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World Hepatitis Day 2023: हेपेटाइटिस से जंग में बीएचयू की अनोखी मुहिम, जानें क्या है लक्षण और उपचार - Department of Gastrology BHU

बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय का गैस्ट्रोलॉजी विभाग लोगों हेपेटाइटिस के बारे में जागरूक कर रहा है. इसी के साथ मरीजों का निशुल्क इलाज भी कर रहा है.अस्पताल में किस प्रकार ट्रीटमेंट सेंटर चलाया जा रहा है और कैसे हेपेटाइटिस B व C से लोगों सुरक्षित रह सकते है. इसके बारे में जाने इस रिपोर्ट में...

हेपेटाइटिस से जंग में बीएचयू की अनोखी मुहिम
हेपेटाइटिस से जंग में बीएचयू की अनोखी मुहिम
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Published : Jul 28, 2023, 9:38 PM IST

हेपेटाइटिस से जंग में बीएचयू की अनोखी मुहिम

वाराणसी: आज पूरे विश्व में वायरल हेपेटाइटिस दिवस मनाया जा रहा है. जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को हेपेटाइटिस के प्रभाव से जागरूक करना है. हेपेटाइटिस को रोकने के लिए जहां सरकार अलग-अलग कार्यक्रमों का संचालन कर रही है. तो वहीं पूर्वांचल में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का सर सुन्दरलाल चिकित्सालय भी इस जंग में एक बड़ी जिम्मेदारी निभा रहा है. BHU चिकित्सा संस्थान के जरिए बकायदा हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम चलाया जा रहा है. जिसके तहत लोगों को हेपेटाइटिस बी और सी के बारे में न सिर्फ जानकारी दी जा रही है, बल्कि मरीजों का फ्री में इलाज किया जा रहा है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने गैस्ट्रो विभाग के प्रोफेसर से खास बातचीत की.


हेपेटाइटिस की जांच कराना है जरूरी: गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि विभाग नेशनल लेवल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत जन जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है. जिसके अंतर्गत हेपेटाइटिस B और C के बारे में जानकारी दी जा रही है. उन्होंने बताया 'हमारे पास हेपेटाइटिस बी या सी के जो भी मरीज आते हैं. उनका इलाज फ्री में होता है. कुछ जाचें भी होती हैं, जो इस प्रोग्राम के अन्तर्गत फ्री होती हैं. यह महंगी जाचें होती हैं. बीएचयू एक मॉडल ट्रीटमेंट सेंटर है, जिसके अन्तर्गत 10 जिले आते हैं. हेपेटाइटिस का शुरुआती लक्षण बहुत ज्यादा नहीं पता चलता है. उसमें आपको कमजोरी और हरारत रहेगी. कभी-कभी जोंडिस भी दिख सकता है. जब आप इसकी जांच कराएंगे तभी हेपेटाइटिस पकड़ में आ सकता है'.

हेपेटाइटिस बी और सी में दिखते हैं ये लक्षण: डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि जिनके घर में हेपेटाइटिस बी या सी के मरीज हों उनको जांच करा लेना चाहिए. यह बीमारी खून चढ़ाने, ऑपरेशन, इंजेक्शन या यौन संबंध से भी फैल सकती है. ऐसे में इन लोगों की इसकी जांच कराने की जरूरत होती है. इसमें शरुआती दौर में भूख न लगना, चिड़चिड़ापन और कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं. जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो लिवर खराब होने, जोंडिस या पेट में पानी होना या बहोशी होना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

जन्म के बाद बच्चों को लगवाएं टीका: डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि हेपेटाइटिस बी के लिए टीका उपलब्ध है. सरकार इसके लिए टीका उपलब्ध करा रही है. जितने भी बच्चे जन्म लेते हैं. उनको हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाकर सुरक्षित कर सकते हैं. टीकाकरण के बावजूद भी 5 से 10 फीसदी बच्चों में यह बीमारी हो सकती है. इसके लिए जांच कराना जरूरी होता है. हेपेटाइटिस सी के लिए जो भी हेल्थकेयर वर्कर है, ऐसे लोग जिनका ब्लड के साथ ज्यादा कॉन्टैक्ट है उन लोगों को इसकी जांच करा लेनी चाहिए. इसका सफल इलाज भी उपलब्ध है.

साल 2023 में ओपीडी में आए मरीजों का आंकड़ा: ओपीडी के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में हेपेटाइटिस बी के 523 मरीजों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. वहीं हेपेटाइटिस सी के मरीजों का आंकड़ा देखा जाए तो 203 मरीजों का पंजीकरण हुआ है. इनमें से ज्यादातर लोगों का इलाज चल रहा है. यह ध्यान देने वाली बात है कि हेपेटाइटिस बी में हर किसी को इलाज की जरूरकत नहीं होती है. क्योंकि हर साल करीब एक फीसदी लोग अपने आप ठीक हो सकते हैं. जबतक आपके शरीर में कोई कटा हिस्सा न हो, मरीज के ब्लड से बल्ड न मिले तब तक आपके शरीर में संक्रमण का रिस्क नहीं रहता है.


