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वाराणसी: मंदी ने तोड़ दी बनारसी उद्योग की कमर

देश भर में मशहूर बनारसी साड़ी का कारोबार दम तोड़ता नजर आ रहा है. एक ऐसी साड़ी जिसकी पूछ हर शुभ अवसर पर होती है उसे आर्थिक मंदी ने दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया है.

कही दम न तोड़ दे बनारसी उद्योग.
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Published : Sep 22, 2019, 10:32 AM IST

वाराणसी: कहते हैं किसी दुल्हन का श्रृंगार बिना बनारसी साड़ी के अधूरा होता है. घर में शादी ब्याह हो या फिर कोई शुभ काम बनारसी साड़ी हर महिला की पहली पसंद होती है. यही वजह है कि आज से नहीं बल्कि सदियों से यह उद्योग बनारस ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. हर खास त्योहार पर सभी को बनारसी साड़ी बेहद पसंद आती है, लेकिन मंदी की चपेट में अब यह उद्योग भी फंसता नजर आ रहा है.

कही दम न तोड़ दे बनारसी उद्योग.

पहले नोटबंदी जीएसटी और अब आर्थिक मंदी ने बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी है. हालात यह हैं इस से जुड़े लगभग 60% कल कारखाने बंद हो चुके हैं और जो 40% संचालित हो रहे हैं वह भी बंद होने की स्थिति में आ गए हैं. कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है काम न मिलने की वजह से प्रोडक्शन कम हुआ है, जिसकी वजह से साड़िया तैयार करने वाले बुनकरों को उनके रोजगार से हाथ धोना पड़ा है. वह मजबूर हैं देहाड़ी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए.

दरअसल बनारस में एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे इलाके हैं, जहां पर सिर्फ और सिर्फ साड़ी बनाने का काम होता है. जेतपुरा, सरैया, लल्लापुरा, कज्जाकपुरा समेत अन्य कई इलाकों में पावर लूम की खतर पटर के बीच बनारसी साड़ी उद्योग फलता-फूलता नजर आता है. मशीनों की खटर-पटर और ताने-बाने पर चढ़े धागों से तैयार हो रही साड़ियों को देखकर हर कोई तो यही सोचता है कि यह कारोबार बुलंदियों पर पहुंच चुका है, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है.

हालात यह हैं कि मंदी के दौर में कोलकाता महाराष्ट्र और साउथ इंडिया से मिलने वाले ऑर्डर कम होने की वजह से अब साड़ी कारोबार से जुड़े-बड़े व्यापारी न चाहते हुए भी बुनकरों की संख्या कम कर रहे हैं, जिसका खामियाजा इन बुनकरों को भुगतना पड़ रहा है. किसी कारखाने में जहां 50 बुनकर एक बार में काम किया करते थे, उनकी संख्या घटाकर 20 कर दी गई है. 30 बुनकर एक झटके में ही बेरोजगार हो गए हैं, जिसके बाद उनके सामने खाने-पीने का संकट आ खड़ा हुआ है.

बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि जब से बीजेपी की सरकार आई तब से बनारसी साड़ी उद्योग ने दम तोड़ दिया है. पहले नोटबंदी कर इस व्यापार को चौपट किया गया फिर जीएसटी लगाकर कपड़ा उद्योग को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया. कुछ उबरने की कोशिश व्यापार कर ही रहा था कि मंदी ने कदम रख दिया. अब हालात यह हैं कि त्योहारी मौसम होने के बाद भी बनारसी साड़ी उद्योग अब तक खड़ा नहीं हो पाया है.

बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों और बुनकरों के सरदार का कहना है कि दिवाली और दशहरे के मौके पर कोलकाता से अकेले बनारसी साड़ी उद्योग को बढ़ावा मिलता था, लेकिन इस बार कोलकाता से आर्डर आ ही नहीं रहा है जिस वजह से व्यापारी न चाहते हुए भी प्रोडक्शन कम कर रहे हैं और बुनकरों को बेरोजगार होना पड़ रहा है.

व्यापारियों का कहना है कि लगभग 80% कारोबार चौपट हो चुका है 20% किसी तरह बस चलाया जा रहा है, जिसकी वजह से बेरोजगार हुए लोगों को न चाहते हुए भी टोटो रिक्शा चलाना बेहतर समझ आ रहा हैं. इतना ही नहीं कई तो मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. यानी कुल मिलाकर बनारसी साड़ी उद्योग पूरी तरह से मंदी की चपेट में है सरकार ने अगर वक्त रहते इसकी ओर ध्यान नहीं दिया तो शायद बनारस की यह पहचान, जिसने देश नहीं विदेशों में भी भारत का सर ऊंचा किया है वह दम तोड़ देगी.

