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BHU के वनस्पति विभाग का दावा, इस जंगली पौधे से बन सकती है कोरोना की दवा - कोरोना की दवा

बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग ने अब कोरोना की दवा बनाने का दावा किया है. जड़ी बूटी आर्टेमिसिया अनुआ से कोरोना का इलाज संभव है. विभाग की प्रोफेसर शशि पांडेय ने दावा इसका दावा किया है. आर्टेमिसिया अनुआ मलेरिया, कैंसर और अन्य वाइरल में भी उपयोगी बताया जा रहा है.

बीएचयू
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Published : Jul 5, 2020, 9:31 AM IST

वाराणसीः कोराना महामरी के चलते पूरी दुनिया परेशान है. अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग इस महामरी के चपेट में आ चुके हैं. जिनमें से लगभग 5 लाख 33 हजार लोग इस महामारी की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक आधुनिक इस बीमारी की दवा और वैक्सीन खोजने में जुटे हुए हैं. वहीं आयुर्वेदिक वनस्पतियों के इस्तेमाल से भी कोरोना वायरस से बचाव के उपाय तलाशे जा रहे हैं.

  • #COVID19 के उपचार की संभावनाएं तलाशने की दिशा में वनस्पति विज्ञान विभाग,#BHU,की प्रो. शशि पाण्डेय ने महत्वपूर्ण शोध किया है।अध्ययन के अनुसार वायरस के जैविक प्रोटीन निष्क्रिय करने में "आर्टेमिसिया अनुआ" सक्षम है।अध्ययन शोध पत्रिका वायरस डिजीज मे प्रकाशन हेतू भेजा गया है।@ICMRDELHI pic.twitter.com/DxRZfYuC7P

    — BHU Official (@bhupro) July 4, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इस बीच बीएचयू में वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रो. शशि पाण्डेय के नेतृत्व में आर्टेमिसिया अनुआ के जैवसक्रिय यौगिकों एवं उसके डिरिवैटिव के समागम से कोविड-19 के उपचार की संभावनाओं को तलाशा गया.

प्रयोगशालाम में कम्प्युटर सिम्युलेशन (इन सिलिकों) द्वारा आर्टेमिससिया के यौगिकों को कोरोना वाइरस के सिकवेंस में उपस्थित मुख्य प्रोटीन कोडिंग रीजन को ट्रागेट करने पर यह ज्ञात हुआ कि, ये वायरस के विभिन्न ओपें रीडिंग फ्रेम (ओआरएफ) से बांध कर उसके जैविक प्रोटीन को पूरी तरह से निसक्रिय करने में सक्षम है. ये वायरस के स्पीके ग्ल्यकों प्रोटीन पर परस्पर प्रभाव डालता है, जो वाइरस और मनुष्य के इंटरएक्शन के लिए जिम्मेदार है.

इसके साथ ही आरएनए डेपेंडेंट आरएनए पोलीमरेज अथवा प्रोटेनेस एंजाइम से भी इंटेरक्ट कर के वायरस रेप्लीकेशन अथवा प्रोटीन कपसीद को भी बनने से भी रोक सकता है. अब तक हुए अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका वायरस डिजिज में प्रकाशन के लिए दो माह पूर्व ही भेजा जा चुका है. प्रोफेसर पिटर सीबरगर, डाइरेक्टर मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट, जर्मनी ने भी हाल ही (जुलाई 2020) में आर्टेमिसिया की हर्बल चाय को कोविड-19 क उपचार में लाभकारी होने का दावा किया है.