यह भी पढ़ें: बनारस के लिए CM योगी ने देखा था जो सपना, जानिए क्यों टूट गया?

हेपेटाइटिस से जंग में बीएचयू की अनोखी मुहिम

वाराणसी: आज पूरे विश्व में वायरल हेपेटाइटिस दिवस मनाया जा रहा है. जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को हेपेटाइटिस के प्रभाव से जागरूक करना है. हेपेटाइटिस को रोकने के लिए जहां सरकार अलग-अलग कार्यक्रमों का संचालन कर रही है. तो वहीं पूर्वांचल में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का सर सुन्दरलाल चिकित्सालय भी इस जंग में एक बड़ी जिम्मेदारी निभा रहा है. BHU चिकित्सा संस्थान के जरिए बकायदा हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम चलाया जा रहा है. जिसके तहत लोगों को हेपेटाइटिस बी और सी के बारे में न सिर्फ जानकारी दी जा रही है, बल्कि मरीजों का फ्री में इलाज किया जा रहा है. इस बारे में ईटीवी भारत की टीम ने गैस्ट्रो विभाग के प्रोफेसर से खास बातचीत की.


हेपेटाइटिस की जांच कराना है जरूरी: गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि विभाग नेशनल लेवल हेपेटाइटिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत जन जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है. जिसके अंतर्गत हेपेटाइटिस B और C के बारे में जानकारी दी जा रही है. उन्होंने बताया 'हमारे पास हेपेटाइटिस बी या सी के जो भी मरीज आते हैं. उनका इलाज फ्री में होता है. कुछ जाचें भी होती हैं, जो इस प्रोग्राम के अन्तर्गत फ्री होती हैं. यह महंगी जाचें होती हैं. बीएचयू एक मॉडल ट्रीटमेंट सेंटर है, जिसके अन्तर्गत 10 जिले आते हैं. हेपेटाइटिस का शुरुआती लक्षण बहुत ज्यादा नहीं पता चलता है. उसमें आपको कमजोरी और हरारत रहेगी. कभी-कभी जोंडिस भी दिख सकता है. जब आप इसकी जांच कराएंगे तभी हेपेटाइटिस पकड़ में आ सकता है'.

हेपेटाइटिस बी और सी में दिखते हैं ये लक्षण: डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि जिनके घर में हेपेटाइटिस बी या सी के मरीज हों उनको जांच करा लेना चाहिए. यह बीमारी खून चढ़ाने, ऑपरेशन, इंजेक्शन या यौन संबंध से भी फैल सकती है. ऐसे में इन लोगों की इसकी जांच कराने की जरूरत होती है. इसमें शरुआती दौर में भूख न लगना, चिड़चिड़ापन और कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं. जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो लिवर खराब होने, जोंडिस या पेट में पानी होना या बहोशी होना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

जन्म के बाद बच्चों को लगवाएं टीका: डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि हेपेटाइटिस बी के लिए टीका उपलब्ध है. सरकार इसके लिए टीका उपलब्ध करा रही है. जितने भी बच्चे जन्म लेते हैं. उनको हेपेटाइटिस बी का टीका लगवाकर सुरक्षित कर सकते हैं. टीकाकरण के बावजूद भी 5 से 10 फीसदी बच्चों में यह बीमारी हो सकती है. इसके लिए जांच कराना जरूरी होता है. हेपेटाइटिस सी के लिए जो भी हेल्थकेयर वर्कर है, ऐसे लोग जिनका ब्लड के साथ ज्यादा कॉन्टैक्ट है उन लोगों को इसकी जांच करा लेनी चाहिए. इसका सफल इलाज भी उपलब्ध है.

साल 2023 में ओपीडी में आए मरीजों का आंकड़ा: ओपीडी के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में हेपेटाइटिस बी के 523 मरीजों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. वहीं हेपेटाइटिस सी के मरीजों का आंकड़ा देखा जाए तो 203 मरीजों का पंजीकरण हुआ है. इनमें से ज्यादातर लोगों का इलाज चल रहा है. यह ध्यान देने वाली बात है कि हेपेटाइटिस बी में हर किसी को इलाज की जरूरकत नहीं होती है. क्योंकि हर साल करीब एक फीसदी लोग अपने आप ठीक हो सकते हैं. जबतक आपके शरीर में कोई कटा हिस्सा न हो, मरीज के ब्लड से बल्ड न मिले तब तक आपके शरीर में संक्रमण का रिस्क नहीं रहता है.


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