वाराणसी: कहते हैं किसी दुल्हन का श्रृंगार बिना बनारसी साड़ी के अधूरा होता है. घर में शादी ब्याह हो या फिर कोई शुभ काम बनारसी साड़ी हर महिला की पहली पसंद होती है. यही वजह है कि आज से नहीं बल्कि सदियों से यह उद्योग बनारस ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. हर खास त्योहार पर सभी को बनारसी साड़ी बेहद पसंद आती है, लेकिन मंदी की चपेट में अब यह उद्योग भी फंसता नजर आ रहा है.

कही दम न तोड़ दे बनारसी उद्योग.

पहले नोटबंदी जीएसटी और अब आर्थिक मंदी ने बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी है. हालात यह हैं इस से जुड़े लगभग 60% कल कारखाने बंद हो चुके हैं और जो 40% संचालित हो रहे हैं वह भी बंद होने की स्थिति में आ गए हैं. कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है काम न मिलने की वजह से प्रोडक्शन कम हुआ है, जिसकी वजह से साड़िया तैयार करने वाले बुनकरों को उनके रोजगार से हाथ धोना पड़ा है. वह मजबूर हैं देहाड़ी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए.

दरअसल बनारस में एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे इलाके हैं, जहां पर सिर्फ और सिर्फ साड़ी बनाने का काम होता है. जेतपुरा, सरैया, लल्लापुरा, कज्जाकपुरा समेत अन्य कई इलाकों में पावर लूम की खतर पटर के बीच बनारसी साड़ी उद्योग फलता-फूलता नजर आता है. मशीनों की खटर-पटर और ताने-बाने पर चढ़े धागों से तैयार हो रही साड़ियों को देखकर हर कोई तो यही सोचता है कि यह कारोबार बुलंदियों पर पहुंच चुका है, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है.

हालात यह हैं कि मंदी के दौर में कोलकाता महाराष्ट्र और साउथ इंडिया से मिलने वाले ऑर्डर कम होने की वजह से अब साड़ी कारोबार से जुड़े-बड़े व्यापारी न चाहते हुए भी बुनकरों की संख्या कम कर रहे हैं, जिसका खामियाजा इन बुनकरों को भुगतना पड़ रहा है. किसी कारखाने में जहां 50 बुनकर एक बार में काम किया करते थे, उनकी संख्या घटाकर 20 कर दी गई है. 30 बुनकर एक झटके में ही बेरोजगार हो गए हैं, जिसके बाद उनके सामने खाने-पीने का संकट आ खड़ा हुआ है.

बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि जब से बीजेपी की सरकार आई तब से बनारसी साड़ी उद्योग ने दम तोड़ दिया है. पहले नोटबंदी कर इस व्यापार को चौपट किया गया फिर जीएसटी लगाकर कपड़ा उद्योग को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया. कुछ उबरने की कोशिश व्यापार कर ही रहा था कि मंदी ने कदम रख दिया. अब हालात यह हैं कि त्योहारी मौसम होने के बाद भी बनारसी साड़ी उद्योग अब तक खड़ा नहीं हो पाया है.

बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों और बुनकरों के सरदार का कहना है कि दिवाली और दशहरे के मौके पर कोलकाता से अकेले बनारसी साड़ी उद्योग को बढ़ावा मिलता था, लेकिन इस बार कोलकाता से आर्डर आ ही नहीं रहा है जिस वजह से व्यापारी न चाहते हुए भी प्रोडक्शन कम कर रहे हैं और बुनकरों को बेरोजगार होना पड़ रहा है.

व्यापारियों का कहना है कि लगभग 80% कारोबार चौपट हो चुका है 20% किसी तरह बस चलाया जा रहा है, जिसकी वजह से बेरोजगार हुए लोगों को न चाहते हुए भी टोटो रिक्शा चलाना बेहतर समझ आ रहा हैं. इतना ही नहीं कई तो मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. यानी कुल मिलाकर बनारसी साड़ी उद्योग पूरी तरह से मंदी की चपेट में है सरकार ने अगर वक्त रहते इसकी ओर ध्यान नहीं दिया तो शायद बनारस की यह पहचान, जिसने देश नहीं विदेशों में भी भारत का सर ऊंचा किया है वह दम तोड़ देगी.