क्या है आर्टेमिसिया अनुआ
आर्टेमिसिया अनुआ एशियाई और यूरोपीय मूल के शीतोष्ण क्षेत्र मे व्यापक रूप से पाया जाने वाला एक वार्षिक, अरोमिल, जंगली पौधा है, जो आमतौर पर दो मीटर तक की ऊंचाई का होता है. आर्टेमिसिया का चीनी नुस्खों की पुस्तक में सर्वप्रथम बुखार की आपातकालीन औषधि के रूप मे वर्णन पाया गया है. आर्टेमिसिया से प्राप्त आर्टेमिसिनीन मलेरिया की मुख्य दवा है, जिस्के अतिरिक्त कैंसर मे भी प्रयोग होने वाली एक महत्वपूर्ण औषधि है.आर्टेमिसिया का प्रयोग जीवाणुओं तथा कवकों से होने वाले संक्रमण मे भी होता है, साथ ही ये अफ्रीका में नेत्रहीनता के लिए जिम्मेदार ओंकोसीरसियसिस (onchocerciasis) के उपचार मे भी प्रयोग किया जाता है. आर्टेमिसिनीन, अफ्रीकन निद्रा रोग में भी औषधीय भूमिका निभाता है, जोकि सी सी मक्खी से संचरित होता है. इसका प्रयोग अस्थमा में भी किया जाता है.

इस तरह हुआ प्रयोग
काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के जनसंपर्क विभाग के मुताबिक, प्रो. पाण्डेय ने नैनोटेक्नोलाजी के साथ इन कृत्रिम उतक संवर्धित पौधों का प्रयोग कर सूक्ष्म नैनोकणों का निर्माण किया. उनके प्रयोगशाला में बनाये गए ये नैनोंकण रोग प्रतिरोधी जैविक तत्वों से जुड़े रहते हैं, जो की मलेरिया, कैंसर, एवं अन्य वाइरल रोगों के प्रति प्रभावी यौगिक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने बताया है कि ये नैनोकण कम मात्रा में प्रयोग होते है और रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा देते हैं. जिनका प्रयोग आगे भविष्य में बड़े स्तर पर किया जाना संभव हो सकता है. इन शोधकार्यों के फलस्वरूप इस पौधे का विस्तार रूप से उत्पादन संभव हुआ है, साथ ही साथ कैंसर के क्षेत्र में भी इसके प्रयोग की सम्भावनाएं दिखाई दे रही हैं. प्रो. पाण्डेय ने बताया है कि इस विषय पर शोध कार्य अभी भी जारी है, साथ ही इसके प्रभाव का अध्ययन कोरोना वायरस के प्रोटीन पर देखे जाने की दिशा में तैयारी चल रही है.

वाराणसीः कोराना महामरी के चलते पूरी दुनिया परेशान है. अब तक एक करोड़ से ज्यादा लोग इस महामरी के चपेट में आ चुके हैं. जिनमें से लगभग 5 लाख 33 हजार लोग इस महामारी की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक आधुनिक इस बीमारी की दवा और वैक्सीन खोजने में जुटे हुए हैं. वहीं आयुर्वेदिक वनस्पतियों के इस्तेमाल से भी कोरोना वायरस से बचाव के उपाय तलाशे जा रहे हैं.

  • #COVID19 के उपचार की संभावनाएं तलाशने की दिशा में वनस्पति विज्ञान विभाग,#BHU,की प्रो. शशि पाण्डेय ने महत्वपूर्ण शोध किया है।अध्ययन के अनुसार वायरस के जैविक प्रोटीन निष्क्रिय करने में "आर्टेमिसिया अनुआ" सक्षम है।अध्ययन शोध पत्रिका वायरस डिजीज मे प्रकाशन हेतू भेजा गया है।@ICMRDELHI pic.twitter.com/DxRZfYuC7P

    — BHU Official (@bhupro) July 4, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इस बीच बीएचयू में वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रो. शशि पाण्डेय के नेतृत्व में आर्टेमिसिया अनुआ के जैवसक्रिय यौगिकों एवं उसके डिरिवैटिव के समागम से कोविड-19 के उपचार की संभावनाओं को तलाशा गया.

