हैं, उन्हें रोज के 200 से 250 रुपये मिलते हैं. यानी सरकार में बुनकरों को अपना काम छोड़कर अपना कर्ज उतारने के लिए दूसरे कामों को करना पड़ रहा है जिसकी वजह से बनारस के बुनकर मोदी सरकार से बेहद नाराज दिख रहे हैं.