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: कहते हैं किसी दुल्हन का श्रृंगार बिना बनारसी साड़ी के अधूरा होता है घर में शादी ब्याह हो या फिर कोई शुभ काम बनारसी साड़ी हर महिला की पहली पसंद होती है यही वजह है कि आज से नहीं बल्कि सदियों से यह उद्योग बनारस ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है, आम से लेकर खास तक सभी को बनारसी साड़ी बेहद पसंद आती है लेकिन मंदी की चपेट में अब यह उद्योग भी फंसता नजर आ रहा है. पहले नोटबंदी जीएसटी और अब आर्थिक मंदी ने बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी है. हालात यह हैं इस से जुड़े लगभग 60% कल कारखाने बंद हो चुके हैं और जो 40% संचालित हो रहे हैं वह भी बंद होने की स्थिति में आ गए हैं. कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है काम ना मिलने की वजह से प्रोडक्शन कम हुआ है. जिसकी वजह से सानिया तैयार करने वाले बुनकरों को उनके रोजगार से हाथ धोना पड़ा है और वह मजबूर हैं देहाड़ी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए.


Body:वीओ-01 दरअसल बनारस में एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे इलाके हैं जहां पर सिर्फ और सिर्फ साड़ी बनाने का काम होता है जेतपुरा सरैया लल्लापुरा कज्जाकपुरा मदनपुरा रेवड़ी तालाब समेत अन्य कई इलाकों में पावर लूम की खतर पटर के बीच बनारसी साड़ी उद्योग फलता फूलता नजर आता है. मशीनों की खतर पटर और ताने-बाने पर चढ़े धागों से तैयार हो रही साड़ियों को देखकर हर कोई तो यही सोचता है कि यह कारोबार बुलंदियों पर पहुंच चुका है लेकिन इन सबके पर सच्चाई बिल्कुल अलग है. हालात यह हैं कि मंदी के दौर में कोलकाता महाराष्ट्र और साउथ इंडिया से मिलने वाले ऑर्डर कम होने की वजह से अब साड़ी कारोबार से जुड़े बड़े व्यापारी ना चाहते हुए भी बुनकरों की संख्या कम कर रहे हैं जिसका खामियाजा इन बुनकरों को भुगतना पड़ रहा है. किसी कारखाने में जहां 50 बुनकर कर एक बार में काम किया करते थे उनकी संख्या घटाकर 20 कर दी गई है, 30 बुनकर एक झटके में ही बेरोजगार हो गए हैं. जिसके बाद उनके सामने खाने-पीने का संकट है.


Conclusion:वीओ-02 बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि जब से बीजेपी की सरकार आई तब से बनारसी साड़ी उद्योग ने दम तोड़ दिया है. पहले नोटबंदी कर इस व्यापार को चौपट किया गया फिर जीएसटी लगाकर कपड़ा उद्योग को बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया. कुछ उबरने की कोशिश व्यापार कर ही रहा था कि मंदी ने कदम रख दिया. अब हालात यह हैं कि त्योहारी मौसम होने के बाद भी बनारसी साड़ी उद्योग अब तक खड़ा नहीं हो पाया है बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े व्यापारियों और बुनकरों के सरदार का कहना है कि दिवाली और दशहरे के मौके पर कोलकाता से अकेले बनारसी साड़ी उद्योग को बढ़ावा मिलता था, लेकिन इस बार कोलकाता से आर्डर आ ही नहीं रहा है जिस वजह से व्यापारी ना चाहते हुए भी प्रोडक्शन कम कर रहे हैं और बुनकरों को बेरोजगार होना पड़ रहा है. व्यापारियों का कहना है कि लगभग 80% कारोबार चौपट हो चुका है 20% किसी तरह बस चलाया जा रहा है. जिसकी वजह से बेरोजगार हुए उनका ना चाहते हुए भी टोटो रिक्शा चलाना बेहतर समझ रहे हैं इतना ही नहीं कई तो मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. यानी कुल मिलाकर बनारसी साड़ी उद्योग पूरी तरह से मंदी की चपेट में है सरकार ने अगर वक्त रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया तो शायद बनारस की है पहचान जिसने देश नहीं विदेशों में भी भारत का सर ऊंचा किया है वह दम तोड़ देगी.

बाईट- शाहिद जुनैद, साड़ी कारोबारी
बाईट- सरदार मोहम्मद हासिम, बुनकर सरदार
बाईट- वजीयउद्दीन अंसारी, साड़ी कारोबारी
बाईट- अरशद मेराज, बुनकर

गोपाल मिश्र

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