प्रयोगशालाम में कम्प्युटर सिम्युलेशन (इन सिलिकों) द्वारा आर्टेमिससिया के यौगिकों को कोरोना वाइरस के सिकवेंस में उपस्थित मुख्य प्रोटीन कोडिंग रीजन को ट्रागेट करने पर यह ज्ञात हुआ कि, ये वायरस के विभिन्न ओपें रीडिंग फ्रेम (ओआरएफ) से बांध कर उसके जैविक प्रोटीन को पूरी तरह से निसक्रिय करने में सक्षम है. ये वायरस के स्पीके ग्ल्यकों प्रोटीन पर परस्पर प्रभाव डालता है, जो वाइरस और मनुष्य के इंटरएक्शन के लिए जिम्मेदार है.

इसके साथ ही आरएनए डेपेंडेंट आरएनए पोलीमरेज अथवा प्रोटेनेस एंजाइम से भी इंटेरक्ट कर के वायरस रेप्लीकेशन अथवा प्रोटीन कपसीद को भी बनने से भी रोक सकता है. अब तक हुए अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका वायरस डिजिज में प्रकाशन के लिए दो माह पूर्व ही भेजा जा चुका है. प्रोफेसर पिटर सीबरगर, डाइरेक्टर मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट, जर्मनी ने भी हाल ही (जुलाई 2020) में आर्टेमिसिया की हर्बल चाय को कोविड-19 क उपचार में लाभकारी होने का दावा किया है.

क्या है आर्टेमिसिया अनुआ
आर्टेमिसिया अनुआ एशियाई और यूरोपीय मूल के शीतोष्ण क्षेत्र मे व्यापक रूप से पाया जाने वाला एक वार्षिक, अरोमिल, जंगली पौधा है, जो आमतौर पर दो मीटर तक की ऊंचाई का होता है. आर्टेमिसिया का चीनी नुस्खों की पुस्तक में सर्वप्रथम बुखार की आपातकालीन औषधि के रूप मे वर्णन पाया गया है. आर्टेमिसिया से प्राप्त आर्टेमिसिनीन मलेरिया की मुख्य दवा है, जिस्के अतिरिक्त कैंसर मे भी प्रयोग होने वाली एक महत्वपूर्ण औषधि है.आर्टेमिसिया का प्रयोग जीवाणुओं तथा कवकों से होने वाले संक्रमण मे भी होता है, साथ ही ये अफ्रीका में नेत्रहीनता के लिए जिम्मेदार ओंकोसीरसियसिस (onchocerciasis) के उपचार मे भी प्रयोग किया जाता है. आर्टेमिसिनीन, अफ्रीकन निद्रा रोग में भी औषधीय भूमिका निभाता है, जोकि सी सी मक्खी से संचरित होता है. इसका प्रयोग अस्थमा में भी किया जाता है.

इस तरह हुआ प्रयोग
काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के जनसंपर्क विभाग के मुताबिक, प्रो. पाण्डेय ने नैनोटेक्नोलाजी के साथ इन कृत्रिम उतक संवर्धित पौधों का प्रयोग कर सूक्ष्म नैनोकणों का निर्माण किया. उनके प्रयोगशाला में बनाये गए ये नैनोंकण रोग प्रतिरोधी जैविक तत्वों से जुड़े रहते हैं, जो की मलेरिया, कैंसर, एवं अन्य वाइरल रोगों के प्रति प्रभावी यौगिक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने बताया है कि ये नैनोकण कम मात्रा में प्रयोग होते है और रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा देते हैं. जिनका प्रयोग आगे भविष्य में बड़े स्तर पर किया जाना संभव हो सकता है. इन शोधकार्यों के फलस्वरूप इस पौधे का विस्तार रूप से उत्पादन संभव हुआ है, साथ ही साथ कैंसर के क्षेत्र में भी इसके प्रयोग की सम्भावनाएं दिखाई दे रही हैं. प्रो. पाण्डेय ने बताया है कि इस विषय पर शोध कार्य अभी भी जारी है, साथ ही इसके प्रभाव का अध्ययन कोरोना वायरस के प्रोटीन पर देखे जाने की दिशा में तैयारी चल रही है.

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