मेरठ: नौचंदी मेला परिसर में स्थित हजरत बाले मियां की मजार एकता और सौहार्द की मिसाल पेश करती है. इस मजार पर मुस्लिम ही नहीं हर धर्म और जाति के लोग सिर झुकाते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं. ऐसा माना जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है. हजरत साहब यहां आने वाले फरियादी को कभी निराश नहीं करते. मुगल बादशाह भी यहां आकर शीश झुका चुके हैं.
मुराद पूरी होने पर चढ़ाते हैं चादर
हजरत बाले मियां की मजार सैकड़ों साल पुरानी है. यहां आकर मांगी गई मुराद पूरी होने पर चादर चढ़ाने और भंडारे का आयोजन करने की परंपरा है. मजार की सेवा में जुटे मुफ्ती मोहम्मद अशरफ ने बताया कि कोई व्यापार में घाटे को पूरा कराने की मन्नत लेकर आता है तो कोई अपनी बीमारी से निजात पाने के लिए. मुफ्ती मोहम्मद अशरफ का दावा है कि बाबा के दरबार से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता.
नौचंदी मेले में रात भर चलता है कव्वाली का दौर
हजरत बाले मियां की मजार पर नौचंदी मेले के दौरान रात भर कव्वाली का दौर चलता है. देश के हर कोने से लोग यहां आते हैं. हिंदू-मुस्लिम सभी जाति के लोग यहां आते हैं. इस मजार के सामने चंडी मंदिर भी है. मंदिर में जहां भजन-कीर्तन का दौर चलता है, वहीं बाबा की मजार पर कव्वाली का दौर चलता है.
बादशाह भी आकर झुकाते थे शीश
मुफ्ती मोहम्मद अशरफ ने बताया कि हजरत बाले मियां शांति और सौहार्द की मिसाल थे. वह भाईचारा में विश्वास करते थे. उनका मानना था कि पूरी दुनिया का पालनहार एक ही है. उनका मिशन था कि भाईचारा हमेशा कायम रहना चाहिए, कोई भी वाद-विवाद धार्मिक आधार पर नहीं होना चाहिए. मुगल बादशाह कुतुबदीन और बादशाह शाहआलमव भी यहां आ चुके हैं. यहां आने के बाद बादशाह शाहआलम ने बाले मियां की संपत्ति को लगान से मुक्त कर दिया था.
एक हजार साल से सेवा कर रहा है मुफ्ती मोहम्मद का परिवार
हजरत बाले मियां की मजार की देखरेख कर रहे मुफ्ती मोहम्मद अशरफ का कहना है कि उनका परिवार करीब 1000 साल से पीढ़ी दर पीढ़ी बाबा की सेवा करता आ रहा है. वह स्वयं वर्ष 1990 से मुफ्ती के रूप में बाले मियां की मजार पर सेवा कर रहे हैं. हजरत बाले मियां का इंतकाल इसी स्थान पर वर्ष 1034 में हुआ था. हर साल यहां बाबा का उर्स भी मनाया जाता है.
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